Friday, April 19, 2024
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Jan Saamna Office

13 नवंबर को मतदाताओं के पंजीकरण हेतु विशेष कैम्प का होगा आयोजन

कानपुर देहात। जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह के निर्देशन में उप जिला निर्वाचन अधिकारी अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व जगदम्बा प्रसाद गुप्ता ने कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में बैठक करते हुए बताया कि अर्हता तिथि 01.01.2022 के आधार पर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की निर्वाचक नामावलियों के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत दिनांक 01.11.2021 से दिनांक 30.11.2021 तक जनसामान्य से दावे/आपत्तियां प्राप्त किये जायेंगे। मतदाताओं की सुविधा हेतु 13.11.2021 (शनिवार) तथा 21.11.2021 (रविवार) व 27.11.2021 (शनिवार) को समस्त मतदेय स्थलों पर मतदाताओं के पंजीकरण हेतु विशेष कैम्प का आयोजन किया जायेगा,

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पुरुष की सुलझी दृष्टि

राधा पढ़ाई में होनहार होने और बाहर रहने की वजह से रसोई घर से थोड़ी दूर रही। जब विवाह तय होने वाला था तो वह मन ही मन अपने आने वाले गृहस्थ जीवन एवं अपने जीवन साथी के दृष्टिकोण को लेकर चिंतित थी। पर जब उसके विवाह के लिए बातचीत हुई और वह मोहन से मिली तो पूरी सच्चाई से उसने मोहन को अपने बारे में बताया। मोहन बहुत ही सुलझी हुई सोच वाला व्यक्ति था। उसने उसकी हर बात को ध्यान से सुना और अपने विचार व्यक्त किए। जब राधा ने कहा की वह रसोईघर के कार्यों में निपुण नहीं है तब मोहन ने सहर्ष ही कहा की तुम वक्त के साथ सब कुछ सीख जाओगी और तुम मुझे प्रेम पूर्वक अपने हाथों से जो भी खिलाओगी वह मेरे लिए स्वादिष्ट ही होगा। तुम्हें मेरी ओर से कोई मीन-मेख वाला व्यवहार नहीं मिलेगा। राधा मोहन की बात सुनकर आश्वस्त हुई।

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टीका-टिप्पणी का कीड़ा

कुछ समय पहले ही पार्वती और सरस्वती की दोस्ती हुई। दोनों के पतियों की नौकरी स्थानांतरण वाली थी और उनमें काफी कुछ समानता थी। दोनों का एक साथ खाना-पीना, उठना-बैठना, घनिष्ठ मित्रवत व्यवहार सबकुछ बहुत अच्छा था। पार्वती के दो बच्चे थे जो पूर्णतः स्वस्थ थे। एक कृष्ण स्वरूप और एक लक्ष्मी स्वरूप। सरस्वती की एक लड़की थी जो दिव्यांगता का शिकार थी, पर ईश्वर की कृपा से दूसरी लड़की पूर्णतः स्वस्थ हुई। मित्रता का इतना अच्छा दिखावा था की सभी को लगता की इतनी अच्छी मित्रता विरले ही लोगों में होती है। उनकी एक और मित्र थी कल्याणी, पर कल्याणी की घनिष्ठता पार्वती और सरस्वती से अत्यधिक नहीं थी। बस केवल हल्की-फुल्की बातचीत थी। पर कल्याणी मन-ही-मन सोचती थी की ये कितने अच्छे मित्र है। एक साथ घूमने जाते है, घंटों-घंटो बैठकर अपने मनोभाव एक दूसरे को बताते है, खाने-पीने के व्यंजनों के साथ खूब खुशियों भरा जीवन जीते है।

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रो लूं

दिल करे यूं आज तुमको
याद कर के रो लूं
एक भी बूंद अश्क़ के ना बचे आंखों
जी भर के रो लूं
ना सोचूं मैं ये
कोई कहेगा क्या
और मेरे साथ क्या होगा हादसा
यूं खुद को मैं तबाह कर के रो लूं
हौसला ना रहा रूह के
सिहरन को रोक लूं

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‘’तुम सबकुछ हो जानते’’

सूर्य सनातन देव दृष्टि जो सृष्टि पर ठहरा है,
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
नीर कोई आँसू के लेकर लेख पीर का लिखता
अहंकार में उलझा कोई पाप पुण्य ना दिखता
उन्मत प्यास लिए जन्मों तक यूँ हीं आता जाता
कर्मों का उत्तरदायी फिर कैसे हुआ विधाता
खुला तथ्य है खुली कहानी रंच नहीं कोहरा है.
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
यहीं शेष है, यहीं अंत है, यहीं श्रांतहै सब कुछ
सपनों की टूटन भी, सुख भी, यहीं क्लांत है सब कुछ
लघु, अघन, सुक्ष्मोत्तर भी रह पाता ओट नहीं है
निरखे दृष्टा एक टुक सब कुछ गिरे पपोट नहीं है
तोल तराजू स्थिर पलक, फिर न्याय सतत झहरा है
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.

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प्रसिद्ध व्यक्ति की समाज के प्रति जिम्मेदारियां

आम इंसान अक्सर संवेदनशील होते है, वह अपने पसंदीदा कलाकार, लेखक, रमतवीर या चाहे कोई भी प्रसिद्ध व्यक्ति के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हुए होते है। खासकर फ़िल्म इंडस्ट्री और क्रिकेट जगत से जुड़ी हर कड़ी से आम इंसान का लगाव शिद्दत वाला दिखता है। कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने समाज के हर वर्ग को और समस्त फ़िल्म इन्डस्ट्री को झकझोर कर रख दिया था। हर कोई अंदाज़ा लगाते अपने तर्क लगा रहे थे स्यूसाइड या मर्डर? आज तक गुत्थि नहीं सुलझी, केस बंद भी हो गया और सब भूल भी गए।

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क्यूँ देश को अपना नहीं समझते

क्यूँ अल्पसंख्यकों का एक वर्ग पूर्वाग्रह से ग्रसित है? क्यूँ इन लोगों को लगता है की भारत के हिन्दू हमारे दुश्मन है, क्यूँ इस देश में हर मुद्दे को हिन्दु मुस्लिम के रंग में रंग कर राजनीति चालू हो जाती है। जब की आज़ादी के बाद से 75 सालों से एक ही सरजमीं साझा करते हिन्दु मुस्लिम पडोसी बनकर रह रहे है। धर्मांधता जब तक ख़त्म नहीं होगी ये देश कभी उपर नहीं उठेगा। और ये अलगाव वाद फैलाने वाले और मुस्लिमों को हिन्दु के ख़िलाफ़ भड़काने और उकसाने वाले नवाब मलिक और असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग जब तक देश में है तब तक ये खाई बढ़ती ही जाएगी।

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त्योहारों पर फिजूल खर्च कितना जरूरी

बेशक त्यौहार हमारे जीवन में आनंद उत्साह और ऊर्जा भरते है। नये कपड़े, पटाखें, मीठाई और रंगों से भरी दिवाली इस साल हर त्यौहार की तरह फ़िकी ही लगेगी क्यूँकि कोरोना की वजह से पूरा देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है। पर एक बात गौरतलब है की इन सारे त्यौहारों पर हर बार हम कितना फ़िज़ूल खर्च कर देते है। यहाँ तक की महीने भर का बजट हिल जाता है। पर जहाँ एक ओर जमाने के बदलते स्वरूप के साथ कदम मिलाना हमारे लिए जरूरी है। वहीं अपनी मेहनत की कमाई को फिजूलखर्ची से बचाना भी उतना ही अत्यावश्यक है। क्या दो साल पहले ली हुई हैवी साड़ी दोबारा इस दिवाली पर नहीं पहन सकते?

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श्रम कल्याण परिषद का बना रिकॉर्ड, 3 वर्षों में हुए ऐतिहासिक कार्य

इटावा। श्रम कल्याण परिषद द्वारा श्रमिकों के कल्याण के लिए संचालित योजनाओं के प्रचार-प्रसार के उददेश्य से प्रदेश के प्रत्येक जनपद स्तर पर समीक्षा बैठक आयोजित की गयी। बैठकों में ट्रेड यूनियन, श्रमिकों के प्रतिनिधि तथा सेवायोजक एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के मालिकों की भागदारी करायी गयी। जिससे योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक कर्मियों के परिवारों को दिलाया जा सके। उत्तर प्रदेश में औद्योगिक कारखाना निदेशक के हवाले से 20 हजार 500 कारखानों तथा 06 लाख 500 दुकानों के आनलाइन पंजीकृत है।

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अहोई अष्टमी व्रत संतान की मंगलकामना का पर्व

भारत में हिन्दू समुदाय में करवा चौथ के चार दिन पश्चात् और दीवाली से ठीक एक सप्ताह पहले एक प्रमुख त्यौहार ‘अहोई अष्टमी’ मनाया जाता है, जो प्रायः वही स्त्रियां करती हैं, जिनके संतान होती है किन्तु अब यह व्रत निसंतान महिलाएं भी संतान की कामना के लिए करती हैं। ‘अहोई अष्टमी’ व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। स्त्रियां दिनभर व्रत रखती हैं। सायंकाल से दीवार पर आठ कोष्ठक की पुतली लिखी जाती है। उसी के पास सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पृथ्वी पर चौक पूरकर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पूजन के बाद दीवार पर लिखी अष्टमी का पूजन किया जाता है।

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