Friday, March 29, 2024
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विविधा

शक्ति आराधना पर्व नवरात्रि

माँ शब्द में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है। यह सृष्टि भी तो हमारी माँ ही है, जो हमारा लालन-पालन और भरण-पोषण करती है। उदार भाव से हमारे उत्थान को प्रबलता प्रदान करती है। इसी भाव के कारण हम सदैव पूजा-अर्चना में सर्वप्रथम पृथ्वी माँ को ही प्रणाम करते है। इस समय तो ममतामयी माँ शेर पर सवारी कर भक्तों के कल्याण के लिए आई है। हमें सकारात्मक ऊर्जा एवं शक्ति प्रदान करने के लिए माँ अखंड ज्योत के द्वारा हमारे जीवन के अंधकार का भी समूल नाश कर देती है। करुणामयी, भक्तवत्सल माँ तो शुभता प्रदान करने वाली है। मन के संशय को नाश करने एवं हमारी अभिलाषाओं को साकार रूप देने माँ नौ दिन विभिन्न-विभिन्न रूपों से हमें गुण, ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से भर देंगी। हमें अपने आनंद का विस्तार करने के लिए माँ के सच्चे दरबार पर अडिग विश्वास करना होगा। भक्तिभाव में मग्न होकर हमें माँ की पूजा-अर्चना एवं उपासना करनी है। विघ्नों को हरने वाली माँ, नव उत्साह जननी माँ, धन-धान्य के भंडार देने वाली माँ, त्रिभुवन में निवास करने वाली माँ, मन के द्वार को आलौकित करने वाली माँ की स्तुति हम मंगल कलश की स्थापना के साथ करेंगे। भय हारिणी एवं भव तारिणी माँ के प्रत्येक स्वरुप का नमन और वंदन करेंगे।
देवी दुर्गा तो दुर्गति का भी विनाश कर देती है। हर नवरात्रि की तरह इस बार भी हम देवी के दर्शन, उनकी दया, कृपा, करुणा एवं आशीर्वाद के अभिलाषी होंगे। उत्साह, उमंग और भक्ति भाव से ओत-प्रोत होकर हमें देवी के आराधना पर्व को उत्सव का स्वरुप देना होगा। बच्चों को भी माँ के विभिन्न स्वरूपों से अवगत कराना होगा। माँ की आराधना हमें बहन-बेटी के सम्मान को सुरक्षित रखने की भी प्रेरणा देती है। माँ के प्रति अगाध श्रृद्धा हमें एक सम्मानित समाज के निर्माण की ओर अग्रसर करती है, जिसमें समस्त प्राणियों में नारी के प्रति सम्मान का भाव सदा जीवंत रहें। माँ तो धैर्य, साहस, शक्ति एवं वात्सल्य का अप्रतिम रूप है। माता हमें जीवन में नवीन दिशा प्रदान करें।

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हवा भी रुख बदलेगी

हवा भी रुख बदलेगी
मेरे हौसलों के सामने ,
हवा भी रुख बदलेगी।
दुश्वारियां कितनी भी आए,
यह जज़्बा मगर न बदलेगा।
आज भी न्याय में है शक्ति,
अन्यायी खुद पानी भरेगा ।
ऐ कमज़ोर समझने वालों,
मेरी शक्ति का है अंदाज़ा।
मैं मुई ख़ाल की धौंकनी,
तुझको जला राख कर दूंगी।
मुझे कुम्हार की चाक समझ
हर रूप में ढ़ालना है पता ।

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बारिश की एक बूंद ने….

बारिश की एक बूंद ने, तपती जमीन से पूछा।
क्यों बन गई हो आतिश, क्यों बन गई हो आतिश।
आवाज़ सुनकर उसकी, ये तपती ज़मीं है बोली।
बेटी- बहू को लेकर सब, कर रहे हैं साज़िश ।
तो होगी क्यों ना आतिश, तो होगी क्यों ना आतिश।
है हर घरों में माचिस तो, होगी क्यों ना आतिश।
अंग्रेजियत के फैशन अब, हो रहे हैं देखो काबिज़।
कम हर घरों में माजिद, तो होगी क्यों ना आतिश।
दिल के चिरागों की यहां, कम हो रही है ताबिश।

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प्रेम दीवानी

तुम मेरे उर के सागर हो
मै प्रेम दीवानी सरिता हूँ
तुम गीत गजल रस छंद मेरे
मै तुम में बहती कविता हूँ

पर्वत से तो निकल पड़ी हूँ
मिलन की आस लिए मन में
जाने कब तक पड़े भटकना
कंकड़ पत्थर के वन में

विरह वेदना की अग्नि में
पल – पल जलती वनिता हूँ

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प्यासी प्यासी भोर

एक नयनजल नभ पर अटका
एक नयन के कोर
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर
फूलों की रतजागी आँखें
टेर सुनाए बेकल
प्रीत तुम्हीं मनमीत तुम्हीं
तुम हीं सावन मैं मोर ।।
छुपा मेघ में चाँद दीवाना
रजनी रोई रोई
ये सब बादल सूखे सूखे
बरसे कोई कोई
जादूगर से उस बादल का
निरा अनूठा तौर।
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर ।।

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यमुनोत्री यात्रा और रोमांच

कुछ यात्राएं बेहद सुखद होती हैं जिनमें सिर्फ मौज मस्ती होती है। मंदिरों के दर्शन किया, दर्शनीय स्थल घूम लिए, बाजारों की रौनक बढ़ा ली और घूमना फिरना पूरा हो जाता है लेकिन कुछ यात्राएं रोमांचक होती है। चार धाम की यात्रा मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं रही। यह एक तरह से कहा जाए तो मेरे लिए ट्रैकिंग से कम अनुभव नहीं रहा।
चार धाम यात्रा में सबसे पहला पड़ाव यमुनोत्री का रहा। धार्मिक स्थलों से जुड़ी हुई यात्राएं अपने साथ कुछ ना कुछ पौराणिक कथाएं जरूर लिये हुये होती है। यमनोत्री के लिए कहा जाता है कि सूर्य देव की पुत्री युमना और पुत्र यमराज है। जब मां युमना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी तो उनके भाई यमराज को मृत्यु लोक दिया गया। मां यमुना ने भाई दूज का त्योहार मनाया और यमराज ने मां गंगा से वरदान मांगने के लिए बोला। यमराज ने बहन यमुना की बात को सुनकर वरदान दिया जो कि तेरे पवित्र जल में स्नान करेगा वह कभी भी यमलोक का रास्ता नहीं देखेगा। इसीलिए कहा जाता है कि जो भी इस जल में स्नान करता है वह अकाल मृत्यु के भय से दूर रहता है और इसी वजह से हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं। यमनोत्री उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3235 मी. ऊँचाई पर स्थित है।
उत्साह, रोमांच, कड़ाके की ठंड और हल्की बारिश के साथ यात्रा की शुरुआत हुई। चढ़ाई बहुत ज्यादा नहीं थी सिर्फ छह किलोमीटर की थी लेकिन चढ़ाई पूरी करने में बहुत शक्ति लगी और यदि खड़ी चढ़ाई हो तो दिक्कत ज्यादा होती है। एक किलोमीटर चढ़ाई मतलब एक घंटा। हमारी यात्रा की शुरुआत जानकीचट्टी से शुरू हुई। मुझे धीरे धीरे समझ में आने लगा यह चढ़ाई इतनी आसान नहीं है। मैं ऊपर देखते जाती और सोचते जाती कि कैसे और कब यह चढ़ाई पूरी होगी। एक बारगी मन में खयाल आया कि पालकी कर ली जाए लेकिन भीड़ का नजारा देखकर इरादा छोड़ दिया, जबकि लोगों को मैंने कहते हुए सुना कि भीड़ तो अभी शुरू ही नहीं हुई है। चढ़ते – चढ़ते पालकी वाले साइड साइड चिल्लाते हुए बाकायदा दौड़ लगा रहे थे। घोड़े वाले भी इसी तरह हांक लगाते हुये चल रहे थे। पिट्ठू माताजी माताजी बोलकर अपनी जगह बना रहे थे और पैदल यात्री अपने आप को इन सबसे बचाता हुआ अपनी यात्रा तय कर रहा था। रास्ता छोटा और जगह-जगह पहाड़ी पत्थर निकले हुए थे जिन से अपने आप को बचाना पड़ता था। हर कुछ दूरी पर चाय कोल्डड्रिंक और खीरे वाले बैठे थे।

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जीवन के अनजाने रास्ते

न जाने कैसी धुंध में हम आज घिर गए
जाना था घर अपने कही और निकल गए।

क्या हुआ जीवन में क्या आंधी निकल गयी
उड़ गया सब कुछ, पूँजी शेष नही बची
माना कि पैर में न कोई बेड़िया थी डली
पर दूर तक जाने से ये बेबस क्यों हुई।

आज शक्ति बाजुओं की कमजोर हो रही
खर्चा मेरे तन का बड़ी बोझ सी लग रही।
रोटी को भटकते दर-दर की ठोकरे खाई है
कपड़ा जो तन पर है चिथड़े से काम चलाई है।

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जिंदगी की उड़ान

अब थक गई हूँ चलते-चलते,
अब आप थोड़ा आराम चाहती हूँ।
ऐ जिंदगी अब थोड़ी ठहर जा,
मैं खुद को जानना चाहती हूँ।
और से तो सुन लिया है बहुत,
अब अपनी मन की सुनना चाहती हूँ।
जीवन तो दिया है अपनों ने मगर,
अपनी जिंदगी खुद जीना चाहती हूँ।

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भगवान जी को हंसा कर बस लौटते ही होंगे हमारे राजू भैया

थोड़ी देर पहले जैसे ही मोबाइल डाटा ऑन किया। एक दुखद खबर सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त हुई। समाचार सुनकर अत्यंत कष्ट हुआ कि भारत देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपनी मेहनत के बलबूते, अपनी कला के बलबूते, लोगों के लबों पर मुस्कान बिखेरने वाले हिंदुस्तान के एक चमकते सितारे कई दशकों से निरंतर अब तक दर्शकों, श्रोताओं अपने चाहने वालों के दिलों में राज करने वाले, हम सबके प्रिय सुप्रसिद्ध हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव भैया जिंदगी और मौत से चालीस दिनों तक सतत् संघर्ष करते हुए आखिरकार इस संसार को अलविदा कह दिये।यकीन मानिए ! राजू श्रीवास्तव भैया जैसे जिंदादिल इंसान और शख्सियत हेतु श्रद्धांजलि जैसे शब्द लिखना भी अत्यंत दुख दे रहा। इन उंगलियों मे कंपन हो रही है । हृदय भाव विहल हो उठा है मन मानने को तैयार नही कि राजू श्रीवास्तव जी अब हम सबके के बीच नही हैं।अत्यंत कष्ट होता है सबको हंसाने वाले हिंदुस्तान के इतने लाड़ले चमकते सितारे अब हम सबके बीच नहीं हैं। ऐसा लगता है जैसे राजू श्रीवास्तव कहीं नहीं गए हैं। हम सबके बीच ही हैं।

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(भूजल गोष्ठी) का आयोजन विकास भवन सभागार में सम्पन्न

कानपुर नगर। जनपद में दिनांक 16 से 22 जुलाई, 2022 तक आयोजित “भूजल सप्ताह” के समापन के उपलक्ष्य में आज भूगर्भ जल विभाग खण्ड कानपुर द्वारा भूजल संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन हेतु जन-जागरूकता के लिये (भूजल गोष्ठी) का आयोजन विकास भवन सभागार में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप में विधायक घाटमपुर सरोज कुरील द्वारा प्रतिभाग किया गया। गोष्ठी में वर्षा जल संचयन एवं भूजल पुर्नभरण हेतु जनपद के अधिकारियों द्वारा विस्तृत चर्चा की गयी, जिसमें मुख्य अथिति द्वारा रूफटाप रेनवाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली से वर्षा जल का संचयन एवं भूजल रिचार्ज करने का संदेश दिया गया है।

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