पंछियों का बसेरा नियत काल तक
पिंजड़े का बखेड़ा नियत काल तक
कौन आया है रहने यहाँ पर सदा
चक्रजीवन जजीरा नियत काल तक
वक्त की करवटों पर पिघल जाएँगे
कल चमकते सितारे भी ढल जाएँगे
आज अट्टालिकाएं हैं जो तनकर खड़ी
खण्डहर में इमारत बदल जाएँगे
तब ये पूजन ये तर्पण पितरपक्ष से
ताप मरुथल का क्या सिक्त हो पाएगा !
बुझ गया जो अतृप्ति में जलकर दीया
वह अँधेरा क्या फिर दीप्त हो पाएगा !!