पतझड़ फागुन सावन गुज़रा
ऋतुओं से भरा मौसम गुजरा
जीवन का मतलब समझा कर
एक वर्ष पुराना बन गुजरा
अज्ञात दिशा की भूमि पर
आरोहण करने काल नया
उम्मीद का नन्दनवन लेकर
आया फिर से एक साल नया
झिलमिल आशा की जुगनू से
संशय का कोहरा झांक रहा
अपनों की बस्ती में सहमा
मन अर्थ समय के आंक रहा
सागर हीं सागर फैला है
नदिया सिमटी हीं जाती है
रिश्तों के भीड़ भरे तट पर
नीरवता क्रन्दन गाती है
लहर भँवर संग बीन रहा मिल
धुप छाँव का जाल नया
आया फिर से एक साल नया