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Daily Archives: 7th April 2017

शौचालय का भ्रष्टाचार मिटाने में जुटा ग्राम प्रधान

2017.04.07. 1 ssp SHAUCHALAYचन्दन जायसवाल/आमिर सोलंकी
कानपुर देहात। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की महत्वाकांक्षी योजना ‘स्वच्छ शौचालय’ योजना में भ्रष्टाचार की अमरवेल ने खूब रंग दिखाया है और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानों की जेब भरने का एक अच्छा माध्यम ‘स्वच्छ शौचालय योजना’ बनती दिख रही है। इस योजना के तहत बनाये गए शौचालयों में मानकों के साथ पूरी निर्भीकता के साथ खूब खिलवाड़ किया गया है और इसमें ग्राम विकास अधिकारी ने भी पूरी सहभागिता करते हुए ऐसे शौचालयों को तैयार करवा कर उपयोग के लिए छोड़ दिए जो भविष्य में देश की जनता को उसी स्थान पर लाकर छोड़ देंगे जिससे बचाने के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी जी जी-जान से जुटे हैं। कहने का मतलब यह है कि जो शौचालय ग्रामीण क्षेत्र की जनता उपयोग कर रही है उनके दोनों टैंकों में मल प्रवाहित हो रहा है। कुछ वर्षों बाद जब दोनों टैंक एक साथ भर जायेंगे तो ऐसे में या तो शौचालयों का उपयोग बन्द करना पड़ेगा या टैंकों में एकत्र हुए मैले को बिना जैविक खाद के बने ही फेंकने की मजबूरी होगी। जबकि स्वच्छ शौचालय में दो टैंक इस लिए बनाये गए हैं कि पहले एक टैंक का उपयोग हो जब वह भर जाये तो दूसरा टैंक खोल दिया जाये और जब पहले वाले टैंक में एकत्र हुआ मल जैविक खाद का रूप ले ले तो उसे खेतिहर भूमि को उपजाऊ बनाने के काम में लाया जाये। लेकिन जागरूकता की कमी व ग्राम प्रधान की लापरवाही के चलते ग्रामीणों को शौचालय उपयोग की सही जानकारी नहीं दी गई है।

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चिकित्सा क्षेत्र में सेवाभाव कैसे…?

portal head web news2डाक्टरों को धरती का भगवान माना जाता है और उनका क्षेत्र यानीकि चिकित्सा क्षेत्र सेवा का क्षेत्र कहा जाता है। लेकिन यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि चिकित्सा का क्षेत्र अब सेवा का नहीं बल्कि व्यापार का क्षेत्र बन चुका है, बने भी क्योंकि ना…? सवाल मेरे मन में उठा कि जब लाखों रूपये खर्च कर डाक्टरी की पढ़ाई की है तो डाक्टर बनने वालों का शायद यही पहला उद्देश्य रहेगा कि पहले लागत को क्यों ना वसूला जाये…? इसके बाद समाजसेवा कर ली जायेगी।
वहीं हमारे देश के ज्यादातर अभिभावकों की चाह भी यही होती है कि मेरे बेटे या बेटी अच्छी शिक्षा पाये और अच्छा धन कमाये, इसीलिए वो अपनी सन्तानों को शिक्षित करने के लिए भारी भरकम रकम खर्च करते हैं। और जब भारी भरकम रकम खर्च कर डिग्री ली जायेगी तो फिर उसके बाद सेवा भाव करने की बात महज एक बेमानी ही कही जायेगी। जो लोग डाक्टर बन जाते हैं चाहे वो सरकारी अस्पताल में स्थान पायें या निजी अस्पताल खोलें उनका पहला उद्ेश्य यही रहता कि जो खर्च किया गया है उसे कमाया जाये। इसलिए उनमें चिकित्सा क्षेत्र में सेवा भाव नहीं बल्कि व्यापार पहले दिखता है।

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प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने की मांग

हाथरस, नीरज चक्रपाणि। सीबीएसई बोर्ड से संचालित प्राइवेट स्कूलों द्वारा प्रति वर्ष फीस वृद्धि के नाम पर मनमानी व अभिभावकों का उत्पीडन किये जाने के खिलाफ आज अभिभावकों द्वारा एसडीएम को ज्ञापन सौंप कर कार्यवाही की मांग की।
अभिभावकों ने ज्ञापन में कहा है कि प्राइवेट स्कूलों में बिल्ंडग फीस, ट्यूशन फीस, मासिक फीस के अलावा एक मुश्त एडमीशन फीस आदि के नाम पर मोटी रकम वसूल की जा रही है साथ ही अभिभावकों को इनके द्वारा नियुक्त दुकानदारों से ही कापी-किताबें खरीदने को बाध्य करते हैं तथा प्रति वर्ष पुस्तकों में मामूली फेरबदल कर नई किताबें खरीदने को मजबूर करते हैं जिससे अभिभावकों पर भारी बोझ पड रहा है।

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