हमारे देश में वृक्षों को देव माना गया है और धर्मशास्त्रों में वृक्षारोपण को बहुत ही पुण्यदायी कृत्य बताया गया है। सभी जानते हैं कि वृक्षों की मौजूदगी धरती पर जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। आदि काल से लोग तुलसी, पीपल, केला, बरगद को पूजते आए हैं। वहीं विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि ये पेड़-पौधे हमारे लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं । वृक्ष ही पृथ्वी को हरा- भरा बनाकर रखते हैं, जिन स्थानों में पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में होते हैं वहाँ निवास करना आनंददायी प्रतीत होता है। पेड़ छाया तो देते हैं औषधियों को देते हैं, साथ ही पशु-पक्षियों को आश्रय भी प्रदान करते हैं । इनकी ठंडी छाया में मनुष्य एवं पशु विश्राम कर आनंदित होते हैं । वृक्ष हमें फल, फूल, गोंद, रबड़, पत्ते, लकड़ी, जड़ी-बूटी, झाडू, पंखा, चटाई आदि विभिन्न प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ सौगात में देते हैं । ऋषि-मुनि भी वनों में रहकर अपने जीवन-यापन की सभी आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे लेकिन जैसे-जैसे सभ्यता विकसित हुई लोग वृक्षों को काटकर उनकी लकड़ी से घर के फर्नीचर बनाने लगे, वहीं कागज, दियासलाई, रेल के डिब्बे आदि बनाने के लिए लोगों ने जंगल के जंगल साफ कर दिए। इससे जीवनोपयोगी वस्तुओं का अकाल पड़ने लगा। साथ ही साथ पृथ्वी की हरीतिमा भी घटने लगी है। वृक्षों की संख्या घटने के दुष्प्रभावों का वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला है कि वृक्षों के घटने से वायु प्रदूषण की मात्रा बड़ी है । वृक्ष वायु से हानिकारक कार्बन डायआॅक्साइड का शोषण कर लाभदायक आॅक्सीजन छोड़ते हैं। आॅक्सीजन ही जीवन है और जीवधारी इसी पर निर्भर रहते हैं । अतः धरती पर वृक्षों की पर्याप्त संख्या का होना बहुत आवश्यक होता है ।
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