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Daily Archives: 6th January 2018

चाणक्य फाउण्डेशन ने मजदूरों को बांटी चाय

फिरोजाबाद। चाणक्य फाउण्डेशन के जिलाध्यक्ष बब्बू पंडित के सौजन्य से गरीब बेसहारा एवं सभी रोजगार तलाशने आये मजदूर भाइयों को चाय वितरित की गयी। फाउण्डेशन के प्रदेश सचिव डा. अखिलेश शर्मा ने कहा नर सेवा नारायण सेवा होती है हम सभी को अपनी खुशियां गरीब के साथ मिलकर बांटनी चाहिये। चाय वितरण में बब्बू पंडित, अखिलेश शर्मा, विकास तोमर, शालू पंडित, अमन शर्मा, वरूण गुप्ता, सचिन भोला, कटारा, प्रवीण गुप्ता, वीनेश दीक्षित, पंकज शर्मा आदि मौजूद रहे।

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डीएम व एसएसपी ने देखी अतिक्रमण की स्थिति

कानपुरः जन सामना संवाददाता। थाना फजलगंज क्षेत्र में जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह व एसएसपी कानपुर अखिलेश कुमार मीणा ने निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने थाने के साथ ही फजलगंज चैराहे से लेकर फायर स्टेशन दादा नगर तक अतिक्रमण की स्थित भी देखी।
इस दौरान उन्होंने निर्देश देते हुए अतिक्रण हटाने व व्यवस्थाओं को ठीक कराने को कहा। अतिक्रमण कारियों की दुकानों को हटवाया गया तथा कई दुकानदारों के चालान भी काटे गये।
इस अवसर पर जिलाधिकारी व एसएसपी के साथ सीओ सूर्यपाल सिंह, एसओ फजलगंज सतीश सिंह तथा एरिया चैकी इंचार्ज उमेश कुमार सहित अन्य पुलिसकर्मी मौजूद रहे।

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आरोपियों को गिरफ्तार कर भेजा जेल

बसूली को लेकर चूड़ी व्यापारी को गोली मारने का मामला
फिरोजाबादः जन सामना संवाददाता। थाना दक्षिण पुलिस ने विगत दो दिन पूर्व चैथ बसूली को लेकर एक चूड़ी व्यापारी को गोलीमार कर घायल कर दिया था। वही पब्लिक ने एक हमलावर को मौके पर ही दबोच लिया था। उक्त मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार करने के बाद जेल भेजा।
थाना दक्षिण क्षेत्र के टीला मौहल्ला में चूड़ी व्यापारी लालता प्रसाद को देर सायं कुछ लोगो ने गोली मार कर घायल कर दिया था। घटना के बाद भाग रहे हमलावरों में पब्लिक ने दौड़ा कर लाइनपार के छारबाग निवासी रामअवतार पुत्र स्व0 सत्य प्रकाश को दबोच लिया। हमलावर को पब्लिक ने मारपीट कर गम्भीर रूप घायल कर दिया। सूचना पर पहुची पुलिस ने अचेत पडे हमलावर को उपचार के लिए घायल के साथ जिला अस्पताल भिजवाया।

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कम्युनिकेशन कैसे करें…?

क्रेडिट रोल-सरश्री तेजपारखी ‘तेजज्ञान फाउंडेशन’
व्यक्तिगत जीवन हो या सामाजिक, ऑफिस हो या घर, स्वयं के साथ हो या दूसरों के साथ, सभी जगहों पर दिखनेवाली एक कॉमन समस्या है, ‘मिस कम्युनिकेशन’ यानी गलत तरीके से संवाद करना।
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि कम्युनिकेशन का क्या मतलब है? बातचीत के दौरान एक इंसान सामनेवाले को जो संदेश देना चाहता है, वह उसे मिल जाए और उससे अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो तो वह सही कम्युनिकेशन है। जीवन के सभी क्षेत्रों में आज सही संप्रेषण (संवाद) न करने की समस्या दिखाई देती है। साधारणतः बातचीत के दौरान लोग बताना कुछ और चाहते हैं और सुननेवाला कुछ अलग ही समझता है। इसलिए कम्युनिकेशन का पहला एवं महत्वपूर्ण पहलू है- ‘पूरा और सही सुनना, न समझ में आए तो फिर से पूछना।’
पहला पायदान- कम्युनिकेशन का पहला पायदान है, ‘सुनना’। विचारों की भीड़ में खोया हुआ इंसान सही तरह से सुन नहीं पाता। साथ ही किसी से कम्युनिकेशन करते वक्त इंसान उसकी छवि अपने मन में बनाता है और उसके अनुसार सुनता है। इसलिए वह पूरा नहीं बल्कि अपने विचारों के अनुसार जितना उसे आवश्यक लगता है, उतना ही सुनता है। सही कम्युनिकेशन न होने का यह पहला कारण है।
अपना कम्युनिकेशन सुधारने के लिए सामनेवाले की बातें वर्तमान में रहते हुए पूरी सुनें और उसमें अपने विचारों की मिलावट न करें। सही और उत्तम कम्युनिकेशन के लिए केवल बोलने की नहीं बल्कि दिल से सुनने की कला विकसित करें। वरना आधा सुनकर लोग अकसर कह देते हैं, ‘मैं समझ गया’ मगर वे नहीं समझे होते हैं। ऐसे वक्त हमें सामनेवाले से पूछ लेना चाहिए कि उसने क्या समझा। इसे कहा गया है सही और पूर्ण कम्युनिकेशन।

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शीत लहर जोरों पर, नहीं जल रहे सरकारी अलाव

खीरों, रायबरेली। इस समय सर्दी पूरे जोरों पर है। शीत लहर और घने कोहरे से आम जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त नजर आ रहा है। नव वर्ष की पहली शीत लहर लगातार छठे दिन भी प्रभावी रही। शनिवार को सूरज की किरणें धरती पर जरुर पड़ी लेकिन तापमान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं आई। जिससे लोगों की कपकपी छूट गई। मौसम की पहली शीत लहर ने बुजुर्गों और बीमारों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। इसके बावजूद अभी तक प्रशासन द्वारा अलाव जलाए जाने की कोई व्यवस्था न कराए जाने से लोगों में काफी आक्रोश है। खीरों कस्बे के सैकड़ों ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से भीषण ठंड पर काबू पाने के लिए अलाव जलवाने की गुजारिश की है जिससे गरीब बेसहारा एवं निराश्रितों का भला हो सके। जनवरी माह का प्रथम सप्ताह बीतने को है फिर भी अभी तक प्रशासनिक अधिकारियों की नींद नहीं टूटी।
कड़ाके की ठंड से न्यूनतम तापमान 5 डिग्री तक पहुंच गया है जिसके चलते जबरदस्त कपन का एहसास हो रहा है। ठंड से मवेशियों की भी स्थिति गंभीर हो गई है। खुले में विचरण करने वाले मवेशी ठंड से बचने के लिए रिहायशी इलाकों की तरफ भागने लगे हैं। ठंड के कारण सड़कों पर भीड़ गायब हो गई है। गावों में गरीब तपके के लोग ठंड के कारण बुरी तरह बेहाल हैं। प्रशासन द्वारा अलाव जलवाने का दावा महज दिखावा साबित हो रहा है। सार्वजनिक स्थलों पर भी अलाव जलते नहीं दिखाई देते। लोग अपने स्तर से अलाव की व्यवस्था करते देखे जा रहे हैं। तापमान में जबरदस्त गिरावट आ जाने के कारण लोगों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित है। तहसीलदार डॉ जगन्नाथ सिंह में बताया कि विकास क्षेत्र में अलाव जलाने के लिए 12 स्थान चिन्हित हैं, इसके अतिरिक्त अगर कहीं आवश्यकता होती है तो व्यवस्था की जाएगी। शासन के निर्देष पर कम्बल वितरित करने का कार्य जारी है।

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तालाब को अवैध कब्जों से कराया मुक्त

खीरों/रायबरेली। थानाक्षेत्र के कस्बा खीरों में अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत उप जिलाधिकारी लालगंज मदन कुमार व उनकी टीम व खीरों पुलिस की टीम ने शनिवार को एक बड़े तालाब की जमीन के रकबे पर अवैध कब्जा हटवाया। जमीन पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर गेहूँ बो रखा था। उन्होंने ट्रैक्टर चलवाकर खेडी गेहूँ की फसल जोतवा दी, जिससे क्षेत्र के सभी भूमाफियाओं में हडकंप मच गया।
समाधान दिवस में खीरों थाने पहुँचे एसडीएम लालगंज मदन कुमार और तहसीलदार डॉ जगन्नाथ सिंह, नायब तहसीलदार रितेश सिंह, कानूनगो खीरों सुशील कुमार सिंह ने फरियादियों की समस्याएं सुनी। इस दौरान कुल 6 मामले आये, जिन्हें तुरंत मौके पर राजस्व विभाग और पुलिस की टीम भेज कर मौके पर निस्तारित कराया। इसके बाद खीरों के कमनइया तालाब पर पहुंचकर ग्रामीणों द्वारा कुल 21 बीघे तालाबी जमीन पर अवैध रूप से बोये गए गेहूँ की फसल जोतावाकर अतिक्रमण हटवाया।

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युद्ध स्मारकों को जातीय चश्में से न देखा जाए

नया साल हर तीन सौ पैंसठ दिनों के बाद आ जाता है लेकिन 2018 के पहले दिन को हम इस लिहाज से अलग कह सकते हैं कि इस दिन ने देश के दो युद्ध स्मारकों को भी जातीय बहस का हिस्सा बना डाला। 200 वर्ष पहले 500 महारों की ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी ने हजारों पेशवा सैनिकों को धूल चटाकर मराठा शासन को इस देश से खत्म किया था। उन वीर लड़ाकों की याद में अंग्रेजों ने वैसा ही युद्ध स्मारक भीमा कोरेगांव में ‘जय स्तंभ’ (विक्ट्री पिलर) के नाम से बनाया जैसा देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट के नाम से बनवाया गया है। यह अंग्रेजों की परम्परा रही है। ऐसे विजय के प्रतीक देश के अन्य स्थानों पर आज भी मिल जाएंगे। दिल्ली के नजदीक नॉएडा के गाँव छलेरा में भी ऐसा ही एक युद्ध स्मारक है जिसे स्थानीय लोग ‘विजय गढ़’ कहते हैं। युद्ध में शहीद सैनिकों के गाँव के आस-आस ब्रिटिश हुकूमत ऐसे स्मारकों का निर्माण करवा दिया करती थी।
1 जनवरी 1818 को छोटी सी महार सैन्य टुकड़ी द्वारा अनुशासित, प्रशिक्षित और सुसज्जित मानी जाने वाली विशाल पेशवा सेना पर प्राप्त किए गए विजय के भारत के दलित समाज के लिए अनेक मायने हैं। 19वीं सदी के पेशवा राज में दलितों की सामाजिक स्थिति को समझे बिना, कोरेगांव विजय का दलितों के लिए महत्त्व को नहीं समझा जा सकता है भारतीय इतिहास का यह वही कलंकित दौर था जब जाति विशेष के लोगों के गले में हांडी और कमर में झाड़ू बंधा होता था। जब जाति को छिपाना अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता था। पेशवा शासकों द्वारा इंसानों के एक समुदाय को अछूत घोषित कर उनपर लम्बे समय से शोषण और भेदभाव किया जा रहा था।

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