विद्या संबंर्धिनी धर्मशाला में हुई कांग्रेस की बैठक
राहुल गांधी की रैली में अधिक संख्या में पहुचेंगे कांग्रेसी
टूंडला। नगर कांग्रेस कमेटी की बैठक रविवार को विद्या संबंर्धिनी धर्मशाला पर हुई। जिसमें इसी माह आगरा में होने वाली राहुल गांधी की रैली में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचने की अपील की गई। साथ ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए चुनाव की तैयारियों में जुटने के निर्देश दिए गए।
मुख्य अतिथि हरीशंकर तिवारी ने कहा कि कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ होते हैं। आगरा में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की इसी माह जनसभा होने वाली है। जिसमें अधिक से अधिक संख्या में पहुंचना होगा। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में किसान और युवा परेशान हैं। किसानों को उनकी फसल का सही मुआवजा नहीं मिल रहा है जबकि युवा बेरोजगार घूम रहा है। नगर अध्यक्ष योगेन्द्र सिसौदिया ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का काम करना होगा। भाजपा एक जुमलेबाज पार्टी है। वह झूठ बोलकर लोगों को गुमराह करने का काम करती है। अनिल उपाध्याय ने कहा कि प्रियंका गांधी के राष्ट्रीय सचिव बनने से पार्टी को मजबूती मिलेगी। कभी इन्दिरा गांधी ने देश की बागडोर संभाली थी अब प्रियंका गांधी पार्टी को मजबूत करने का काम करेगी।
Daily Archives: 3rd February 2019
बच्चों की रचनात्मकता में बाधक होमवर्क
आज बच्चों को होमवर्क देना विद्यालयों की दैनंदिन शिक्षा प्रक्रिया का एक जरूरी अंग बन गया है। शायद ही कोई ऐसा स्कूल हो जो बच्चों को विषयगत होमवर्क न देता हो। देखने में आता है कि होमवर्क बच्चों को बांधे रखने का जरिया बन चुका है। होमवर्क में विद्यालय में पढ़ाये गये विषय के प्रकरण और पाठों पर आधारित वही प्रश्न घर पर पुनः लिखने को दिये जाते हैं जो बच्चों में ‘रटना’ की गलत प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। जबकि एनसीएफ-2005 की स्पष्ट अनुशंषा है कि बच्चों को कल्पना एवं मौलिक चिंतन मनन करने के अवसर दिये जायें, न कि रटने या नकल करने को बाध्य किया जाये। पर होमवर्क का बच्चों में ज्ञान निर्माण करने की बजाय सूचनाओं को रटवाने और नकल करने पर जोर है। क्योंकि आज की शिक्षा बच्चों को एक उत्पाद के रूप में तैयार कर रही है और इस प्रक्रिया में अभिभावक की भी स्वीकृति और भागीदारी है। तो यहां एक प्रश्न उभरता है कि बच्चों कों होमवर्क क्यों दिया जाये? क्या यह जरूरी है और बच्चों के लिए इसके क्या फायदे हैं?
होमवर्क में फंसे बच्चे के पास न तो प्रश्न हैं न ही जिज्ञासा। अगर कुछ है तो दबाव, होमवर्क पूरा करनें का दबाव और इस दबाव ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है। उसके पास-पड़ोस और परिवेश में घट रही घटनाओं, प्राकृतिक बदलावों, सामाजिक तानाबाना, तीज-त्योहारों, को समझने-सहेजने, अवलोकन करने और कुछ नया खोजबीन करने का न तो समय है न ही स्वतंत्रता। होमवर्क बच्चो ंमें कुछ नया सीखने को प्रेरित नहीं कर रहा बल्कि लीक का फकीर बनने को बाध्य कर रहा है। जाॅन होल्ट के शब्दों में कहूं तो ‘‘वास्तव में बच्चा एक ऐसी जिंदगी जीने का आदी बन जाता है जिसमें उसे अपने आसपास की किसी चीज को ध्यान से देखने की जरूरत ही नहीं पड़ती। शायद यही एक कारण है कि बहुत से युवा लोग दुनिया के बारे में बचपन में मिली चेतना और उसमें मिली खुशी खो बैठते हैं।’ आखिर कैसी पीढ़ी तैयार की जा रही है जिसकी सांसों में अपनी माटी की न तो महक बसी है और न ही आंखों में सौन्दर्यबोध। न लोकजीवन के रसमय रचना संसार की अनुभूति है और न ही लोकसाहित्य के लयात्मक राग के प्रति संवेदना और अनुराग। सहनशीलता, सामूहिकता, सहिष्णुता, न्याय, प्रेम-सद्भाव एवं लोकतांत्रिकता के भावों का अंकुरण न होने के कारण उनकी सोच एवं कार्य व्यवहार में एक प्रकार का एकाकीपन दिखायी पड़ता है। उसमें अंदर से रचनात्मक रिक्तता है और रसिकता का अभाव भी।