Thursday, April 18, 2024
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किसान फल, फूलों आदि कृषि विविधिकरण की उन्नत तकनीकी को भली भांति जानकर बढ़ायें अपनी आय: सीडीओ

कानपुर देहातः जन सामना ब्यूरो। कृषि विविधिकरण में फूलों की खेती के बारे में मुख्य विकास अधिकारी केदारनाथ सिंह, कृषि वैज्ञानिक डा0 अरविन्द यादव व जिला उद्यान अधिकारी व रवि जैसवार ने बताया कि फूलों की मांग हमेशा रहती है मौसम के अनुसार कृषक फूलों की खेती करे तथा खेती करने से पहले उसके बारे में किस फूल की खेती किस मौसम में करनी है उसके लिए क्या क्या तैयारी करनी है इसकी भी जानकारी जिला कृषि उद्यान कार्यालय से सम्पर्क कर तो निश्चित लाभ गेंदा के फूलों की डिमांड रहती है। जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि किसी सरकारी या गैर सरकारी प्रतिष्ठान का उद्घाटन/शुभारंभ पर्वो घरों की सजावट करनी हो, या फिर वैवाहिक कार्यक्रम हों, बिना फूलों के पूरे नहीं हो सकते, वहीं पूजन के लिए भी फूलों की जरूरत रहती है. इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रमों में भी फूलों की मांग बनी रहती है. ऐसे में गेंदा, गुलाब, ग्लोडियस आदि की खेती करना काफी फायदे का सौदा है।
विकास भवन के सभाक्ष में चल रहे जनपदस्तरीय दो दिवसीय औद्योनिक विकास गोष्ठी/सेमिनार के आज अंतिम दिन कृषि वैज्ञानिकों अधिकारियों द्वारा फूलों, पपीता, आंवला, अमरूद आदि की खेती के साथ ही सूक्ष्म सिंचाई पद्धति औषधिय फसलों के उत्पादन फसल प्रबन्धन औद्यानिक फसलों हेतु मृदा तथा पोषण प्रबन्धन, कृषकों की समस्या, फसलों में कीट एवं रोग प्रबन्धन पर विस्तार से चर्चा हुयी। सहायक निदेशक सूचना प्रमोद कुमार ने बताया कि गुलाब एक बहुवर्षीय, झाड़ीदार, कंटीला, पुष्पीय पौधा है जिसमें बहुत सुंदर सुगंधित फूल लगते हैं। इसकी 100 से अधिक जातियां हैं जिनमें से अधिकांश एशियाई मूल की हैं। जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी है। भारत सरकार द्वारा 12 फरवरी को गुलाब-दिवस भी घोषित किया है। गुलाब का फूल कोमलता और सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है, इसी से लोग छोटे बच्चों की उपमा गुलाब के फूल से देते हैं। इसी प्रकार गेंदा के कुछ प्रजातियों जैसे-हजारा और पांवर प्रजाति की फसल वर्ष भर की जा सकती है। एक फसल के खत्म होते ही दूसरी फसल के लिए पौध तैयार कर ली जाती है।
मुख्य विकास अधिकारी केदारनाथ सिंह व कृषि वैज्ञानिक डा. अरविन्द यादव ने बताया कि गेंदा की खेती में जहां लागत काफी कम होती हैं, वहीं आमदनी काफी अधिक होती है. गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। इसकी फसल दो महीने में प्राप्त की जा सकती है यदि अपना निजी खेत हैं तो एक बीघा में लागत एक हजार से डेढ़ हजार रुपये की लगती है, वहीं सिंचाई की भी अधिक जरूरत नहीं होती. मात्र दो से तीन सिंचाई करने से ही खेती लहलहाने लगती है, जबकि पैदावार ढाई से तीन कुंटल तक प्रति बीघा तक हो जाती है. गेंदा फूल बाजार में 70 से 80 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है. त्योहारों और वैवाहिक कार्यक्रमों में जब इसकी मांग बढ़ जाती है तो दाम 100 रुपये प्रति किलो तक के हिसाब से मिल जाते हैं. गेंदा की खेती को बढावा देने वाले किसान रामगोपाल, अशोक, आनन्द किशोर, बाबू लाल निषाद आदि ने बताते हैं कि गेंदा की खेती में लागत कम हैं. त्योहारों में अच्छे दाम मिल जाते हैं, और इसकी डिमांड पूरे वर्ष ही विभिन्न कार्यक्रमों के चलते बनी रहती है।
जिलाधिकारी कार्यालय, विकास भवन, एसपी कार्यालय, सीएमओ कार्यालय, बीएसए कार्यालय, होमगार्ड कार्यालय, केएस चैहान, वरिष्ठ पत्रकार जयकुमार मिश्रा, आशीष अवस्थी, अंजनी पाण्डेय, बाढ़ापुर रोड पर पत्रकार हनुमान गुप्ता, एसडीएम मनोज कुमार सिंह, डीएसओ अंशिका दीक्षित, प्रिया गुप्ता, नितिन परिहार, प्रागदत्त आदि की निजी वाटिकाओं किराये पर सत्येन्द्र कुमार द्वारा ली गयी एक वाटिका, प्रगतिशील किसान बाबू लाल निषाद की फूलों की वाटिकाओं, गमलो में गेदें के फूल लहलहा रहे हैं जिसे देखा जा सकता है जो सुन्दरता, आकर्षण आदि के रूप में है।
कृषि वैज्ञानिक उप निदेशक उद्यान घनश्याम, अरविन्द कुमार यादव, डा0 राजेश कुमार, डा0 अभिमन्यु, सोहनलाल वर्मा आदि वैज्ञानिकांे नेे किसानों को सलाह दी कि वे समयानकूल जो कृषि की जानी है उसकी खेती करनी चाहिए और इसमें भी कृषि विविधिकरण में विशेष ध्यान दे। ऊसर व बंजर भूमि में भी अच्छी पैदावार के लिए जमीन का परीक्षण कराकर पहले उसका बंजरपन खत्म कर खेती करे। ऊसर खत्म करने वाले पौधों को लगाने से खेती का बंजरपन व ऊसर समाप्त होता है। उन्होंने कहा कि किसान जैविक खेती पर अधिक ध्यान दे तथा खाद का प्रयोग संतुलित रूप में करें। हमारे देश व प्रदेश का पारम्परिक खेती पर अधिक निर्भरता है जबकि अब व्यावसायिक खेती जैसे मसालों, फलों-फूलों आदि कृषि विविधकरण की खेती को भी कृषकों द्वारा अपनाया जाना चाहिए जिससे कि कृषकांे की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर जो आकड़े निकल कर आये है उनमें मछली पालन/पशुपालन किसानों के कल्याण के लिए अनेकों लाभपरक योजनाएं प्रारम्भ की हैं जिससे किसान निरन्तर लाभ ले रहा है परिणाम स्वरूप उसके मान-सम्मान व समृद्धि में बृद्धि हुई है। किसानों की खुशहाली व समृद्धि के लिए दी जा रही नवीन जानकारी व नवीन तकनीकी को किसान भली भांति आत्मसात कर अमल में लाकर खेती का कार्य करें। जनपद में उन्नतिशील खाद व बीज की कोई कमी नहीं है। कृषि विधिकरण व जैविक खेती का प्रयोगकर उत्पादकता में वृद्धि लायें। जिलाधिकारी द्वारा किसानों को अपने सम्बोधन में जानकारी दी गयी थी कि कृषि अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है, प्राकृतिक संसाधनों को बचाएं। केन्द्र सरकार किसानों 2022 मंे दोगुनी आय करने का लक्ष्य है। इसके लिए किसान भी अपने मन मस्ष्तिक में कृषि के प्रति पूरी लगन से कृषि करें। किसान अपने खेत खाली न रखे। कृषि विविधिकरण तकनीकी अपनाये। किसान देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है, किसान की प्रगति से ही देश की प्रगति सम्भव है। कृषि विकास के क्षेत्र में असीम सम्भावनाएं हैं, किसान पशु घटक, पशु पालन, मुर्गी पालन, पशुपालन, मत्स्य पालन, मधुमखी पालन आदि पर भी ध्यान दे तथा कृषि विविधिकरण को भी अपनाए। इस मौके पर कई किसानों ने भी अपने विचार रखे तथा किसानों ने पशुपालन, उद्यान, मत्स्य, कृषि आदि विभागों की प्रदर्शनी को देखा। जिलाधिकारी कार्यालय के सामने मुख्य विकास अधिकारी केदारनाथ सिंह ने अधिकारियों को लहलहाते गंेदा को दिखाते हुए कहा कि अधिकारी गेदे की पौधो को लगाये तथा किसानों को भी प्रेरित करे इससे उसके आय में इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों का मानना है कि जहां पर गेंदा होता है वहां पर सुन्दरता तो होती ही है गेंदे की सुगंध से मच्छर आदि कीडे मकोडे आदि में भी कमी आते है तथा पर्यावरण स्वच्छ भी रहता है।