Wednesday, April 17, 2024
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हास्य-व्यंग्य : हमें गर्व है कि हम गधे हैं……..

2017.03.06.1 ssp adeep shukal23 फरवरी के बाद से जंगल के राजा की नीद उड़ी हुई थी। अपने प्रकृति निर्मित आवास के शयनकक्ष में आज सुबह से ही इधर से उधर चक्कर पे चक्कर मारे जा रहे थे। दो, तीन बार बाहर भी झाँक आये थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों। बच्चों के साथ छू-छू खेल रही महारानी तिरछी निगाहों से बड़ी देर से उन्हें निहार रही थीं। आखिर उन्होंने पूंछ ही लिया “क्या बात है प्राणनाथ, बड़े परेशान दिखायी दे रहे हो? क्या किसी ने आपकी गैरत को ललकारा है जो इतने व्यग्र हो रहे हो, मुझे आदेश दीजिये प्राणेश्वर, कौन है गुस्ताख, मै एक ही पंजे से उसके प्राण पखेरू कर दूंगी”। चेहरे पर परेशानी का भाव लिये महाराज ने महारानी की ओर देखा और बोले “नहीं ऐसा कुछ भी नहीं करना है महारानी, कोई विशेष बात नहीं है। गजराज को बुलाया है, उनके आने के बाद ही कुछ सोचूंगा“ , “ऐसा क्या है जो आप मुझे नहीं बताना चाहते हैं ?” महारानी के इतना पूंछते ही दरबान लकड़बग्घा आ गया और सर झुकाकर बोला “महाराज की जय हो, महामन्त्री गजराज पधारे हैं, आपका दर्शन चाहते हैं, सेवक के लिए क्या आदेश है महाराज” , “ठीक है उन्हें अन्दर भेज दो“, “जो आज्ञा महाराज“ कहते हुए लकड़बग्घा चला गया। थोड़ी देर में गजराज आ गये उन्होंने महाराज का अभिवादन किया “आओ गजराज आओ, बड़ी देर कर दी आने में“, “कुछ नहीं महाराज, दरअसल हमारे पड़ोस में बनबिलार और बन्दर में सुबह-सुबह विवाद हो गया था, बस उन्हीं को शान्त कराने के चक्कर में थोड़ी देर हो गई” , “अच्छा-अच्छा, निपट गया, क्यों लड़ गये थे दोनों ?”, “कुछ नहीं महाराज, बस यूँ ही गधे के चक्कर में…….”, “ग..ग..ग..गधे के चक्कर में“ कहते हुए महराज को जैसे चक्कर आ गया हो।

वह तो महारानी ने सभाला न होता तो शायद महाराज गिर ही पड़ते। गजराज ने महाराज की पीठ पर सूड़ फेरते हुए कहा “महाराज, आपकी तबियत तो ठीक है न?”, “पता नहीं इन्हें क्या हो गया है? पिछले कई दिनों से परेशान-परेशान से हैं, हमें भी कुछ नहीं बताया, खाना भी ठीक से नहीं खा रहे हैं…” इसके आगे महारानी कुछ बोलती महाराज ने उन्हें चुप रहने का संकेत दे दिया और बोले “नौकर मूषक से कहो कि गजराज के लिए कुछ नाश्ता वगैरह लेकर आये, आओ गजराज हम लोग बैठकर बात करते हैं” कहते हुए महाराज आसन पर विराजमान हो गये उन्हीं के पास गजराज भी बैठ गये। मूषक को नाश्ते का आॅर्डर देकर महारानी भी आकर महाराज के बगल में बैठ गयीं। बच्चे महारानी के पास आकर उछल-कूद करने लगे। महाराज ने बच्चों को लगभग डांटते हुए कहा “चलो बच्चा लोग, बाहर खेलो जाकर, हमको गजराज अंकल से कुछ जरुरी बात करनी है“। बच्चे गये तो लेकिन गजराज अंकल से पीठ पर घुमाने का वादा लेकर। नौकर मूषक गजराज के लिए लगभग बीस बार में थोड़ा-थोड़ा नाश्ता ला पाया और हांफने लगा। गजराज पूरा नाश्ता एक ही बार में सटक गये। उनके लिए पानी लाने की हिम्मत अब मूषक में नहीं रही थी। वह हांफते हुए सोच रहा था कि कहीं गजराज ने पानी मांग लिया तो वह ढो-ढो के मर ही जायेगा लेकिन गजराज ने मूषक की परशानी भांप ली थी। इसलिए उन्होंने पानी नहीं माँगा। तभी मूषक महाराज और महारानी की नजर बचाकर धीरे से खिसक गया। महाराज गजराज से बोले “यार गजराज, ये गधे आजकल क्या कर रहे हैं ? अरे हाँ वो तुमने अभी बन्दर और बनबिलार के झगड़े में भी गधे का नाम लिया था”, “जी महाराज, दरअसल झगड़े की शुरुआत बच्चों से हुई थी। बन्दर के बच्चे कह रहे थे कि गधा चाचा हमारे पापा के जिगरी दोस्त हैं और बनबिलार के बच्चे कह रहे थे कि गधा चाचा हमारे पिताजी के खास दोस्त हैं। इसी में पहले बच्चों-बच्चों में विवाद हुआ फिर बड़े-बड़े भिड़ गये। असल में यू. पी. के विधानसभा चुनाव में इस बार प्रधानमन्त्री और मुख्यमन्त्री के बीच गधे पर काफी लम्बा वाकयुद्ध हो गया। आपने भी देखा होगा कि अखबार से लेकर टी.वी. चैनलों तक कई रोज अपने गधा भाई ही छाये रहे। अब आप को तो पता ही है महाराज कि जो ज्यादा चर्चित हो जाता है, हर कोई खुद को उसका निकट सम्बन्धी बताने लगता है। यही गधे भाई के साथ हो रहा है”, “अरे यह गधा ही तो मेरी परेशानी का कारण है गजराज“ कहते हुए महाराज की बेचैनी बढ़ गयी। उधर महाराज के मुंह से गधे का नाम सुनते ही महारानी के तेवर बदल गये वह लगभग दहाड़ते हुए बोलीं “क्या ? गधा, मैं अभी जाकर उसको सबक सिखाती हूँ। युग बीत गये हैं गधे का मांस खाए हुए आज यह भी इच्छा पूरी हो जाएगी। दुष्ट गधे, मैं आ रही हूँ, देखती हूँ आज तुझे मुझसे कौन बचाता है” कहते हुए महारानी उठकर खड़ी हो गयीं लेकिन तभी महाराज ने उन्हें पकड़कर बैठा लिया और बोले “अरे-अरे महारानी, क्या गजब करने जा रही हो पहले हालात को समझो, तुम औरतों को हमेशा जल्दी क्यों रहती है? अभी तो गधे की चर्चा केवल देश के भीतर ही हो रही है और अगर तुमने जरा भी वेवकूफी की तो मामला संयुक्त राष्ट्र तक पहुँच सकता है, तब गधा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन जायेगा और अगर कहीं ऐसा हो गया तो जानती हो सबसे पहले क्या होगा? न मै महाराज रहूँगा और न तुम महारानी ही। तब फिर फिरना म्यांऊ-म्यांऊ करते हुए“। महाराज की बात महारानी को थोड़ी-थोड़ी समझ में आ गयी परन्तु म्यांऊ-म्यांऊ शब्द पर जाकर महारानी अटक गयीं, उन्होंने महाराज से इसका मतलब पूंछना चाहा परन्तु महाराज उन्हें बोलने का मौका दिए बगैर गजराज की ओर मुखातिब होते हुए बोले “यार गजराज कुछ सोचो, तुम्हीं से मुझे उम्मीद है। जिस तरह से इन गधों की पापुलेरिटी बढ़ रही है उससे तो मुझे अपना सिंहासन खतरे में नजर आ रहा है। अब बताइए मै जंगल का राजा हूँ और मेरी कहीं कोई चर्चा नहीं है। ऐसा लगता है जैसे मैं कहीं हूँ ही नहीं। आखिर ये गधे लोग ऐसा क्या कर रहे हैं जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री से लेकर भारत के प्रधानमन्त्री तक गधे पर लम्बे-लम्बे भाषण दे रहे हैं। तुम्हंे याद होगा, भारत के एक पूर्व प्रधानमन्त्री ने एक बार गधे की पूजा करने की बात की थी। तब जंगल के सभी जानवरों को मुझसे नमस्ते करने में भी आफत हो रही थी। उस समय सारा कुछ कैसे मैनेज हुआ था यह तुमसे बेहतर और कौन जानता है। अब एक बार फिर से वही गधा। गजराज, तुम तो जानते ही हो कि इन्टरनेट के इस युग में कोई भी खबर एक ही पल में शहर के गंदे पानी की तरह पूरे जंगल में यत्र-तत्र सर्वत्र व्याप्त हो जाती है। मुझे तो राज्य में बगावत होने का भय सता रहा है। सारे जानवर मिलकर कहीं गधे को ही जंगल का राजा न घोषित कर दें और हमारी हालत धोबी के कुत्ते की तरह हो जाये“ महारानी को महाराज की बात अब पूरी तरह से समझ में आयी। महाराज को धैर्य बंधाते हुए गजराज ने कहा “परेशान न हो महाराज, ऐसा कुछ भी नहीं होगा और यदि कदाचित हुआ भी तो गधा भाई खुद ही मना कर देंगे। जहाँ तक उनकी पापुलेरिटी का सवाल है, वह तो खैर बढ़ी है। इसी चक्कर में कई जानवरों की पत्नियाँ गधे भाई को अपना दिल तक दे बैठी हैं। जिसकी वजह से कई घरों में कलह भी हो रही है। अपने सेनापति चीता महोदय की पत्नी ने तो उनसे साफ-साफ कह दिया कि तुम्हारे जैसे गुमनाम जानवर के साथ रहने से तो अच्छा है कि मैं किसी गधे के साथ भाग जाऊं” यह बात सुनकर महारानी खिलखिलाकर हंस पड़ी। महाराज भी मुस्करा दिए। “और तो और महाराज आपको तो पता ही है कि पुराने जमाने में एक घोड़ी ने गधे से गन्धर्व विवाह किया था। जिनसे खच्चर पैदा हुए थे लेकिन खच्चरों ने गधे भाइयों को कभी भी अपना बाप स्वीकार नहीं किया। जबकि इधर सारे खच्चर अपने गधे भाइयों को न केवल खुलेआम अपना बाप बता रहे हैं बल्कि उनको देखते ही बाप वाला पूरा आदर भाव भी दे रहे हैं”। अगले दाहिने पंजे से अपना सर खुजाते हुए महाराज बोले “ऐसा करो गजराज, कल दरबार लगाओ और उसमे गधों के मुखिया को हाजिर करो, दरबार में ही उससे बात करूँगा”, “जो आज्ञा महाराज” कहते हुए गजराज उठे और महाराज को प्रणाम करके चले गये। खबरची सियार से उन्होंने सभी जानवर प्रतिनिधियों को अगले दिन दरबार में आने के लिए सूचना देने को कहा तथा गधा प्रतिनिधि को बुलाने का जिम्मा बन्दर और बनबिलार को सौप दिया।
अगले दिन तय समय पर जंगल के सभी जानवर प्रतिनिधि दरबार में एकत्रित हो गये। गधा प्रतिनिधि सबसे पहले ही आ गया था। बस यही उसका गधापन है। वरना महत्वपूर्ण लोग तो हमेशा बिलम्ब से ही पहुँचते हैं। सेनापति चीता को तो गधा फूटी आँख नहीं सुहा रहा था। उसका बस चले तो गधे को एक ही झप्पटे में खतम कर दे लेकिन एक तो महाराज का भय दूसरा घर में पत्नी का खौप। इसलिए केवल गधे को घूरकर ही गुस्सा ठंडा कर रहा था। खैर तब तक महाराज और माहारानी भी आ गये। उनके आते ही गजराज ने दरबार की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। गजराज बिना किसी भूमिका के गधे से बोले “गधा भाई, महाराज यह जानना चाहते हैं कि आप लोगों ने ऐसा क्या किया है जिससे उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री से लेकर भारत के प्रधानमन्त्री तक आपके बारे में सार्वजानिक मंचों से चर्चा कर रहे हैं। महाराज को संदेह है कि आप लोग उनके विरुद्ध षडयंत्र करके उनकी जगह लेना चाहते हो। क्या आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है ?” इससे पहले कि गधा कुछ बोलता सेनापति चीता दहाड़ उठा“ महाराज, ऐसे षडयंत्रकारी को तत्काल मृत्युदण्ड दे देना चाहिए। मैं अपने एक ही पंजे के वार से अभी इसे समाप्त किये देता हूँ। इसे ही क्यों समूचे गधा परिवार को ही मै आज समाप्त कर दूंगा“ कहते हुए चीता जैसे ही आगे बढ़ा, महाराज ने उसे डांटकर रोक दिया। चीते के बारे में गजराज द्वारा बतायी गयी कल वाली बात याद करके महारानी खिलखिलाकर हंस पड़ीं। उनके हंसते ही गधे को छोड़कर बांकी जानवर भी हंस पड़े। महाराज भी मुस्करा दिए। अब चीते की हालत देखने लायक थी। महाराज के इल्जाम से आहत और सेनापति के गुस्से से भयभीत बेचारे गधे को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है। गजराज के दोबारा कहने पर गधे ने हिम्मत करके बोलना शुरू किया “महाराज, मैं आम जानवर भला आपके विरुद्ध क्या षडयंत्र करूँगा। मैं तो आज पहली बार महामन्त्री जी के मुंह से सुन रहा हूँ कि किसी मुख्यमन्त्री और प्रधानमन्त्री ने हमारे विषय में भी कुछ बोला है। दिनभर दूसरों का बोझा ढोते-ढोते हम इतना थक जाते हैं कि रात में होश ही नहीं रहता है। सुबह जल्दी उठाकर फिर काम पर लगा दिया जाता है। न कोई छुट्टी न कोई आराम। बस काम ही काम। आज यहाँ तो कल वहाँ। अब आप ही बताइए महाराज, कि हम कैसे जानेगे कि हमारे बारे में कौन और क्या बोल रहा है ? जब से होश संभाला है तब से दूसरों का बोझा ही तो ढो रहा हूँ। हमारी पूरी जिन्दगी बोझा ढोते ही बीत जाती है और बदले में आज तक हमें मिला क्या? सिर्फ और सिर्फ हिकारत और खाने के नाम पर सूखी घास। बोझा तो हमारे अश्वबन्धु भी ढोते हैं परन्तु उन्हें चने और न जाने क्या-क्या खिलाया जाता है। अगर कहीं धोखे से हमारे किसी बच्चे ने अश्वों की नाद में मुंह डाल दिया तो उसी क्षण उनको बेरहमी से पीट दिया गया। तब हमारे दिलों पर क्या बीतती होगी, इस बारे में क्या कभी किसी ने सोचा है? यदि कभी हमने बोलने का प्रयास किया तो तत्काल पीठ पर डंडा पड़ गया और हमारी आवाज वहीं दबा दी गयी। आज गधा शब्द अपने आप में एक गाली बन चुका है। हालाकि साहित्यकारों ने हमें कई नाम दिए हैं जैसे-खर, गर्दभ, धूसर, रासभ, बेशर, चक्रीवान, रजतवाहन और बैसाखनन्दन आदि परन्तु फाईनली हमें गधा या गदहा ही कहा गया। जहां तक चर्चा की बात है, चर्चा तो हमारी हर युग में हुई परन्तु हमारे हालात जमाने से वैसे ही चले आ रहे हैं। महान राजनीतिज्ञ चाणक्य से लेकर भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर जी तक। किसी ने हमारे गुण ग्रहण करने की बात कही तो किसी ने हमारी पूजा करने का संदेश दिया। और अब आप बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री और भारत के प्रधानमन्त्री भी हमारी चर्चा कर रहे हैं। महाराज मैं अल्पज्ञानी तो बस इतना ही समझ पाया हूँ कि आम आदमी और आम जानवर की चर्चा करके खुद को चर्चा में बनाये रखने का रिवाज जमाने से चला आ रहा है और आगे भी इसी तरह चलता रहेगा। आम आदमी तब भी आम था, आज भी है और आगे भी आम ही रहेगा। रोजी-रोटी के लिए वह पहले भी संघर्ष करता रहा है, आज भी कर रहा है और आगे भी करता रहेगा। ठीक इसी तरह से हम गधों की कितनी भी चर्चा क्यों न हो जाये, सूखी घास के लिए हम तब भी बोझा ढोते थे आज भी ढो रहे हैं और आगे भी ढोते रहेंगे। हमें सिंहासन की आश न तब थी न आज है और न आगे रहेगी। हम इतने में ही संतुष्ट हैं महाराज। छल, दंभ, द्वेष, पाखण्ड और झूठ से दूर अपने परिश्रम पर ही हमें पूर्ण विश्वास है। इसी कारण हमें गर्व है कि हम गधे हैं। बस महाराज अब हमें आगे और कुछ भी नहीं कहना है।
अब तक महाराज की सारी चिंता दूर हो चुकी थी। उन्होंने सिंहासन से उतर कर गधे को गले लगाया। अगले दिन होली का त्योहार था। महाराज के आदेश पर खरगोश और लोमड़ी रंग ले आये। सभी जानवरों ने जमकर होली खेली और एक दुसरे को गले लगाने के बाद अपने-अपने घर चले गये।2017.03.06.1 ssp adeep shukal1

-डाॅ. दीपकुमार शुक्ल, Kanpur, India