Friday, April 26, 2024
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Daily Archives: 5th April 2017

नारी के उत्थान के सपने सिर्फ नारी विमर्श से नही संजोये जा सकते

portal head web news2जालौन, जन सामना ब्यूरो। आधुनिक परिवेश में अधिकांश लेखकों द्वारा नारी विमर्श पर सृजन किया जा रहा है जो कि नारी उत्थान का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में रचने में अहम भूमिका निभा सकता है। लेकिन अभी तक के अपने चिर-परिचित अनुभवों को आधार बनाकर यह कहना बिल्कुल भी अनुचित नही होगा कि नारी उत्थान के सपने सिर्फ नारी विमर्श पर लेखन से नही सजोये जा सकते है बल्कि ये लड़ाई ये मुहिम नारी के अधिकारों की है तकदीर एवं तस्वीर बदलने की है तो मुझे लगता है कि इस दिशा में सफलता हासिल करने के लिये सर्वप्रथम नारी को जागरूक होने और अपने अधिकारों को जानने की आवश्यकता है तभी ये लेखन एक सार्थक लेखन सिद्ध हो सकता है हालाँकि इस बात में भी कोई कसर नही है कि लेखन ने समाज को दिशा और दशा दी है इसलिये नारी विमर्श पर हो रहा सृजन भी कंही न कंही महत्वपूर्ण है।

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कांग्रेसियों ने मनाई जगजीवन राम की जयन्ती

2017.04.05. 1 ssp congressकानपुर नगर,जन सामना ब्यूरो। कानपुर महानगर कांग्रेस कमेटी के तत्वाधान में कांग्रेस मुख्यालय तिलक हाल में भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व0 जगजीवन राम की जयन्ती के अवसर पर उनके तैलचित्र पर माल्यापर्ण किया गया। इस अवसर पर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हर प्रकाश अग्निहोत्री ने कहा कि बाबू जी एक व्यक्ति नही विचार थे। उन्होने अपने राजनैतिक जीवन का शंखनाद कलकत्ता से शुरू किया। जब गांधीजी ने अंग्रेजों भारत छोडो का नारा दिया तो बाबू जी ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अतं में वह गिरफ्तार कर लिये गये। देश की स्वतंत्रता के बाद वह कई बार भारत सरकार के मंत्री रहे, जिसमें रक्षा, कृषि, संचार व रेल मंत्री आदि पद को पूर्ण निष्ठा से निभाते हुए भारत के उप प्रधानमंत्री होने का गौरव भी प्राप्त किया। वर्तमान समय में नवयुवकों को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सीख लेने की बात कही।

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जिनकी आँखे खुली नहीं, वो कहते ‘रात’ है……..

मेरा ख्याल है कि ‘कबूतर और बिल्ली’ वाली कहावत तो सब जानते ही होंगे। अगर नहीं भी जानते हैं तो उसका भाव यह है- कि यदि आप किसी भी समस्या को सम्मुख देखकर, उससे किनारा करने का प्रयास करें, तो वह खुद-ब-खुद सामने से नहीं जाएगी, बल्कि उसे हटाने के लिए हमें सतत प्रयास करना पड़ेगा। गीता में भगवान ने भी अर्जुन से यही कहा था कि- हालांकि मैं सब जानने वाला हूँ। फिर भी-ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः। अर्थात मैं हर व्यक्ति को उसके कार्य के लिए प्रयुक्त तो करता हूँ लेकिन कार्य उसे ही करना पड़ता है। निष्कर्षतः अपना काम स्वयं ही करना पड़ता है। समस्याओं से मुँह चुरा लेने मात्र से समस्या भागती नहीं है, बल्कि वह और बढती है।
इसी संदर्भ में यदि हम देखें तो कई समस्यायें ऐसी हैं, जिनकी तरफ से हम इतने ज्यादा उदासीन हैं कि हमारा ध्यान कभी उधर जाता ही नहीं। जाता भी है तो हम उस पर बात ही नहीं करना चाहते हैं। ऐसा ही एक मुद्दा है ‘श्रीराम मंदिर’। आखिर हम इतने पवित्र मुद्दे में एक-दूजे से इतने मतभेद क्यूँ बनायें हुए हंत ? क्यूँ नहीं साधारण तरीके से बिना किसी जोर-जबरदस्ती के इसे निपटाना चाहते हैं ? क्यूँ हमेशा यह मुद्दा आते ही हमारे मन में एक डर और भय का माहौल क्रीयेट हो जाता है? दरअसल यह डर, लज्जा,संकोच एक दो दिन का नहीं है। यह सालों से प्रायोजित तरीके से हमारे मनोमष्तिष्क में बैठाया गया है, इतिहास की गलत जानकारी देकर। एक बात और, यदि आपको लगता है कि हर लड़ाई में सिर्फ नेताओं द्वारा ही आग भड़काई जाती है। तो ध्यान दीजिये, आप गलत हैं। इस लड़ाई में आग लगाने का काम नेताओं की बजाय चाटुकार इतिहासकारों ने किया है।

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