Saturday, April 20, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार (page 3)

लेख/विचार

1978 में संघ परिवार ने कर्पूरी ठाकुर व विश्वनाथ प्रताप सिंह का किया था विरोध

वह वर्ष 1978 था, जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने वंचित और हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। यह उस समय एक अद्वितीय पहल थी और ठाकुर उत्तर भारत में सामाजिक न्याय आंदोलन के एक वास्तविक अग्रदूत के रूप में उभरे।
ठाकुर तब जनता पार्टी में जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) गुट के समर्थन से अपनी सरकार चला रहे थे। बिहार में जनसंघ के संस्थापक कैलाशपति मिश्रा ठाकुर के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे।
वरिष्ठ समाजवादी नेता और राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘‘इस गुट के विधायक खुलेआम सड़कों पर आ गए, ठाकुर का विरोध किया और उन्हें मौखिक रूप से गाली दी।’’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं, जिनमें से अधिकांश ‘उच्च’ जाति से थे, ने नारा लगाया, ‘ये आरक्षण कहां से आई, कर्पूरी के माई बियायी।’ यह पूछता है, ‘यह आरक्षण कहां से आया? कर्पूरी की माँ ने इसे जन्म दिया है।’
संघ परिवार के कार्यकर्ता अक्सर हिंसक हो जाते थे और कई जगहों पर ‘उच्च’ जातियों को पिछड़ी जातियों के खिलाफ भड़काते थे, जिससे खूनी झड़पें होती थीं। इस आरक्षण के लागू होने के तुरंत बाद 1979 में ठाकुर की सरकार गिर गई, लेकिन ठाकुर ने इसे लागू करके सामाजिक न्याय आंदोलन के लिए एक आदर्श स्थापित किया जो आगे चलकर उत्तर भारत की राजनीति को प्रभावित किया।

Read More »

मानसिक स्वास्थ्य जीवन का सबसे अनदेखा क्षेत्र

अभी कुछ दिन पहले सोनी नाम की पेशेंट मेरे पास क्लीनिक पर आई और फूट-फूट कर रोने लगी। मैं चुपचाप देखती रही और पूछा क्या बात है। कहने लगी आजकल मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता। मैं अपनी 3 साल के बच्चे को बहुत पीटने लगी हूं उसे अपशब्द इस्तेमाल करती हूं। मैंने उसकी सारी बातें सुनी उसने बताया गुस्सा बहुत आ रहा है, किसी चीज में मन नहीं लगता, पूरे बदन में दर्द, बहुत थकान, नींद ना आना और भूख न लगना। दरअसल सोनी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी और अवसाद की शिकार हो रही थी। उसको काउंसलिंग और उचित उपचार की जरूरत थी। ऐसे न जाने कितने लोग मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और हीन भावना से ग्रसित हो रहे हैं। मानव जीवन में मानसिक स्वास्थ्य का बहुत महत्व है पर हम लोग सबसे ज्यादा इसको अनदेखा करते हैं जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण होता है उसी भांति मानसिक स्वास्थ्य भी। जनवरी माह भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य माह के रूप में मनाया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य है मानसिक स्वास्थ्य का जीवन में महत्वत्ता, जागरूकता बढ़ाना और समर्थन प्रदान करना है। इस माह में विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाती है जिसका मुख्य उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को बेहतरीन दिशा में एक सामूहिक जागरूकता बढ़ाना है।

Read More »

देश के स्वाभिमान की पुनर्स्थापना है श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

आज सौभाग्य का पावन अवसर है। सैकड़ों वर्षों बाद यह शुभ घड़ी आई है…अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर रामलला विराजमान हो रहे हैं। पूरे संसार के सनातनी हर्षित, आनंदित और प्रफुल्लित हैं। समूचे विश्व में जयश्रीराम गुंजायमान है। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हमें यह सुखद दृश्य देखने का अवसर मिला है। श्रीरामजी की गरिमा के अनुरूप मंदिर निर्माण के लिये पीढ़ियों ने पांच सौ वर्ष तक संघर्ष किया इसमें अनगिनत बलिदान हुए।
राम मंदिर हमारी संस्कृति, हमारी आस्था, राष्ट्रीयत्व और सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। यह सनातन समाज के संकल्प, संघर्ष और जिजीविषा का ही परिणाम है कि आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में श्रीराम मंदिर निर्माण का सपना साकार हो रहा है। यह उमंग और उत्सव का अवसर है, समूचा समाज उल्लास के साथ खुशियां मना रहा है।
राजा राम प्रत्येक भारतीय और विश्व में व्याप्त सनातनियों के आदर्श हैं। वे सत्यनिष्ठा के प्रतीक, सदाचरण और आदर्श पुरुष के साकार रूप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्रीराम जन्मस्थान मंदिर निर्माण के हर्षाेल्लास के साथ हमें भगवान राम के जीवन से प्रेरणा भी लेनी चाहिए। कर्तव्यपथ पर प्रतिबद्ध श्रीराम के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे सबके थे और सबको साथ लेकर चलते थे। सबका विश्वास अर्जित करने के लिये अपने सुखों का भी त्याग कर देते थे।

Read More »

रोम-रोम में है बसे, मेरे राम।

राम नाम है हर जगह, राम जाप चहुंओर।
चाहे जाकर देख लो, नभ तल के हर छोर।।

नगर अयोध्या, हर जगह, त्रेता की झंकार।
राम राज्य का ख्वाब जो, आज हुआ साकार।।

रखो लाज संसार की, आओ मेरे राम।
मिटे शोक मद मोह सब, जगत बने सुखधाम।।

मानव के अधिकार सब, होने लगे बहाल।
राम राज्य के दौर में, रहते सभी निहाल।।

रामराज्य की कल्पना, होगी तब साकार।
धर्म, कर्म, सच, श्रम बने, उन्नति के आधार।।

Read More »

माँ और मुहाजिरनामा के लिए मशहूर मुनव्वर राना अब हमारे बीच नहीं

काफी समय से बीमार चल रहे मुनव्वर राना का उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में रविवार (14 जनवरी 2024) रात लगभग 11 बजे इंतकाल हो गया। मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के एक गांव में आयशा ख़ातून और अनवर राना के घर हुआ था। भारत विभाजन के समय उनके बहुत से नज़दीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य पाकिस्तान चले गए थे लेकिन उनके पिता ने यहीं रहने का फैसला किया। बाद में उनका परिवार कोलकाता चला गया। जहां उन्होने अपनी तालीम मुकम्मल की। उनका असली नाम सय्यद मुनव्वर अली था। मुनव्वर राना अपने परिवार के साथ लखनऊ में रहते थे। उनकी अहलिया रैनी राना, बेटी सुमैया राना समेत चार और बेटियां और बेटा तबरेज़ उनके परिवार में मौजूद हैं। उन्होंने अब्बास अली ख़ान बेखुद और वाली आसी को अपना उस्ताद बनाया था। मुनव्वर राना दुनिया के जाने-माने शायरों में गिने जाते हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता शाहदाबा के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Read More »

। हिन्दी दिवस ।

चंदन सी महके और दमके,
तू मलय गंध लेकर हिंदी।
बच्चों की किलकारी में तू,
भारत मां को प्यारी हिंदी।
हम सबकी पहचान है हिंदी,
हिंदुस्तान की aजान है हिंदी।
भारत का अभिमान है हिंदी
सबके लिए आसान है हिंदी
स्वर व्यंजन से बंधी ये हिंदी,
कस्तूरी सी ये महके हिंदी।
रणक्षेत्र में जैसे ढाल ये हिंदी
क्षत्रिय की तलवार यह हिंदी
मां की गोदी का लाल ये हिंदी ,
माझी की पतवार ये हिंदी ।
नववधू की कुमकुम जैसे हिंदी ,
जन-जन के हृदय बसी ये हिंदी ।
हिंदुस्तान की शान ये हिंदी ,
अपनों की पहचान ये हिंदी ।
भक्तों की अरदास ये हिंदी ,
मांओं की उपवास ये हिंदी।
मीरा रसखान कबीर तुलसी ,
है महावीर की वाणी हिंदी ।
गंगा यमुना और सरस्वती ,
संगम की यह रवानी हिंदी ।
साधक की “नाज़” बनी साधना हिंदी,
शंखों से मुखरित होती हिंदी।

Read More »

वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है हिन्दी

आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय ही आज भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझते हों किन्तु सच यही है कि हिन्दी ऐसी भाषा है, जो प्रत्येक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है। सही मायनों में विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है भारत की राजभाषा हिन्दी, जो न केवल भारत में बल्कि अब दुनिया के अनेक देशों में बोली जाती है। वैश्विक स्तर पर हिन्दी की बढ़ती ताकत का सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यही है कि आज विश्वभर में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं और दुनियाभर के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। दुनियाभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करने तथा हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की महानता के प्रचार-प्रसार का एक सशक्त माध्यम है। पहली बार नागपुर में 10 जनवरी 1975 को विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। तत्पश्चात् भारत के बाहर मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद, अमेरिका इत्यादि देशों में भी विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया।
विश्वभर की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था ‘एथ्नोलॉग’ के द्वारा जब हिन्दी को दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा बताया जाता है तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। अगर हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या की बात की जाए तो विश्वभर में पचहतर करोड़ से भी ज्यादा लोग हिन्दी बोलते हैं।

Read More »

स्वराज्य से रामराज्य की ओर बढ़ता भारत

सारा ज़ग है प्रेरणा, प्रभाव सिर्फ राम हैं ।
भाव सूचियाँ ब़हुत हैं, भाव सिर्फ राम हैं।।

भारत राष्ट्र का नाम आते ही भारत के अनेक उपनाम जुड़ते चले जाते हैं यथा, विश्व गुरु भारत, सांस्कृतिक भारत, आध्यात्मिक भारत, गौरवशाली भारत, संस्कारित भारत, सनातनी भारत, कलात्मक भारत, प्राचीन भारत, अनादि भारत, अनंत भारत, विज्ञानमय भारत और मृत्युंजय भारत। जब इतनी उपमाओं से भारत विभूषित है तो समझ आता है, कि कितना सबकुछ दुनिया को भारत ने दिया हैं। दूसरी ओर यह पीड़ा भी होती है कि इतना कुछ देने वाला मेरा भारत आज कहां खो गया ? इसके साथ ही प्रश्नों की एक श्रंखला बनती है कि क्या भारत कभी फिर वैसा बन पाएगा ? क्या फिर कोई राजा हरिश्चंद्र आएगा जो सत्य का पाठ पढ़ाएगा ? क्या फिर से कोई राजा राम आयेंगे और राम राज्य का स्वप्न साकार करेंगे ? क्या कोई चन्द्रगुप्त आएगा जो फिर भारत की सीमाओं को सुरक्षित करेगा ? क्या कोई समुद्रगुप्त पुनरू भारत में स्वर्णयुग लाएगा ? क्या कोई शिवाजी फिर से जन-जन में स्वराज्य का भाव पैदा करेगा ? ऐसे कई प्रश्न बरसों से तलाश किए जाते रहे हैं जिनका उत्तर एक ही हो सकता है कि पुनः भारत अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करे। भारत के संपूर्ण समाज में फिर से भारत को रामराज्य बनाने की इच्छा हिलोरे लें, तभी भारत का भाग्योदय संभव हैं ।
इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ घटित हुई हैं, जिसके पश्चात देश के भविष्य ने करवट ली। वर्तमान में भी देश में ऐसी एक घटना हुई जिसके पश्चात भारत में नया उत्साह और उमंग के साथ भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक उदय और भारत के भाग्योदय के संकेत दिखाई देने लगे हैं ।
देश की सर्वाेच्च न्यायिक संस्था सर्वाेच्च न्यायालय ने 9 नवंबर 2019 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में फैसला दिया। पूरे देश में दीपावली मनाई गई और श्रीराम मंदिर के निर्माण के मार्ग खुल गए ।

Read More »

मनुवाद का वितण्डावाद

हाल ही में कांग्रेस के एक पूर्व सांसद ने ट्विटर पर बयान दिया था कि 500 साल बाद मनुवाद की वापसी हो रही है। इसे कांग्रेसी नेता की ओछी बयानबाजी तथा वितण्डावाद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मनुस्मृतिः भारतीय वांग्मय का वेदों के बाद सबसे पुराना ग्रन्थ है, जिसे प्राचीन संविधान कहा जाता है। इसी मनुस्मृतिः के आधार पर न केवल भारत बल्कि विश्व के बहुत बड़े भूभाग की सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था हजारों वर्षों तक निर्बाध एवं निर्विवादित रूप से संचालित होती रही है। मनुस्मृतिः में जहाँ सृष्टि की उत्त्पति का वृतान्त है वहीँ चारो वर्णों, चारो आश्रमों, सोलह संस्कारों, राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, सेना प्रबन्धन तथा दण्ड विधान की सकारण नियमावली भी वर्णित है। इसमें अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्य या दायित्व को अधिक महत्त्व दिया गया है। भारतीय संस्कृति की अवधारणा के मूल ग्रन्थ मनुस्मृतिः में वर्णित दिनचर्या का अनुपालन करके कोई भी व्यक्ति अनुशासित एवं निरोगी जीवन जी सकता है। किसी भी बालक को संस्कारी तथा कर्तव्यपरायण बनाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया इस ग्रन्थ में चरणबद्ध तरीके से दी गयी है। परन्तु दुर्भाग्यवश भारतीय संस्कृति का प्रणेता यह महान ग्रन्थ भारत की ही धरती पर दिन प्रतिदिन अस्पृश्य बनता जा रहा है। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में डॉ.भीमराव आम्बेडकर इस ग्रन्थ के सबसे बड़े आलोचक बनकर उभरे थे। जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृतिः को सर्वाधिक दोषी मानते हुए उन्होंने 25 दिसम्बर 1927 को इसकी प्रति अलाव में जला दी थी। तब महात्मा गाँधी ने मनुस्मृतिः को जलाने का विरोध करते हुए कहा था कि ‘यह ग्रन्थ किसी के अधिकारों को नहीं अपितु कर्तव्यों को परिभाषित करता है।

Read More »

‘यादें’ जज्बातों के रंग से रंगी ग़ज़लें

‘देखनी है तो इसकी उमर देखें, गलतियां नहीं इसका हुनर देखें।
दबे पैर सोये जज्बात जगाकर, सौरभ की यादों का असर देखें।।’
मात्र 16 साल की उम्रके पड़ाव पर साल 2005 में कक्षा ग्यारह में पढ़ते हुए डॉ सत्यवान सौरभ ने अपनी पहली पुस्तक ‘यादें’ लिखी थी। जो नई दिल्ली के प्रबोध प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। प्रख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर और रामकुमार आत्रेय की नज़र में सत्यवान सौरभ उस समय इतनी अल्पायु में गजल संग्रह के रचनाकार होने का गौरव प्राप्त करने वाले संभावित प्रथम रचनाकार रहें होंगे। अब 18 साल बाद ‘यादें’ का दूसरा संस्करण 2023 में आया है। प्रस्तुत लेख स्वर्गीय रामकुमार आत्रेय द्वारा लिखी गई ‘यादें’ की समीक्षा है जो साल 2005 में लिखी गई। -स्व. रामकुमार आत्रेय
सत्यवान सौरभ एक ऐसी प्रतिभा का नाम है जिसके पांव पालने में दिखाई देने लगे हैं। यहां मैं पालने शब्द का उपयोग जानबूझकर कर रहा हूं। क्योंकि सौरभ अभी सिर्फ 16 वर्षों 3 माह के ही तो हैं। अभी वरिष्ठ विद्यालय की कक्षा 10 जमा 2 के छात्र हैं और गजलें कहने लगे हैं। सिर्फ कहते ही नहीं पत्र-पत्रिकाओं में ससम्मान प्रकाशित भी होते हैं। ‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यानी प्रतिभा की पहचान व्यक्ति के आरंभिक चरण से ही अपना प्रदर्शन करना शुरू कर देती है। प्रतिभावान व्यक्ति लम्बे समय तक किसी भी भीड़ से गुम नहीं रह सकता। उसमें छुपी उसकी प्रतिभा एक न एक दिन उसे शोहरत के पथ पर अग्रसर कर ही देती है। यह बात गाँव बड़वा के उभरते कवि, शायर सत्यवान ‘सौरभ’ पर बिल्कुल सटीक बैठती है। छात्रकाल से ही लेखन के क्षेत्र में रूचि रखने वाले इस अदने से कच्ची उम्र के शायर ने अपनी ग़ज़लनुमा कविताओं के माध्यम से ख्यालों-जज्बातों की दुनिया को किसी नई नवेली दुल्हन की तरह इस कदर सँवारा है कि ग़ज़लों में कहीं भी इनकी उम्र का आभास नहीं होता। यादें उनकी गजलों का पहला संकलन है। इस संकलन में अपनी बात में सौरभ गजल के प्रभाव के विषय में खुद कहते हैं-
न बहार, न आसमान न जमीन होती है शायरी,
जज्बातों के रंगों से रंगीन होती है शायरी।
कल्पनाओं से लबरेज कविता सी नहीं होती,
जिंदगी के आंगन में अहसासे जमीन होती है शायरी।।
ठीक कह रहे हैं सौरभ। यह पंक्तियां जज्बातों का एक नमूना है। जज्बात और तर्क का रिश्ता बहुत दूर का होता है। सौरभ आयु के ऐसे पड़ाव पर है जहां जज्बातों का उफनता हुआ समुद्र होता है।

Read More »