Friday, April 26, 2024
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Monthly Archives: December 2017

यूनिट न बंद करने के निर्णय के सवाल पर उलझा है मामला

ऊंचाहार,रायबरेलीः जन सामना ब्यूरो। भारत सरकार ऊर्जा मंत्रालय की टीम एनटीपीसी हादशे मे जिम्मेदार तक पहुँचने के रास्ते मे बड़ी अड़चन आ रही है। चालू यूनिट मे इतने बड़े क्लिंकर को निकालने का निर्णय किसका था ? इस सवाल पर जांच टीम उलझी हुई है। एनटीपीसी के 6 नंबर ब्वायलर मे फंसे करीब 20 मीटर क्लिंकर को यूनिट के चालू अवस्था मे निकाला जा रहा था। जिसके कारण ब्वायलर ट्यूब , डक्ट और ड्राई ऐश सिस्टम फट गया था। जिसकेर कारण एनटीपीसी के तीन अतिरिक्त महाप्रबंधक समेत कुल 45 लोग मारे गए थे। इस हादशे की जांच के लिए भारत सरकार की कई टीमे लगी हुई है। जिसमे ऊर्जा मंत्रालय की टीम सोमवार को दूसरी बार ऊंचाहार आयी है। यह टीम मंगलवार को भी विभिन्न विंदुओ को खँगालने मे लगी रही है। जांच टीम यह जानना चाहती है कि चालू हालत मे क्लिंकर निकालने का निर्णय किसका था ? इस संबंध मे एनटीपीसी अधिकारी यही तर्क दे रहे है कि कंपनी मे सारे निर्णय समूहिक होते है। कसी एक व्यक्ति का निर्णय नहीं है। लेकिन जांच टीम इस तर्क से सहमत नहीं है। किसी भी यूनिट को बंद करने के लिए ब्वायलर मेंटीनेंस डिपार्टमेन्ट ( बीएमडी ) और ऑपरेशन विभाग मिलकर निर्णय लेते है।द्य इस बात कि जानकारी हासिल कि जा रही है कि दोनों विभागो ने ऐसा कोई सुझाव अधिकारियों को दिया था कि नहीं यदि दिया गया था तो उस पर अमल क्यो नहीं हुआ ? यदि नहीं दिया गया तो क्यो नहीं दिया गया। इसमे कहीं न कहीं किसी बड़े अधिकारी का दबाव था कि यूनिट को बंद न करके चालू हालत मे जोखिम भरा काम किया जाए। टीम यह भी जानने की कोशिश कर रही है कि आखिर विदूयुत उत्पादन बाधित न हो और जान जोखिम मे डालकर काम करने के लिछे कौन कौन है। ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि यूनिट को चालू रखना जरूरी था। टीम यह भी जानने की कोशिश कर रही है कि मौके पर सही स्थित का आंकलन करने मे चूक क्यो हुई ? क्योकि ऐसा माना जाता है कि 500 मेगावाट क्षमता वाली यूनिटों मे क्लिंकर अधिक बनता है। और तेजी के साथ बनता है। इस बात के जानकार लोग काम कर रहे थे , फिर भी यह हादशा क्यो हुआ ? इन तमाम सवालो का जवाब एनटीपीसी अधिकारी नहीं दे पा रही है। जांच टीम सही जवाब और सही जिम्मेदार को तय करके भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट देना चाहती है। जिसके आधार पर आगे की कार्यवाही की जाएगी।जांच टीम के सवालो के बारे मे एनटीपीसी का कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

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यातायात के नियमों को सख्ती से लागू करने की मांग

हाथरसः जन सामना संवाददाता। पर्यावरण सुरक्षा संस्थान के तत्वावधान में कामरेड भगवानदास मार्ग, मुरसान गेट स्थित मैथ पोइंट कोचिंग सेन्टर पर यातायात जागरूकता हेतु गोष्ठी आयोजित हुई।
पर्यावरण सुरक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भवतोष मिश्र ने अव्यवस्थित यातायात के कारणों व दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से प्रकाश डालते हुये व्यवस्थित यातायात के उपाय अपनाने पर बल दिया। उन्होंने जाम के झाम से जनता को निजात दिलाने हेतु अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाये जाने व बाजारों में भारी वाहनों के निर्धारित समय पर प्रवेश की पाबंदी के पहले से चले आ रहे नियम को सख्ती से लागू किये जाने की मांग उठायी। श्री मिश्र ने कहा कि यातायात सम्बन्धी विभिन्न मांगों को लेकर शीघ्र ही एक ज्ञापन जिले के प्रभारी मंत्री या पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को सौंपा जायेगा।
शिक्षाविद डा. ए. के. शर्मा ने कहा कि यातायात नियमों के बारे में लोगों को अवगत कराने व नियमों का पालन करने के लिये लोगों को प्रेरित करने हेतु यातायात जागरूकता अभियान सतत रूप से चलाने चाहिये। उन्होंने ड्राइविंग लाइसैंस बनाये जाने की प्रक्रिया को और सख्त बनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया।

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‘‘एड्सः रोग के प्रकोप संग सामाजिक तिरस्कार का दंश’’

इसे आधुनिक जीवन के खुलेपन का अवदान कहें या रोग द्वारा विज्ञान को पहली बार परास्त करने की दास्तान कि दुनिया भर के डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी एक बीमारी ऐसी है जिसकी अभी तक कोई औषधि विकसित नहीं हो पाई है। इस रोग का नाम है ‘एड्स’। एक ऐसी भयंकर और प्राणघातक बीमारी कि जिसका नाम सुनते हीं हम सब दहशत, उद्वेग, डर, घृणा और घबराहट से भर उठते हैं। दरअसल एच.आई.वी नामक इस बीमारी का वायरस एक बार शरीर में प्रवेश करने के बाद शरीर के प्रतिरक्षक पिंड व्यवस्था को तोड़ना शुरू करता है। जैसे-जैसे प्रतिरोधक क्षमता जीर्ण होती जाती है, वैसे-वैसे शरीर में अनेक प्रकार के संक्रमण उत्पन्न होते जाते हैं। ‘एड्स’ एच.आई.वी संक्रमण की अंतिम अवस्था है जिसमें रोगी की प्रतिरक्षक पिंड व्यवस्था पूर्णरूपेण ध्वस्त हो जाती है और वह बेहद हीं छोटी, साधारण-सी बीमारी से भी नहीं लड़ पाता, अत्यंत दुर्बल होकर सदैव घोर रूप से थका हुआ महसूस करता है। इस अवस्था में पहुँचने के बाद एच.आई.वी रोगी व्यक्ति तीन-चार वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहता। वायरस जनित अन्य बीमारियों और इस बीमारी में एक विशेष फर्क है कि जहाँ अन्य बीमारियाँ कुछ दिनों या कुछेक हफ्तों में अपने लक्षण प्रकट कर देती है वहीँ एड्स का वायरस बिना किसी प्रत्यक्ष लक्षण के महीनों / वर्षों तक शरीर के अन्दर चुपचाप टी-सेल में छुपा पड़ा रहता है, रोग से अनजान रोगी ऊपर से न केवल पूर्णतया स्वस्थ दिखता है, बल्कि वह स्वस्थ महसूस भी करता है। इसके विषाणु आठ से नौ वर्ष में विकसित होते हैं, जबकि इस अवधि के दौरान संक्रमित व्यक्ति बीमारी के वायरस को न जाने कितने लोगों में हस्तांतरित कर उन्हें भी संक्रमित कर चुका होता है। इसके वायरस के द्रुत गति से फैलने और रोग के महामारी का स्वरुप धरने के पीछे भी यही कारण है। इलाज शुरू होने से पहले हीं देर हो चुकी होती है जबकि वक्त रहते इलाज शुरू कर देने से रोग की उग्रता को काफी हद तक काबू में रखा जा सकता है, एक रिसर्च के मुताबिक भारत में 2.1 मिलियन लोग एच.आई.वी से प्रभावित हैं (2015) तथा दक्षिण अफीका और नाईजीरिया के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा एड्स प्रभावित देश है।

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