स्वच्छता अभियान में वो तेजी नहीं आ पा रही है जितना प्रयास किया जा रहा है। महानगरों के नजारों को देखकर तो यही प्रतीत होता कि स्वच्छता अभियान के बहाने कहीं कहीं तो सिर्फ फोटो खिचाऊ बहाना ही मिल रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘हमें गंदगी और खुले में शौच के खिलाफ लड़ाई लड़नी है, हमें पुरानी आदतों को बदलना है और महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है। हमारे गाँवों में महिलाओं का गौरव एक महत्त्वपूर्ण विषय है…खुले में शौच समाप्त होना चाहिये…शौचालयों का निर्माण होना चाहिये…उनका उपयोग होना चाहिये।’’
गौरतलब हो कि स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य 2 अक्तूबर, 2019 तक स्वच्छ और खुले में शौच से मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही शौचालयों के निर्माण में बढ़ोतरी दिनोंदिन की जा रही है और इसका उपयोग करने वालों की संख्या बढ़ी है, लेकिन शौचालय योजना भ्रष्टाचार से अछूत ना रह सकी। कहीं कहीं तो शौचालय बनाकर सिर्फ खाना पूर्ति ही कर ली गई। उनकी गुणवत्ता को पूरी तरह से नकारा गया है। इसमें दो राय नहीं कि पुराने ढर्रे की कार्यशैली के आदी हो चुके अधिकारी इस योजना को खूब पलीता लगा रहे हैं। इस मामले की शिकायतें जब होती हैं तो अधिकारी कार्रवाई के वजाय लीपापोती कर अपनी जेब जरूर भर लेते हैं। इस बन्दरबांट में निचली स्तर से लेकर जिले के आलाधिकारी भी अपनी सहभागिता निभा रहे हैं। खास बात यह भी है कि अधिकारी तो नजरअन्दाजी कर ही रहे हैं सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधि भी अपनी आंखें बन्द किए हैं और सबकुछ देखते हुए भी अनदेखा किये हैं।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह हैं कि स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफाॅर्मों का उपयोग किया गया। लेकिन इसे जितनी सफलता मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती दिख रही है।
हालांकि स्वच्छता केवल सफाईकर्मियों और सरकारी विभागों की जिम्मेदारी नहीं है। स्वच्छ भारत मिशन का प्राथमिक फोकस लोगों में व्यवहार के बदलाव से संबंधित है जिसे खुले में शौच से मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये मूलभूत उपकरण के रूप में माना जा सकता है। इसके तहत हुए शौचालयों के निर्माण ने ग्रामीण लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं क्योंकि उनमें रात के अंधेरे में खुले में शौच जाने की बाध्यता नहीं रह गई है। इसके अतिरिक्त घर में शौचालय निर्माण से खुले में शौच से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों में भी कमी आई है। इसके अलावा इस मिशन से लोगों में स्वच्छता के प्रति बेहतर व्यवहार को बढ़ावा मिला है तथा ठोस और द्रव कचरा प्रबंधन से भी स्वच्छता को बढ़ावा मिला है। लेकिन सही जानकारी व जागरूकता के चलते शौचालयों को उपयोग उस तरह से नहीं किया जा रहा है जिस तरह से किया जाना चाहिए। ग्रामीण परिवेश के अनेकानेक लोग आज भी पुरानी नजीर पेश करते देखे जा सकते हैं। वहीं कागजों में दौड़ाए गए जादूई घोड़े जरूर सफल होते दिख रहे। ओडीएफ के नाम पर प्रमाण पत्र पाकर लोगों ने इस अभियान के प्रति इतिश्री कर ली जबकि जमीनी हकीकत अधिकतर क्षेत्रों की कुछ अलग ही है। यही हाल रहा तो नियत समय तक अभियान को सफलता कितनी मिलेगी यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है।