करवाचौथ का पावन त्यौहार शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता है। अखंड सौभाग्य के वरदान की लालसा और निशाकर का इंतज़ार प्रेम की असीम भावना को प्रदर्शित करता है। भावनाओं और संवेदनाओं से ही इंसान जीवंत है। कितना अनूठा एहसास है की कोई आपके प्रेम में क्षुधा और प्यास सब भूल बैठा। आपकी मंगलकामना ही उसके लिए सर्वोपरि है। प्रेम की महत्ता तो स्वयं ईश्वर ने व्यक्त की है। राधा-कृष्ण रूप, सती-शिव रूप और सीता-राम के रूप में। प्रत्येक प्रेम में प्रभु ने उत्कृष्टता सिद्ध की है। प्रेम और उम्र और बंधन से पूर्णतः मुक्त है। सोलह श्रृंगार की लावण्यता को परिपूर्णता प्रेम ही प्रदान करता है। पति के प्रेम के कारण ही तो मुख पर अनूठी चमक-दमक सुशोभित होती है। प्रेम के कारण ही तो भावनाओं का प्रवाह विद्यमान है। प्यार की बहार, मंद बयार, फूलों का खिलना, चाँदनी रातें, गुनगुनाती बातें; यह सभी उपमाएँ संवेदनाओं और भावनाओं की उड़ान है।
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धूमधाम से निकलेगी वीरांगना झलकारी बाई की शोभायात्रा
फिरोजाबाद। वीरांगना झलकारी बाई जयंती व शोभायात्रा के अध्यक्ष पार्षद मनोज शंखवार एवं् नव नियुक्त टीम का कबीर नगर स्थित महात्मा बुद्ध जूनियर हाईस्कूल में अखिल भारतीय कोरी व कोली समाज के जिलाध्यक्ष रामकिशोर शंखवार ने भव्य स्वागत किया।
इस अवसर पर रामकिशोर शंखवार ने कहा कि कोरी समाज पार्षद मनोज शंखवार के नेतृत्व में कोरी समाज के सहयोग से ऐतिहासिक शोभायात्रा निकलेगी। शोभायात्रा के पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश माहौर, पूर्व महामंत्री अमृत लाल शंखवार, पूर्व कोषाध्यक्ष दिवारी लाल शंखवार द्वारा युवा टीम को आशीर्वाद दिया। इससे पूर्व वरिष्ठ समाजसेवी डा.वी.डी निर्मल एडवोकेट, केशवदेव शंखवार, ब्रजलाल एडवोकेट, डा.डी.एल. कॉल, डा दूर्वीन सिंह, किशनगोपाल ने मां झलकारी बाई के चित्र पर माल्यार्पण किया। संचालन वरिष्ठ उपाध्यक्ष रामकुमार शंखवार ने किया।
भाई की कलाई
वक्त बहुत तेजी से आगे बढ़ते जाता है और हम उसके साथ बढ़ते हुए भी पीछे रह जाते हैं यादें पीछा ही नहीं छोड़ती। बचपन में मैं घर में सभी की बहुत लाडली थी। किसी भी चीज के लिए भैया को बाद में मुझे सबसे पहले पूछा जाता था। घर में कोई भी प्रसंग हो मेरी उपस्थिति हर जगह रहती थी और मैं हर जगह आगे भी रहती थी। चंचल स्वभाव के कारण मैं सभी की नजरों में चढ़ी रहती थी। चंचला कहकर सभी लोग मुझे चिढ़ाते थे और इसी वजह से मेरा नाम भी चंचला पड़ गया था। रक्षाबंधन पर भी मेरी जिद रहती थी कि सबसे पहले राखी मैं ही बांधूंगी और मेरी राखी आगे ही होनी चाहिए लेकिन मालूम नहीं था कि ये पहले और आगे का चक्कर में मुझे भविष्य में राखी बांधने के लिए कलाई नहीं मिलेगी। शादी के बाद दूरी की वजह से मेरा जल्दी-जल्दी पीहर जाना मुश्किल हो गया था, फिर जब भी समय मिलता तो साल डेढ़ साल में एक बार जाकर आ जाती थी। घर से कभी दूर ना रहने वाली मैं स्टेशन पर पापा को देखकर ही सब सामान छोड़कर उनसे लिपट जाया करती थी। वो एक आलिंगन, वह दुलार और आंखों में सुकून उस बीते वक्त की खामी को खत्म कर देता था। भैया भी मुस्कुराते हुए पीछे से सारा सामान लेकर मुझे चिढ़ते हुए घर लेकर आते थे।
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“इसको कहा था कि ऑफिस से छुट्टी ले ले लेकिन मेरी सुनती कहां है?” रेवती गुस्से में बड़बड़ा रही थी। “छह बजे लड़के वाले आ जाएंगे इसे देखने और अभी तो इसका तैयार होना भी बाकी है और कम से कम एक नाश्ता तो अपने हाथ का बना कर रखें क्या सब बाजार का ही खिलाएंगे?” रेवती अपने पति शंकर की ओर देखते हुए बोली।
शंकर:- “कहा तो था मैंने कि जल्दी घर आ जाना, रुको! मैं फोन करता हूं उसे। आजकल ट्रैफिक भी बहुत ज्यादा रहता है कहीं फस गई होगी।”
शंकर:- “हेलो! बेटा कहां हो? घर आने में कितनी देर है? तुम्हें पता है सब फिर भी लेट कर रही हो? चलो जल्दी घर आ जाओ।”
मुस्कान:- “जी पापा! बस निकल ही रही थी, आज काम भी जरा ज्यादा था बस आधे घंटे में आ रही हूं।”
शंकर:- “हां! ठीक है ।”
(शंकर रेवती से):- “आ रही है आधे घंटे में”
रेवती:- “भगवान करे सब ठीक से निपट जाए। आज छुट्टी ले लेती तो अच्छा होता। खैर।”
करीब पौने घंटे में मुस्कान घर आई।
मुस्कान:- “सॉरी – सॉरी जरा लेट हो गई। बस! अभी दस मिनट में रेडी हो जाती हूं।” रेवती के चेहरे पर नाराजगी के भाव थे।
मुस्कान:- “मम्मी ढोकले का गोल रेडी है ना अभी बना देती हूं।”
मुस्कान:- “अरे मम्मी! क्यों गुस्सा कर रही हो सब कुछ समय पर हो जाएगा। उन्हें आने में अभी एक घंटा बाकी है तब तक सब हो जाएगा।” रेवती बिना कुछ बोले किचन में चली जाती है। करीब आधे घंटे बाद मुस्कान पटियाला सलवार कमीज पहन कर बाहर आती है। कानों में झुमके, आंखों में काजल, गले में पतली चेन, हाथों में कड़े डालकर बहुत प्यारी लग रही थी। वो सादगी में भी बहुत अच्छी दिख रही थी।
रेवती:- “अरे! लिपस्टिक क्यों नहीं लगाई और वह पेंडेंट सेट रखा था वो पहनना था बेटा! इतना सिंपल कोई तैयार होता है क्या?”
‘लैंगिक भेदभाव’ विषयक व्याख्यान कार्यक्रम का किया आयोजन
कानपुर नगरः जन सामना ब्यूरो। क्राइस्ट चर्च डिग्री कॉलेज में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में विमेन डेवलपमेंट एंड जेंडर सैसटाइजेशन सेल द्वारा लैंगिक भेदभाव अर्थात जेंडर सेंसटाइजेशन विषयक एक व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन कॉलेज के प्राचार्य प्रो0 जोसेफ डेनियल के दिशानिर्देशन में किया गया। सीएसजेएम यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की प्रोफेसर एंड डीन कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ0 अंशु यादव रहीं। वहीं कार्यक्रम का संचालन डॉ अंकिता लाल ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत उप प्रचार्या प्रो0 सबीना बोदरा ने ईश्वर आराधना के साथ की। इस मौके पर महिला सेल की संयोजिका प्रो0 शिप्रा श्रीवास्तव ने स्वागत भाषण देकर सभी का स्वागत किया।
मुख्यवक्ता डॉ0 अंशु यादव ने छात्र छात्राओं को समाज में व्याप्त जेंडर सेंसटाइजेशन यानीकि लैंगिक भेदभाव के बारे में जानकारी देकर जागरूक किया और हमारे समाज में प्रचलित विभिन्न रूढ़ियों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुये बालक एवं बालिका अर्थात दोनों के लिए शिक्षा के महत्व के बारे में विस्तार से बताया।
इस दौरान प्रो0 अंशु यादव को स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन प्रो सूफिया शहाब ने किया।
आज समाज में महिलाएं स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तत्पर हैं: परियोजना प्रमुख
पवन कुमार गुप्ताः रायबरेली। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एनटीपीसी ऊंचाहार में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ मनाया गया। एनटीपीसी ऊंचाहार की महिला कर्मियों व प्रियदर्शिनी लेडीज़ क्लब की वरिष्ठ सदस्याओं के लिए एक वेबिनार का भी आयोजन किया गया। इस वेबिनार का विषय श्इन्सपायर इन्क्लूजनश् रहा। महिला कर्मियों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया और कार्यक्रम को सफल बनाया। इस अवसर पर महिला सशक्तिकरण पर केन्द्रित एक प्रश्नोत्तरी का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर केक काटकर सभी का मुंह मीठा करवाया गया।
महिला दिवस के इस खास अवसर पर मूंज क्राफ्ट प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। जिसके अंतर्गत नैगम सामाजिक दायित्व के तहत चलने वाले मूंज प्रशिक्षण के प्रशिक्षुओं को स्वयं बनाए गए मूंज के उत्पादों को बेचने का अवसर प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर एनटीपीसी ऊंचाहार के कर्मचारियों ने भारत सरकार के संकल्प वोकल फॉर लोकल को बल देते हुए बढ़ी संख्या में मूंज उत्पादों को खरीदकर ग्रामीण महिलाओं की आजीविका बढ़ाने में सहायक भूमिका निभाई।
इसके साथ ही महिला संविदाकर्मियों को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। जिसमें जीवन ज्योति चिकित्सालय की मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. मधु सिंह, डॉ. रंजना केरकेट्टा व डॉ. बबीता ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर व अशुद्ध पानी के सेवन से होने वाली बीमारियों के क्या लक्षण और उपचार हैं।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व परियोजना प्रमुख मनदीप सिंह छाबड़ा ने कहा कि मुझे इस बात की बहुत अधिक प्रसन्नता है कि समाज में महिलाएं स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तत्पर हैं। एनटीपीसी में करियर की दृष्टि से महिलाओं के लिए समान अवसर और आगे बढ़ने की सुस्पष्ट नीति है, जिसका लाभ लेते हुए महिला कर्मचारी अपने करियर के शिखर पर पहुंच रही हैं तथा राष्ट्र को विद्युत के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महिलाएं अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे रही हैं।
क्यों महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं?
जिस दिन किसी भी क्षेत्र में आवेदक अथवा कर्मचारी को उसकी योग्यता के दम पर आंका जाएगा ना कि उसके महिला या पुरुष होने के आधार पर, तभी सही मायनों में हम महिला दिवस जैसे आयोजनों के प्रयोजन को सिद्ध कर पाएंगे।
ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य की बात होती है। और जब वो जन्म एक स्त्री के रूप में मिलता है तो वो परमसौभाग्य का विषय होता है। क्योंकि स्त्री ईश्वर की सबसे खूबसूरत वो कलाकृति है जिसे उसने सृजन करने की पात्रता दी है।
सनातन संस्कृति के अनुसार संसार के हर जीव की भांति स्त्री और पुरुष दोनों में ही ईश्वर का अंश होता है लेकिन स्त्री को उसने कुछ विशेष गुणों से नवाजा है। यह गुण उसमें नैसर्गिक रूप से पाए जाते हैं जैसे सहनशीलता, कोमलता, प्रेम,त्याग, बलिदान ममता। यह स्त्री में पाए जाने वाले गुणों की ही महिमा होती है कि अगर किसी पुरुष में स्त्री के गुण प्रवेश करते हैं तो वो देवत्व को प्राप्त होता है लेकिन अगर किसी स्त्री में पुरुषों के गुण प्रवेश करते हैं तो वो दुर्गा का अवतार चंडी का रूप धर लेती है जो विध्वंसकारी होता है। किंतु वही स्त्री अपने स्त्रियोचित नैसर्गिक गुणों के साथ एक गृहलक्ष्मी के रूप में आनपूर्णा और एक माँ के रूप में ईश्वर स्वरूपा बन जाती है।
देखा जाए तो इस सृष्टि के क्रम को आगे बढाने की प्रक्रिया में जो जिम्मेदारियां ईश्वर ने एक स्त्री को सौंपी हैं उनके लिए एक नारी में इन गुणों का होना आवश्यक भी है। लेकिन इसके साथ ही हमारी सनातन संस्कृति में शिव का अर्धनारीश्वर रूप हमें यह भी बताता है कि स्त्री और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिद्वंद्वी नहीं और स्त्री के ये गुण उसकी शक्ति हैं कमजोरी नहीं।
भारतीय नारी के उत्पीड़न का समाधान
हर साल वूमेन डे पर स्त्री विमर्श लिखते हुए सोचती हूॅं अगले साल स्त्री स्वतंत्रता पर लिखूॅंगी। लेकिन विमर्श का समाधान होता ही नहीं और अगले साल भी वही प्रताड़ना का मंज़र पन्नों पर उकेरना पड़ता है। जानें कब करवट लेगी ज़िंदगी कमज़ोर शब्द से उलझते थकी महिलाओं की, सदियों से चले आ रहे स्त्री विमर्श पर अब तो पटापेक्ष हो।
‘उत्पीड़न की आदी मत बन पहचान अपनी शख़्सियत को, ए नारी तू संपूर्ण अधिकारी है खुलवा सारी वसीयत को’
भले ही आज हम खुद को खुले विचारों वाले आधुनिक समाज का हिस्सा समझे पर साहित्य के पन्नों को ‘स्त्री विमर्श’ विषय शायद बहुत पसंद है, तभी तो सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते आज भी कहीं न कहीं महिलाएँ उत्पीड़न का शिकार होती रहती है। क्यूँ कोई इस विषय वस्तु के समापन और समाधान की दिशा में कदम नहीं बढ़ाता।
आने वाली आधुनिक पीढ़ी की लड़कियाँ याद रखो। महिलाओं के त्याग, हुनर, सहनशीलता और समझदारी को याद रखना परिवार, समाज और इतिहास ने कभी न जरूरी समझा है, न कभी समझेगा। ‘निगरानी, दमन, बंदिशें या असमानता की चक्की में पीसते सदियों से स्त्री कमज़ोर ही कहलाई है।’
लड़कियाँ अपना कर्तव्य निभाते परिवार के लिए ज़िंदगी खर्च करते लड़की से औरत बन जाती है।
विकास की बदलती तस्वीर में महिलाओं की भागीदारी
भारत एक सम्पन्न परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश है, जहां महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। ग्रामीण परिदृश्य में महिलाओं की बड़ी आबादी है। आजादी के बाद महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा, लेकिन उनके सशक्तिकरण की गति दशकों तक धीमी रही। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है। विशेषकर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों, बैंकिंग सेवाओं और डिजिटलीकरण की सहायता से महिलाओं के सामाजिक और वित्तीय सशक्तिकरण की शुरुआत की जा सकती है।
भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में “हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं”। अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। मदर टेरेसा से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए है।
एक समय था जब महिलाएँ चार दिवारी तक सिमित थी, घर परिवारों के दायित्वों के इर्दगिर्द सारा जीवन निर्वाह हो जाता था। समय एवं परिस्थिति के अनुसार आज यह परिवेश में काफी बदलाव आया है। आजादी के बाद महिलाओं की शिक्षा के साथ-साथ रोजगार, राजनीति, आदि में सहभागिता ने देश विकास को एक धुरी प्रदान की है।
महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं। “जब एक आदमी को शिक्षित होता हैं, तो वह एक आदमी शिक्षित होता है हैं परन्तु जब एक महिला को शिक्षित होती है तो मान लीजिये एक पीढ़ी शिक्षित होती हैं”। भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है।
लैंगिक समानता का मूल चिंतन
ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य की बात होती है और जब वो जन्म एक स्त्री के रूप में मिलता है तोवो परमसौभाग्य का विषय होता है क्योंकि स्त्री ईश्वर की सबसे खूबसूरत वो कलाकृति है जिसे उसने सृजन करने की पात्रता दी है। सनातन संस्कृति के अनुसार संसार के हर जीव की भांति स्त्री और पुरुष दोनों में ही ईश्वर का अंश होता है लेकिन स्त्री को उसने कुछ विशेष गुणों से नवाजा है। यह गुण उसमें नैसर्गिक रूप से पाए जाते हैं जैसे सहनशीलता, कोमलता, प्रेम, त्याग, बलिदान, ममता। यह स्त्री में पाए जाने वाले गुणों की ही महिमा होती है कि अगर किसी पुरुष में स्त्री के गुण प्रवेश करते हैं तो वो देवत्व को प्राप्त होता है लेकिन अगर किसी स्त्री में पुरुषों के गुण प्रवेश करते हैं तो वो दुर्गा का अवतार चंडी का रूप धर लेती है जो विध्वंसकारी होता है। किंतु वही स्त्री अपने स्त्रियोचित नैसर्गिक गुणों के साथ एक गृह लक्ष्मी के रूप में आनपूर्णा और एक माँ के रूप में ईश्वर स्वरूपा बन जाती है।
देखा जाए तो इस सृष्टि के क्रम को आगे बढाने की प्रक्रिया में जो जिम्मेदारियां ईश्वर ने एक स्त्री को सौंपी हैं उनके लिए एक नारी में इन गुणों का होना आवश्यक भी है। लेकिन इसके साथ ही हमारी सनातन संस्कृति में शिव का अर्धनारीश्वर रूप हमें यह भी बताता है कि स्त्री और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिद्वंद्वी नहीं और स्त्री के ये गुण उसकी शक्ति हैं कमजोरी नहीं। भारत तो वो भूमि रही है जहां प्रभु श्री राम ने भी सीता माता की अनुपस्थिति में अश्वमेध यज्ञ उनकी सोने की मूर्ति के साथ किया था। भारत की संस्कृति तो वो है जहाँ कृष्ण भगवान को नन्दलाल कहा जाता था तो वो देवकी नंदन और यशोदा नन्दन भी थे। श्री राम दशरथ नन्दन थे तो कौशल्या नन्दन होने के साथ साथ सियावर भी थे। भारत तो वो राष्ट्र रहा है जहाँ मैत्रैयी गार्गी इंद्राणी लोपमुद्रा जैसी वेद मंत्र दृष्टा विदुषी महिलाएं थीं तो कैकई जैसी रानीयां भी थी जो युद्ध में राजा दशरथ की सारथी ही नहीं थीं बल्कि युद्ध में राजा दशरथ के घायल होने की अवस्था में उनकी प्राण रक्षक भी बनीं। लेकिन इसे क्या कहा जाए कि स्त्री शक्ति के ऐसे गौरवशाली सांस्कृतिक अतीत के बावजूद वर्तमान भारत में महिलाओं को सामाजिक रूप सशक्त करने की दिशा में सरकारों को महिला दिवस मनाने जैसे विभिन्न प्रयास करने पढ़ रहे हैं।