भारत सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को विनियमित करने और अवैध गेमिंग को रोकने के लिए, और गेमिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
DGGI को विशेष शक्तियाँ प्रदान:
1. अवैध ऑनलाइन गेमिंग वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति
2. जीएसटी चोरी की जांच करने की शक्ति
3. ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की निगरानी करने की शक्ति
गेम एडिक्शन को नियंत्रित करने के लिए:
1. राष्ट्रीय गेमिंग नीति बनाने की योजना
2. ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के लिए दिशानिर्देश
3. गेम एडिक्शन के लिए समर्थन सेवाएं
लेख/विचार
आखिर प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा का कारण क्या है ?
आंकड़ों के अनुसार, जो लोग आजीविका की तलाश में स्थानीय और क्षेत्रीय सीमाओं के पार जाते हैं, उन्हें अपने मेजबान समाज में स्थायी रूप से बाहरी समझे जाने का अपमान सहना पड़ता है। श्रमिकों को अक्सर टेलीविजन स्क्रीन पर दुखद घटनाओं के पात्र के रूप में दिखाया जाता है, जिससे उनके योगदान और उन्हें प्राप्त मान्यता के बीच का अंतर उजागर होता है। राष्ट्र के बुनियादी ढांचे के पीछे की ताकत होने के बावजूद, राष्ट्रीय महानता के विमर्श में उनकी भूमिका को शायद ही कभी स्वीकार किया जाता है। पॉलिसी शून्य होने के कारण अक्सर असुरक्षित छोड़ दिया जाता है यद्यपि प्रवासी कार्यबल राष्ट्रीय गौरव के प्रत्यक्ष चिह्नों में महत्वपूर्ण योगदान देता है, फिर भी उनके अधिकारों को नियंत्रित करने वाली नीतियों का घोर अभाव है।
Read More »मुकद्दर संवार लेता
ईश्वर ने कर्म हुनर साथ भेजा, अब तो समझना तुझे ही होगा।
हुनर कभी जाया नही जाता, अगर शिद्दत से तुमने है सीखा।
बदलाव यहां कौन नहीं कर पाता, जो अपने कर्म धर्म से दूर है होता।
जिंदगी में बदलाव तभी होगा, जब ख़ुद की खूबी पहचान लेगा।
मुकद्दर लेकर वह है जरूर आता, पर मुकद्दर कर्म से ही है पाता।
हर काम बिगाड़ देती है लालसा, अनचाहे अनाचार भी देती है करा।
जिंदगी में सतर्क रहना भी है होता, बदरंग हो जाती है जिंदगी वरना।
वक्त रहते हुनर को पहचान लेता, तेरा मुकद्दर खुद ब खुद संवर जाता।
राष्ट्रीय युवा दिवसः ऊर्जा, उत्साह, और आत्मनिर्भरता का संदेश
हर वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन महान संत और विचारक स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिनके विचार युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहे हैं। भारत सरकार ने 1984 में उनके आदर्शों को सम्मान देने हेतु इस दिन को युवा दिवस घोषित किया। इस दिन का उद्देश्य युवाओं में ऊर्जा, उत्साह, आत्मनिर्भरता, और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना को प्रोत्साहित करना है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’’
यह वाक्य हर युवा को प्रेरित करता है कि वह अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करे और पूरे जोश के साथ उसे प्राप्त करने का प्रयास करे।
गायब होती बेटियाँः आखिर किसकी बन रहीं शिकार ?
हरियाणा के हिसार में लापता बेटी की खोज में परेशान एक पिता ने मुख्यमंत्री नायब सैनी से मिलने का प्रयास किया। इस दौरान पुलिस ने सीएम के पास जाने से रोका तो दंपती ने आत्मदाह करने का प्रयास किया। घटना उस समय हुई जब मुख्यमंत्री का काफ़िला हिसार दौरे पर था। पिता ने ख़ुद पर पेट्रोल डालकर आत्महत्या करने की कोशिश की। लेकिन मौके पर मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने उसे समय रहते रोक लिया। गीता कॉलोनी निवासी के अनुसार 29 सितंबर से उसकी 16 साल की बेटी लापता है। थाने में शिकायत देकर गुमशुदगी दर्ज करवा चुके हैं। उसने बताया कि वह गाड़ी चलाता है, बेटी नौवीं कक्षा तक पढ़ी है। बताया कि 29 सितंबर की सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर वह घर से निकली थी। लेकिन लगभग चार माह बाद भी बेटी नहीं मिली। आखि़र कहाँ गायब हो जाती है देश की बेटियाँ? क्यों नहीं ढूँढ पाती बेटियों को हमारी पुलिस? इसने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध रुक नहीं रहे हैं। इसका एक मुख्य कारण इस मुद्दे को लेकर सभी राजनीतिक दलों में रुचि की कमी है।
Read More »आखिर क्यों नहीं थम रहा रुपये में गिरावट का सिलसिला ?
निर्यात की तुलना में आयात में वृद्धि के कारण व्यापार घाटा बढ़ने से विदेशी मुद्रा का बहिर्वाह बढ़ता है, जिससे रुपया कमजोर होता है। कच्चे तेल और सोने के बढ़ते आयात के कारण 2022 में भारत का रिकॉर्ड व्यापार घाटा रुपये के मूल्यह्रास को बढ़ाता है। भारतीय रुपये में गिरावट बाहरी क्षेत्र की कमज़ोरियों के बीच मुद्रा स्थिरता बनाए रखने की चुनौतियों को रेखांकित करती है। मुद्रा मूल्य में उतार-चढ़ाव वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और पूंजी बहिर्वाह के साथ-साथ राजकोषीय घाटे जैसे घरेलू कारकों से उत्पन्न होते हैं। भारत के बाहरी लचीलेपन को बढ़ाने और इसकी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए प्रभावी नीतिगत उपाय महत्त्वपूर्ण हैं।
Read More »अभिनंदन अभिनंदन है नववर्ष तेरा
हुजूर 2024 में क्या वक्त रहा, कुछ साथ रहा कुछ गया छूट।
माना तुम सबसे दूर चला जा रहा,यारों यह दस्तूर पुराना है खूब।
कभी ग़म दिया कभी कूल रखा, तुम जैसे भी थे हमें थे मंजूर।
अच्छा किया कुछ बुरा भी रहा, तेरी हाजिरी में रहा मैं भी हाजिर।
रही मेरी कोई शिकायत ना शिकवा, यह आना जाना पुराना है दस्तूर।
सीखाता भी ये सब को अवसर देना, सहर्ष करें नव वर्ष अभिनंदन शुरू।
खुशियों का उपहार नव वर्ष दे रहा, नव प्रभात बेला हो सबको स्वीकार।
अभिनंदन अभिनंदन है नव वर्ष तेरा, तू जीवन में सबके भर दे बहार।
2025 में आख़िर कैसा रहेगा राजनीतिक मतभेदों का पारा?
2025 में भारत का राजनीतिक पटल गरमा गरम रहेगा। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों के साथ-साथ बीएमसी के चुनाव भी होंगे। कांग्रेस संगठनात्मक बदलावों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जबकि भाजपा और संघ अपने 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बड़े आयोजन करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष के हो जाएंगे और भाजपा को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मिलेगा। 2024 भारतीय राजनीति के लिए एक महत्त्वपूर्ण साल था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सत्ता बरकरार रखी, लेकिन विपक्षी दलों ने भी अपनी चुनौती पेश की। राज्य चुनावों, किसान आंदोलनों, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक मुद्दों ने राजनीति को नया मोड़ दिया। यह साल यह दिखाता है कि भारतीय राजनीति अब केवल दो प्रमुख दलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि क्षेत्रीय और समाजवादी दल भी राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 2024 ने यह साबित किया कि भारतीय राजनीति में 2025 में और अधिक बदलाव और संघर्ष देखने को मिल सकता है।
-डॉ सत्यवान सौरभ
वर्ष 2025 चुनावों से परे देखने का एक अवसर प्रदान करता है। 2024 में, भारत, में राजनीति ने आश्चर्यजनक मोड़ लिया। ये घटनाक्रम कुछ जगहों पर अभूतपूर्व थे, दूसरों में तेज़ या अप्रत्याशित थे। इसने दिखा दिया कि भारतीय राजनीति में अब क्षेत्रीय दलों की ताकत लगातार बढ़ रही है और भविष्य में ये दल राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। 2025 में चुनावों से परे देखने का मौका मिलेगा। यह शायद ऐसा साल होगा जिसमें शासन केंद्र में होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव का एक संदेश यह था कि लोग संयम के साथ निरंतरता को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जानबूझकर जनादेश को ग़लत तरीके से पढ़ने का विकल्प चुना है। उनकी राजनीतिक स्थिति सख्त हो गई है और उन्होंने अपनी कटु प्रतिद्वंद्विता को रोज़मर्रा की राजनीति, संसद और उससे परे तक ले गए हैं।