⇒स्वच्छ भारत मिशन को ग्राम विकास अधिकारी व खण्ड विकास अधिकारी लगा रहे पलीता
⇒एडीओ पंचायत ने कहा 2012 की बेसलाइन पर किया गया ओडीएफ घोषित
⇒खण्ड विकास अधिकारी बोले जिला प्रशासन के कहने पर ओडीएफ घोषित किया
⇒दबी जुबान में बोले ग्राम प्रधान, कमीशनबाजी के चलते सब कुछ हो जाता है माफ
⇒सरकारें बदली लेकिन नहीं बदली स्थानीय स्तर के अधिकारियों की कार्यशैली
⇒शौचालयों के निर्माण में मानकों की उड़ाई गई जमकर धज्जियां, किया खूब गड़बड़झाला
⇒आधे-अधूरे बनाये गये शौचालयों को भी दिखा दिया गया उपयोग में
स्वप्निल तिवारी/नीरज राजपूतः कानपुर। कागजों पर ही पूरा बिधनू ब्लाॅक हो गया ‘खुले में शौच मुक्त’। जी हां स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में बनाये गये शौचालयों की जमीनी हकीकत यही है कि उन्हें कागजों पर बना दिया गया है और अधिकारियों ने उनके उपयोग करने की रिपोर्ट लगा कर ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।
‘खुले में शौच मुक्त भारत’ का स्वप्न देखने वाले देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के इस स्वप्न को बिधनू ब्लाॅक में पलीता लगाया जा रहा है और इस अभियान को पलीता लगाने में ग्राम प्रधान, ग्राम विकास अधिकारी/सचिव व एडीओ पंचायत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस अभियान को पलीता लगाने वाले ग्राम विकास अधिकारियों व ग्राम प्रधानों को खण्ड विकास अधिकारी से लेकर जिले स्तर के अधिकारियों का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है।
स्वच्छ भारत मिशन के अन्तर्गत बनाये गये शौचालयों की जमीनी हकीकत देखने के लिए बिधनू ब्लाॅक के मंझावन की वार्ड 1 बारा दुआरी मोहल्ले की आबादी में जब मीडिया टीम मौके पर पहुंची और शौचालयों की उपयोगिता पर बात की तो लोगों ने बताया कि प्रधान जी हम लोगों की सुनते ही नहीं और वो अपने ठेकेदार से अपने मनमाफिक निर्माण काम करवा रहे हैं। वहीं इस वाबत नाम ना छापने की शर्त पर कुछ ग्राम प्रधानों ने बताया कि 10 प्रतिशत तक कमीशन लिया जाता है और इसका माध्यम ग्राम विकास अधिकारी बन रहे हैं जो हम लोगों से उगाही करके जिले के अधिकारियों की जेबें भरने का काम कर रहे हैं इसी लिए सभी शिकायतों को दबा दिया जाता है और शौचालयों के निर्माण में खूब धांधली करवाई जा रही है, इसके बाद जो प्रधान कमीशन नहीं देते उन पर कार्रवाई कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।
कुछ भी हो लेकिन शौचालयों के निर्माण की जमीनी हकीकत वास्तव में कुछ अलग ही है। मंझावन की वार्ड 1 बारा दुआरी निवासी इसहाक की पत्नी अफसाना ने बताया कि मेरा शौचालय अभी चालू ही नहीं करवाया गया है और शौच के लिये मुझे खुले में जाना पड़ता है। प्रधान जी से कई बार कहा लेकिन वो मेरी समस्या को सुन ही नहीं रहे।
शबाना पत्नी रहीश आलम ने बताया कि उनका भी शौचालय उपयोग के लायक है ही नहीं। साथ ही स्थानीय निवासी गुड्डू पुत्र छुटकऊ, वसीर पुत्र मेंहदी हसन, छोटे सहित तमाम लोगों ने बताया कि शौचालय नाम के बना दिये गये हैं और उनका उपयोग नहीं कर पा रहा हूं। लोगों ने यह भी बताया कि ग्राम प्रधान रावेन्द्र गुप्ता ने अपने ठेकेदार से शौचालय अपने मनमाफिक बनवाये हैं और मानकों की धज्जियां जमकर उड़ाई हैं। ग्रामवासियों ने बताया कि प्रधान जी ने अपनी जेब भर ली है उन्हें इससे क्या मतलब कि शौचालय उपयोग लायक बनें या ना बनें। हालांकि मौके पर देखने को मिला कि कई शौचालयों में एक ही गड्ढा बना था तो कईयों के गड्ढे खुले पाये गये। लेकिन यहां ज्यादातर शौचालय उपयोग में नहीं लाये जा रहे हैं। अधिकतर लोगों ने खुले में शौच के लिए जाने की बात बताई।
इस बावत जब खण्ड विकास अधिकारी बिधनू, श्याम नारायण सिंह से जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया कि पूरा ब्लाॅक ही ओडीएफ घोषित किया जा चुका है। लेकिन जब पूंछा गया अभीतक तो कई परिवारों के शौचालयों को पूर्ण नहीं किया गया तो ओडीएफ कैसे घोषित कहा जाये? इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि जिला प्रशासन जाने जिसके इशारे पर ओडीएफ घोषित किया गया था।
ताजा मिली जानकारी के अनुसार जब मीडिया ने ओडीएफ की पोल खोल कर सच्चाई बयां की तो ग्राम विकास अधिकारी (कठेरूआ, कठारा, शम्भुआ) पुनीत मिश्रा, ग्राम विकास अधिकारी जितेन्द्र मिश्रा (इटारा, चैराई, उदयपुर), ग्राम विकास अधिकारी सुश्री पूजा दुबे (ढरहरा), ग्राम विकास अधिकारी मनीष कुमार (कसिगवां), कृपा शंकर वर्मा (सीढ़ी व मंझावन) श्रीमती अनुपम श्रीवास्तव (नगवां व परसौली) को खण्ड विकास अधिकारी बिधनू द्वारा नोटिस जारी कर कहा गया कि आपके क्षेत्र में शौचालय बनाने का लक्ष्य संतोष जनक नहीं है। नोटिस में यह भी कहा गया है कि मीडिया द्वारा आपकी ग्राम पंचायतों का सत्यापन किया जा रहा है।
खण्ड विकास अधिकारी द्वारा दिनांक 26/11/2018 को जारी की गई नोटिसों के अनुसार, कठेरूआ में 381 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 297 पूर्ण दिखाये गए है और 84 अपूर्ण/अवशेष हैं। कठारा में 1202 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 1124 पूर्ण दिखाये गए है और 78 अपूर्ण/अवशेष हैं। शम्भुआ में 465 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 387 पूर्ण दिखाये गए है और 78 अपूर्ण/अवशेष हैं। इटारा में 596 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 496 पूर्ण दिखाये गए है और 100 अपूर्ण/अवशेष हैं। चैराई में 753 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 643 पूर्ण दिखाये गए है और 110 अपूर्ण/अवशेष हैं। उदयपुर में 539 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 442 पूर्ण दिखाये गए है और 97 अपूर्ण/अवशेष हैं।
ढरहरा में 404 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 330 पूर्ण दिखाये गए है और 74 अपूर्ण/अवशेष हैं। कसिगवां में 266 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 180 पूर्ण दिखाये गए है और 86 अपूर्ण/अवशेष हैं। सीढ़ी में 558 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 450 पूर्ण दिखाये गए है और 108 अपूर्ण/अवशेष हैं। मझावन में 900 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 800 पूर्ण दिखाये गए है और 100 अपूर्ण/अवशेष हैं। नगवां में 240 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 99 पूर्ण दिखाये गए है और 141 अपूर्ण/अवशेष हैं। परसौली में 281 शौचालय आवंटित हैं जिनमें 156 पूर्ण दिखाये गए है और 125 अपूर्ण/अवशेष हैं।
उपरोक्त आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि वाहवाही लूटने व प्रमाण पत्र लेने के लिए कागजी आंकड़ों में बिधनू ब्लाॅक को ओडीएफ घोषित कर सरकार की आंखों धूल झोंकने का काम किया गया है।
शौचालयों के निर्माण में की गई धांधली का खुलासा होने पर खण्ड विकास अधिकारी ने अपने को दोष मुक्त करने के उद्देश्य से सभी गांवों के ग्राम विकास अधिकारियों/सचिवों को कारण बताओ नोटिस थमाकर गड़बड़झाले पर पर्दा डालने का प्रयास शुरू कर दिया है।
इस बावत एडीओ पंचायत अतुल शुक्ला से बात की उन्होंने बताया कि 2012 की बेस लाइन के आधार पर ओडीएफ घोषित कर प्रमाणपत्र जारी किए गए हैं। जब उनसे पूंछा कि जिन परिवारों के शौचालय नहीं बने हैं उप परिवारों के लोग खुले में शौच के लिए जा रहे हैं क्या इसे ओडीएफ कह सकते हैं तो उन्होंने चुप्पी साध ली। वहीं जब एडीओ साहब से ओडीएफ की परिभाषा पूंछी तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, हां इतना तो जरूर कहा कि ‘ऊपर’ बात कर लो।
इस बावत यह कहना कदापि अनुचित नहीं कि शौचालयों के निर्माण में बरती जा रही लापरवाही व मानकों की उड़ती धज्जियां भाजपा के क्षेत्रीय विधायकों व सांसदों को भी नहीं दिख रहीं क्योंकि इस मसले पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है, बस यह कहकर वाहवाही लूट रहे हैं कि मोदी जी ने हर घर में शौचालय बनवा दिये हैं जबकि हर क्षेत्र में शौचालयों के निर्माण में जमकर धांधली की गई है और स्थानीय स्तर से लेकर जिले स्तर के अधिकारियों ने अपनी जेबें भरने का कार्य किया है। इस प्रकरण पर अगर गोपनीय जांच करवा ली जाये तो अरबों का घोटाला सामने आ सकता है।