Tuesday, November 26, 2024
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मत्स्य पालक रोहू, नैन, कतला, सिल्वर, ग्रास, कॉमन कार्प का पालन कर सकते अपना जीविकोपार्जन

कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। भारतवर्ष में क्लैरियास बैट्राकस को देशी माॅगुर कहा जाता है जो कम आक्रामक, कम भुक्खड़ तथा खाने में अति स्वादिष्ट एक काॅटे की मछली है जिसे मनुष्य द्वारा पालकर एवं पकडकर वर्षो-वर्षो से खाया जा रहा है जबकि थाई माॅगुर (क्लैरियास गैरीपाइनस) जो कि अफ्रीकी मूल की है जो यूरोप एवं अफ्रीकी देशों में पाली जाती है तथा अति आक्रामक एवं अति भुक्खड़ प्रकार की मछली है जिसकी माॅस खाने में खट्टेपन का एहसास देता है। यह मछली अफ्रीका से होते हुए थाईलैण्ड पहंुची तथा थाईलैण्ड से बांग्लादेश होते हुए भारतवर्ष की समस्त जल प्रणालियों में पहुंच चुकी है। थाईलैण्ड से भारत पहुंचने पर इसका नाम थाई मांगुर पडा है। थाई माॅगुर की हैचरियों एवं थाई मांगुर पालन वाले तालाबों के बाढ़ग्रस्त होने पर यह समस्त जल प्रणालियों मंे फैल जाती है। देशी मछलियों को खाकर पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करती है तथा अत्यधिक प्रजनन दर के कारण इसकी संख्या तेजी से बढ़ती है जिससे देशी मछलियों की जीवन दर कम होती है तथा मछलियों के न मिलने पर यह क्रस्टेशियन, मोलस्का जीवों का भक्षण करती है तथा इनके भी न मिलने पर यह अपनी जीवन रक्षा के लिए तालाब की जलीय वनस्पतियों एवं जलीय जीवों को भी खाती है। उक्त के न मिलने पर माॅसाहारी जीवों की तरह कैनीबालिज्म भी प्रदर्शित करती है अर्थात स्वजातिभोजी की तरह अपनी जाति की मछलियों को खाकर अपनी भूख मिटाती है।
उक्त जानकारी देते हुए मुख्यकार्य अधिकारी मत्स्य पालक विकास अभिकरण अधिकारी रणजीत सिंह ने देते हुए बताया कि वर्तमान में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक एवं देश के अन्य भागों में बहुतायत में अवैध एवं अनियंत्रित रूप से पाली जाती है क्योकि यह शीघ्र बढने वाली मछली है जिससे माॅगुर पालकों को शीघ्र लाभ होता है। एक कांटे एवं सस्ती होने के कारण कम आय वाले मत्स्यभोजियों में लोकप्रिय है। जब भी हमारे देश में कोई भी जीव/वनस्पति बाहर के देशाों से लायी जाती है तो आयुक्त मत्स्य विकास एवं सदस्य सचिव आफ नेशनल कमेटी आन इक्जोटिक्स गवर्मेट आफ इण्डिया एनिमल हसबेंड्री कमेटी एण्ड डेयरी, कृषि भवन, नई दिल्ली की अनुज्ञा अनिवार्य है। ऐसा न करना गैर कानूनी, अवैध एवं अनियंत्रित श्रेणी में आता है। इसके पालन से रोहू, नैन, कतला, सिल्वर, ग्रास एवं काॅमन कार्प पालन का करोबार आर्थिक दृष्टि से प्रभावित होता है तथा इसके द्वारा बाहरी रोगों के सूक्ष्म जीवों के वाहक से भी इंकार नही किया जा सकता है। निर्देश दिये है कि तत्काल हैचरियों एवं तालाबों में पाली गयी थाई मांगुर मछलियों एवं इनके बीजों को नष्ट कर दे। उन्होंने मांगुर पालकों, आढ़तियों एवं विके्रताओं को निर्देशित किया है कि अपने खर्चे से तत्काल थाई माॅगुर को नष्ट कर दे अन्यथा जिला प्रशाासन द्वारा माॅगुर के नष्ट किये जाने पर नष्टीकरण में व्यय होने वाली धनराशि सम्बन्धितों से वसूल की जायेगी। इसके अतिरिक्त पंगास एवं बिगहेड मछलियों के पालन, भण्डारण एवं बिक्री पर भी प्रतिबंध है। मत्स्य पालक रोहू, नैन, कतला, सिल्वर, ग्रास, काॅमन कार्प का पालन कर अपना जीविकोपार्जन कर सकते है। थाई मांगुर का इतनी बडी संख्या में दक्षिण भारत के राज्यों से उत्तरी भारत के राज्यों और यहां तक की लगभग 3000 कि0मी0 दूर स्थित नेपाल तक पहुंचना चिंता की बात है।