कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। कोरोना संकट के चलते हर तरफ लॉकडाउन है। तमाम बुरी खबरों के बीच इसका असर कम से कम पर्यावरण पर सकारात्मक रूप से दिखने लगा है।
कोरोना वायरस के कहर की वजह से दुनिया भर में औद्योगिक गतिविधियां ठप्प हो गई हैं। भारत सहित कई देशों में लॉकडाउन हो चुका है। इससे पर्यावरण को भी फायदा पहुंचा है।
पिछले कई दशकों से पृथ्वी पर हमारी रक्षा कर रही ओजोन परत को जो उद्योगों से नुकसान पहुंच रहा था उसमें कमी आने से इसकी हालत में सुधार आ रहा है। दुनिया भर में उद्योगों के बंद होने से वायुमंडल को नुकासन पहुंचाने वाली गैसों का उत्सर्जन बंद हो गया है।
वहीं दूसरी तरफ सार्वजनिक और निजी यातायात लगभग बंद होने से पैट्रोल और डीजल के कारण वाहनों से निकलने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसों का निकलना भी बहुत ही कम हो गया है। ऐसे में प्रदूषण का स्तर खासतौर पर महानगरों में अभी से अच्छा दिखने लगा है।
वैज्ञानिक इस मामले में अभी जल्दबाजी नहीं दिखाना चाहते, उन्हें अंदेशा है कि जब औद्योगिक गतिविधियां फिर से शुरू हो जाएंगी तब फिर से बड़े पैमाने पर कार्बन डाइ ऑक्साइड और अन्य ओडीएस का उत्सर्जन शुरू होगा और फिर शायद पहले की स्थिति लौट आएगी। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वायु की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं। इन आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन लागू होने के एक दिन पहले लखनऊ का एयर क्वालिटी इंडेस्क 204 था वह 6 अप्रैल को 70 के भी नीचे पहुंच गया था।
कानपुर शहर को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2018 में विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार किया था। यहां भी एयर क्वॉलिटी इंडेक्स लॉकडाउन के दौरान 50 से नीचे जा चुका है।
कुंभ नगरी प्रयागराज में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 38 पर पहुंच गया है जो बीते एक दशक का सबसे कम आंकड़ा है। इसी प्रकार यूपी के मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर जिले जिनका नाम वर्ष 2019 में प्रदेश के सबसे प्रदूषित शहरों में आया था जहां हवा की गुणवत्ता सबसे खराब थी। यहां भी पहली बार एयरक्वालिटी इंडेक्स अपने न्यूनतम स्तर पर है।
फिलहाल सभी का ध्यान दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस के खतरे से बचाव पर है। दुनिया भर के शोधकर्ता इस संकट से निपटने के लिए इस पर जोरों से लगे हुए हैं, लेकिन दुनिया भर में हो रही प्राकृतिक गतिविधियों पर वैज्ञानिकों की नजरें जरूर बनीं हुई हैं।