Wednesday, November 27, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » बौद्ध विरासत पर होगा राम मंदिर का निर्माण !

बौद्ध विरासत पर होगा राम मंदिर का निर्माण !

वीकेएस विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डाक्टर राजेंद्र प्रसाद सिंह, बीएचयू के प्रोफ़ेसर राहुल राज, प्रोफ़ेसर एमपी अहिरवार, जेएनयू प्रोफ़ेसर विवेक कुमार बोले इतिहास आस्था पर नहीं चलता, साक्ष्य ही इतिहास गढ़ते है.
>अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए की जा रही समतलीकरण की खुदाई में मिल रहे बौद्धकालीन अवशेष
>बुद्ध प्रतिमाओं के अवशेष और गुप्तकालीन कलाकृतियों ने बढाई हलचल, बड़ी बहस- अयोध्या ही बौद्ध नगरी साकेत है
पंकज कुमार सिंह-
कानपुर। सूरा रत्ना की दास्तां हो या ह्वेनसांग का दर्शन, प्रोफ़ेसर आग्नेय लाल का शोध या खुदाई में मिले सबूत, अयोध्या यानि बौद्ध नगरी साकेत किसी पहचान की मोहताज़ नहीं है। तभी तो वरिष्ठ प्रोफ़ेसर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते है की किसी के कहने या मानने भर से इतिहास बदल नहीं जाता। साक्ष्य खुद चीख-चीख कर अपने इतिहास को बयां करते है। आखिर में अयोध्या में यही तो दिख रहा है। अयोध्या की भूमि पर पगपग खुदाई के लिए जितने फावड़े चलेंगे, फांवड़े की हर चोट पर बुद्धकाल जी उठेगा।
अयोध्या ही साकेत है यह बात पौराणिक ग्रंथों और प्राचीन इतिहासकारों द्वारा दर्ज दस्तावेजों में देखने को मिलता है। और यह ज़ाहिर होता है कि यही ‘साकेत’ बौद्ध नगरी है जो छठी शताब्दी पूर्व बसी थी। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए की जा रही समतलीकरण की खुदाई के दौरान यह बात पुख्ता सबूतों के साथ उभर कर सामने आ रही है। लेकिन भारत सरकार का पुरातत्व विभाग मौन है। हालांकि अभी तक देश-विदेश के किसी भी पुरातत्वविद और प्राचीन इतिहासकार ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि अयोध्या बौद्धकालीन नहीं है। और न ही कोई ऐसा साबूत पुरातत्वविदों के पास है जो अयोध्या के बौद्ध स्थल होने का विरोध करता हो।
विगत दिनों अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए की जा रही समतलीकरण की खुदाई में मिले अवशेषों से छठी शताब्दी पूर्व की ऐतिहासिक विरासत सामने आई तो जन सामना ने इस विरासत के सम्बन्ध में देश के प्रख्यात भारतीय प्राचीन इतिहासकारों, सांस्कृतिक एवं पुरातत्वविदों से विस्त्रत जानकारी चाही तो उन्होंने बेवाक अपनी बात रखी। उनके द्वारा जो बातें सामने आई वह चौकाने वाली थी। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय(बीएचयू) में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफ़ेसर डाक्टर राहुल राज कहते है कि इतिहास की व्याख्या पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किये गए अध्यन से होती है। वे बताते है कि यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक आधार पर आज तक कोई मूर्ति ईशा पूर्व की नहीं पाई गयी है। जो मूर्ति, कलाकृतियां मिली वह सभी ईश्वी में आयीं है। इससे यह साफ़ है कि श्रीराम का सम्बन्ध ईशा पूर्व से नहीं है। प्रोफ़ेसर राहुल राज बताते है कि इतिहास का स्वर्णकाल गुप्त काल को कहा जाता है जब कलात्मक कलाकृतियां बनी परन्तु इनमें एक भी प्रतिमा श्रीराम की नहीं थी। वे बताते है कि चौथी-पांचवी शताब्दी तक श्री राम का कोई पुरातात्विक आधार नहीं है। छठवीं- सातवीं शताब्दी में बौद्धकाल का आधार मिलता है। प्रोफ़ेसर डाक्टर राहुल राज ने बताया कि बीएचयू के कला इतिहास के प्रोफ़ेसर मारुति नंदन तिवारी के अनुसार पूर्व मध्यकाल में प्राचीन मूर्ति श्रीराम की मिलनी शुरू हुई। यहाँ प्रोफेसर राज यह स्पष्ट करते हुए कहते है कि जब श्रीराम का जन्म हुआ तब अयोध्या यानि साकेत को बसे एक हजार साल बीत चुके थे। इस दौरान साकेत का सम्बन्ध श्री राम से नहीं मिलता है। वर्तमान से लगभग ढाई हजार साल पहले कौशल राज्य का वर्णन जैन व बौद्ध साहित्य में बराबर मिलता है जिसकी राजधानी साकेत कही गई है यहां साकेत का सम्बन्ध श्रीराम से कहीं भी नहीं मिलता। प्रोफेसर राज कहते हैं कि यह विचारणीय है कि बुद्धकाल के जितने भी बौद्धिक और पौराणिक ग्रंथ मिले है वहां श्रीराम का जिक्र स्वतंत्र रूप से नहीं मिलता।
बीएचयू के ही प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डाॅक्टर एमपी अहिरवार कहते हैं कि अयोध्या के संदर्भ में किसी भी तरह के प्राचीन व पुरातत्विक स्रोतों में कहीं पर भी श्रीराम या किसी भी देवी-देवता की मूर्ती की स्थापना और निर्माण के साक्ष्य नहीं मिलते हैं यहां केवल बौद्ध कला, संस्कृति, एवं धर्म सम्बन्धी अनेको साक्ष्य हैं। प्रोफेसर एमपी अहिरवार कहते हैं कि यदि जिन 64 स्तम्भों का हवाला भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक प्रोफेसर बीआर मणी ने दिया वह बौद्ध कला व संस्कृति के भी हो सकते हैं। वह बताते है कि बीएचयू के ही प्रोफेसर एके नारायण जोकि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के संस्थापक रहे वह भी अयोध्या में बौद्ध के ही साक्ष्य पाए थे। प्रोफेसर अहिरवार कहते है कि बारहवीं शताब्दी के बाद इस्लामिक व्यवस्था के दौरान हिन्दू अवधारणा आई। जोकि कुषाण काल के बाद में ही मिली है। और श्रीराम का उद्भव मौर्यकाल के बाद में मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट में राम जन्म स्थान के कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं रखे गए
प्रोफेसर डाॅक्टर राहुल राज कहते है कि सुप्रीम कोर्ट में ट्रायल के दौरान राम जन्मभूमि के कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं रखे गए और न ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह है कि जिस स्थान अयोध्या में रामलला विराजमान है वह रामजन्मभूमि है। प्रोफेसर राज बताते है कि यहां श्रीराम से जुड़ा न कोई अभिलेख मिला और न ही श्रीराम की मूर्ती और न ही श्रीराम के साथीजनों का कोई साक्ष्य मिला। सुप्रीम कोर्ट में जो आधार लिया गया वह भारतीय पुरातत्व विभाग(एएसआई) की रिपोर्ट और एएसआई की रिपोर्ट का आधार ग्रिड शैली (पंक्तिवद्ध) में मिले 64 खम्भों के अवशेष हैं। यह एक ग्रंथ के श्लोक में वर्णित देवस्थान बताया गया जो यह सिद्ध नहीं करता कि देव स्थान बौद्ध का है, जैन का है या श्रीराम का है?
प्रोफेसर दिलीप चक्रवर्ती की रीसर्च में कई मामले सामने आए
चर्चा में यह भी सामने आया कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय यूके के प्रोफेसर पद्मश्री दिलीप चक्रवर्ती ने अयोध्या के नागेश्वर माहादेव के मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित है दरअसल वह मौर्यकालीन स्तम्भ का शीर्ष अधोभाग है यह पत्थर भी वही है। यह बौद्धकालीन स्थान है। प्रोफ़ेसर दिलीप कुमार चक्रबर्ती की पुस्तक ” आर्कियोलॉजिकल ज्योग्राफी औफ दि गंगा प्लेन ” में लिखा है कि अयोध्या के सरयू तट पर नागेश्वरनाथ मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित है, वह अशोक स्तंभ के शीर्ष पर मौजूद उल्टे कमल पर स्थापित है। दिलीप कुमार चक्रबर्ती को भारत सरकार ने 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया है। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।
विश्वविख्यात दार्शनिक ह्वेंनसांग के साहित्य में भी यही पाया गया है। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर अंग्नेयलाल ने 60-70 के दसक में अयोध्या को साकेत बौद्धनगरी बताया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार राहुल साकृत्यायन ने भी अयोध्या को बौद्धनगरी साकेत के रूप में ही पाया।
जहां राम मन्दिर का निर्माण वहां बुद्ध के अवशेष
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) दिल्ली के वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅक्टर विवेक कुमार ने चर्चा के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी साक्ष्य में नहीं पाया कि यहां मन्दिर होने कोई प्रमाण है। बौद्धमतानुलम्बियों के साक्ष्य साफ तौर पर मिले हैं। अयोध्या में समतलीकरण के दौरान जो अवशेष मिल रहे है उनको संरक्षित करते हुए पुरातात्विक वैज्ञानिक जांच कराकर स्थिति साफ करनी चाहिए। प्रजातांत्रिक देश में ट्रांसपेरेंसी होनी चाहिए। प्रोफेसर अग्नेयलाल ने अपने शोध में अयोध्या को बौद्धनगरी पाया और बचपन में हमने भी बौद्ध नगरी के रूप में ही जाना है। यह तो स्पष्ट दिख रहा है कि जहां राम मंदिर का निर्माण वहां बौद्ध अवशेष मिल रहे हैं यह विचारणीय तो है ही।
साक्ष्य इतिहास बताते हैं किसी के कहने से इतिहास नहीं बदलता
वीर कुंवर सिंह (वीकेएस) विश्वविद्यालय आरा बिहार के वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि साक्ष्य के आधार पर इतिहास तय होता है किसी के कहने से इतिहास नहीं बन जाता। अयोध्या में बौद्धालीन विरासत है। बहुत से इतिहासकार हुए सबने अपने शोध में साक्ष्य के साथ यही पाया कि अयोध्या साकेत है और यह बौद्ध नगरी है। अयोध्या का पहला आँखों देखा हाल ( 5 वीं सदी) फाहियान ने लिखा और कहा कि बौद्ध-स्थल है। अयोध्या का पहला सर्वे ( 1862 – 63 ) कनिंघम ने किया और कहा कि बौद्ध-स्थल है। अयोध्या की पहली खुदाई ( 1969 – 70 ) प्रो. अवध किशोर नारायण ने किया और कहा कि बौद्ध-स्थल है। हर इतिहास गौरवशाली और धरोहर है। समतलीकरण के दौरान जो अवशेष और कलाकृतियां मिली है उनको संरक्षित कर जांच करानी चाहिए। यह देश की विरासत है।