हिंदुस्तान के सबसे बड़े हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश की बोर्ड परिक्षाओं के परिणाम में इस साल हिंदी विषय में आठ लाख बच्चों का फेल होना कोई छोटी बात नहीं है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की तकरीबन 91% जनसंख्या द्वारा सामान्य बोल-चाल में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है। जो राज्य हिंदी भाषा का पूरे हिंदुस्तान में प्रबल प्रतिनिधित्व करता है, आखिर उस राज्य में हिंदी भाषा में आठ लाख छात्रों का फेल हो जाना एक खतरनाक संकेत है। इसका कारण जो भी हो, मगर यह बात तो साफ है कि छात्र अगर अपनी मातृभाषा में फेल हुआ है तो वह दोषी है, परन्तु हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लग रहा है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में छात्र अपनी मातृभाषा हिंदी में क्यों फेल हो रहे हैं ? आंकड़ों की अगर मानें तो उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में तकरीबन दो लाख हिंदी के पद रिक्त पड़े हुए हैं, ऐसे में मातृभाषा हिंदी में छात्रों के फेल होने का यह आंकड़ा तो लाजिमी ही है। हिंदी भाषा के इन रिक्त पदों पर अगर जल्द नियुक्ति नहीं हुई तो आगे की स्थिति और भी दयनीय हो सकती है, हिंदी भाषा का पूरे हिंदुस्तान में परचम लहराने वाले राज्य में ही हिंदी का पतन सुनिश्चित है।
इन आंकड़ों में हमारे समाज व युवा पीढ़ी का उतना ही हाथ है, जितना कि हमारी शिक्षा व्यवस्था का! क्योंकि हमारे समाज में हिंदी भाषा को हीन भावना से देखा जाने लगा है। युवा पीढ़ी अपनी मातृभाषा से ही परहेज करने लगी है, क्योंकि यह उसके अपने परिवार व समाज की देन है। बच्चे को बचपन से ही मातृभाषा से दूर करने का प्रयास किया जाता रहा है। अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में बच्चे की शुरुआती शिक्षा जैसे फैशन सा बन गया है, जबकि अगर शोधकर्ताओं की मानें तो, बच्चा अगर अपने शुरुआती आठ वर्ष की शिक्षा अपनी मातृभाषा में करे तो उसका बौद्धिक विकास तीव्र होगा और उसकी अन्य भाषाओं पर पकड़ जल्दी बनेगी।
गौरतलब है कि पूरे भारत में तकरीबन ५२ करोड़ लोग हिंदीभाषी हैं और अगर वहीं विश्व की बात करें तो विश्व में तकरीबन ५९ करोड़ लोगों द्वारा हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है, परन्तु इसके बावजूद भारत में हिंदी का पतन होना, एक चिंताजनक विचारणीय मुद्दा है। हिंदी साहित्य का संपादन करते हुए मैंने खुद पाया कि आज के युवा साहित्यकार भी हिंदी भाषा पर अपनी पूर्ण पकड़ नहीं रखते हैं। उनकी भी भाषाशैली में तमाम त्रुटियां मौजूद रहती हैं। इससे यह बात साफ है कि आजकल हिंदी भाषा को हमारे समाज में महज मजबूरन ढोने का चलन चल रहा है, जबकि हकीकत में अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों का झुकाव बहुत ही तीव्रता से बढ़ रहा है। हमारे अपने देश के ही बड़े लोग शान से यह कहते फिरते हैं कि उन्हें हिंदी भाषा पर पकड़ कुछ ज्यादा नहीं है, ऐसे में हिंदुस्तान में हिंदी भाषा का पतन तो स्वाभाविक सी बात है। परन्तु सोचिए जब हम अपना अस्तित्व ही नहीं बचा पाएंगे तो हमारी झूठी शान आखिर किस काम की! अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम और निष्ठा बेहद जरूरी है, अन्यथा….
रचनाकार – मिथलेश सिंह मिलिंद