कोरोना काल की शुरुआत से ही अगर सबसे ज्यादा प्रभावित कोई देश रहा है तो वो है, अमेरिका! और अमेरिका कोरोना काल की शुरुआत से ही इस महामारी को बनाने व फैलाने में चीन को ही जिम्मेदार ठहराता रहा है। क्योंकि चीन ने जिस तरह पूरी दुनिया से इस खतरनाक बीमारी के बारे में छिपाया, उससे कहीं न कहीं पूरी दुनिया के शक की सुई चीन पर ही जाकर अटकती है। इसी ने चीन और अमरीका के बीच तनाव की स्थिति को जन्म दिया, जो आज एक शीत युद्ध की तरफ बड़ी तेजी से अपने कदम बढ़ाते नजर आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दो महाशक्तियों का इस तरह से शीत युद्ध में प्रवेश करना पूरी दुनिया के लिए एक खतरनाक स्थिति का संकेत है। जिस तरह अमेरिकी प्रशासन ने चीन के खिलाफ तेजी से वैश्विक विकास का कार्य शुरू किया है, उससे यह बात साफ है कि चीन और अमरीका के बीच तनातनी चरम पर है। क्योंकि आजकल दक्षिणी चीन सागर में अमेरिका, चीन के प्रतिद्वंद्वियों के साथ अनारक्षित साइडिंग कर रहा है, जिससे चीन अंदर ही अंदर तिलमिला रहा है। इस पर चीन ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ट्रम्प को एक कमजोर व त्रुटि ग्रस्त नेता से संबोधित किया।
अगर इसे बारीकी से देखा जाए तो यह कहीं न कहीं यूएस-सोवियत शीत युद्ध से काफी मिलता-जुलता नजर आ रहा है, बस यह अभी उस खतरनाक प्रतिद्वंद्वी स्तर पर नहीं पहुंची है, जो विनाश का रूप ले सके। मगर इस शीत युद्ध में भी एक खतरनाक अंदेशा अभी तक संभावित है, जिसे हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है। अमेरिकी वाकयुद्ध में कहा गया कि वह अपनी महत्वाकांक्षा संयत करने की कोशिश करे, कैसे और कब खुद निश्चित करे। यह उसकी गलती है और ऐसा करने में उसकी विफलता, अमेरिका को आश्वस्त करना हमें युद्ध में ले जा सकता है, जो कि खतरनाक हो सकता है। पिछला शीत युद्ध दो महाशक्तियों के बीच बहुत ही खतरनाक टकराव व प्रतिस्पर्धात्मक था, जो कि विचारों और रणनीतियों से पूर्णतः प्रेरित था। मगर यह शीत युद्ध आरोप-प्रत्यारोप तथा आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मक है, जो कि तकनीकी और ताजनीति से प्रेरित है। सच में यह शीत युद्ध बेहद ही खतरनाक है, जो विश्व सत्ता की लालसा से पूरी तरह प्रभावित है।
हालांकि यह शीत युद्ध दुनिया के कई देशों के बीच जारी है, यथा कूटनीति के बाजार में गहमागहमी का यह माहौल, जिसमें कई देश आपस में जुबानी व जिस्मानी जंग लड़ रहे हैं, जैसे भारत का चीन, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश व श्रीलंका से, अमेरिका का चीन, उत्तर कोरिया व इजराइल से तथा चीन का विश्व के हर उस देश से जो भारत, अमेरिका व जापान का सहयोगी है। मगर इन सभी देशों से कहीं खतरनाक है, यह अमेरिका-चीन शीत युद्ध। क्योंकि यह दुनिया की वह महाशक्तियां हैं, जो आर्थिक रूप से सुदृढ़ व अत्याधुनिक हथियारों से पूरी तरह लैस हैं। इनमें दोनों की ख्वाहिशें विश्व पर राज करने वाली रहती हैं, अतः आपसी टकराव का जन्म लेना लाजिमी है। यही तनातनी आज इस स्थिति में आ गई है कि इनके बीच हो रहे शीत युद्ध से पूरी दुनिया आशंकित है। यह बात तो साफ हो गई है कि दोनों देशों के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हो चुकी है, मगर अब देखना यह है कि यह किस स्तर तक सीमित रहती है। उम्मीद यह जताई जा रही है कि इन दोनों महाशक्तियों के बीच जल्द ही यह शीत युद्ध समाप्त हो जाएगा, क्योंकि अमेरिका के सामने चुनावी चुनौतियों के चलते ट्रम्प का उसमें व्यस्त हो जाना, इस शीत युद्ध में कुछ ठहराव जरूर लाएगा जो वैश्विक दृष्टिकोण से सही भी होगा।
मिथलेश सिंह मिलिंद
मरहट, पवई, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)