Wednesday, November 27, 2024
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आज भी व्याप्त है प्रेमचंद के कहानियों के पात्र

—प्रेमचंद जयंती विशेष—
(31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936)
“जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करें, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है।”
जी, हाँ यह प्रसिद्ध उक्ति कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के हैं…।
आदरणीय
प्रेमचंद जी
सादर अभिवादन ,
मैं आपकी बचपन से ही बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूँ। या यह कह लीजिए आपकी कहानियाँ और उपन्यासों को पढ़-पढ़ कर ही मैं बड़ी हुई हूँ आपकी हर कहानी अपने आप में अनोखी है। पढ़ कर ही ऐसा महसूस होता है जैसे हम भी उन किरदारों का दर्द समझ पा रहे है उन्हें जी पा रहे हैं। फिर चाहे वो “नमक का दारोगा” हो या “निर्मला” या फिर “गबन” या हो “गोदान” या फिर “कर्म भूमि” हो या “दो बैलों की कथा” हो आपकी हर कहानी अपने आप में कालजयी है जिसे एकबार पढने के बाद बार-बार पढ़ने का मन करता है…।
बचपन में मैं कहानियों का अंत पहले ही पढ लेती थी और सोचती थी कि अगर अंत दुखद है तो मै उस कहानी को नही पढूंगी पर फिर न जाने क्यों मै बिना उस किताब को पढे रह ही नहीँ पाती। आपने अपनी लेखनी में शोषित वर्ग का दुख दुनिया के सामने रखा है।
बात चाहे “पूस की रात” की करू या फिर “निर्मला” की आपने एक नारी की व्यथा को अपनी लेखनी में पिरोया है।
साथ ही जानवरों एवं मनुष्यों के सुख-दुःख को भी साझा किया है।
मेरे पास आपके जैसे अथाह शब्दों के भंडार तो नहीं जिससे मैं आपके लिए अपनी भावनाएं सही तरिके से लिख सकूँ लेकिन फिर भी एक छोटा सा प्रयास करने जा रही…।
प्रेमचंद के बाद ना जाने कितने साहित्यकार आये गये, लेकिन प्रेमचंद जैसा कोई नहीं हुआ। प्रेमचंद एकमात्र ऐसे लेखक हैं जिन्होंने ग्रामीण भारतीय समाज को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है। वे आपको उंगली पकड़कर पूरे ग्रामीण भारतीय समाज से अवगत करा देंगे।
प्रेमचंद होना विरला है, यूँ ही कोई प्रेमचंद नहीं हो सकता। अपने लेखन की तपस्या से धनपतराय प्रेमचंद हुए और जनमानस के लेखक बन गये। उनके साथ रहते हुए ना जाने कितने लोगों ने पढ़ना और लिखना सीखा। आज भी लोग उनको पढ़कर लिखना सीखते हैं। सच कहा जाये तो वे समस्त लेखकों के गुरु के रूप में भी याद किये जायेंगे। ऐसे गुरु जो अप्रत्यक्ष रूप से किसी को दीक्षा दे रहा हो। प्रेमचंद ने यही कमाल अपनी लेखनी से किया है…।
प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में मानवीय संवेदनाओं की जो तस्वीर खींची वह सच में अविस्मरणीय है। चाहे “ईदगाह” का “हामिद” हो या “गोदान” का “होरी” सब पात्रों की पीड़ा को प्रेमचंद इस आसानी से कह गये कि वह हमें अपनी सी लगती है। प्रेमचंद ने ना केवल ग्रामीण भारतीय परिवेश को अपनी कहानियों में दिखाया है बल्कि उन्होंने बहुत सी जगहों पर इसके इतर भी लिखा और हर तरह के शोषण, जातिगत व्यवस्था आदि पर करारा प्रहार किया…।
अगर आप लिखते हैं तो आपने कभी ना कभी प्रेमचंद को ज़रूर पढ़ा होगा। यह बात बिल्कुल सच है, कम से कम इतनी तो है ही जितनी होने से प्रेमचंद आज भी हमारे मानस पटल पर अंकित हैं। प्रेमचंद ख़ुद ग़रीबी में जिये और आजीवन लिखकर रोजी रोटी की लड़ाई लड़ते रहे। लेकिन इस बात से भी उनके जुनून पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा, उन्होंने हमेशा सच का साथ दिया और यही कारण है कि वे जनता के लेखक बने…।
प्रेमचंद को आदर्श मानकर ना जाने कितने लोगों ने लिखना शुरु किया, ऐसे लोगों को अगर कतार में खड़ा किया जाये तो निश्चित तौर पर कई मील लंबी कतार आपको देखने के लिये मिलेगी। प्रेमचंद का प्रभाव ऐसा है कि वह हर किसी पर अपना स्थायित्व बना लेता है, यही कारण है कि प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक हैं। जातिवाद, स्त्री-शोषण आज भी अपना थोड़ा स्वरूप बदलकर मौजूद हैं। ऐसे में प्रेमचंद का साहित्य आज भी समाज को न्यूनाधिक आईना दिखाता ही है, मानवीय स्वभाव के मनोवैज्ञानिक अंतर्द्वन्द्व को भी प्रेमचंद ने उकेरा है इसलिए भी प्रेमचंद की प्रासंगिकता बनी रहेगी …।
हमारे समाज में आज भी व्याप्त है प्रेमचंद के कहानियों के पात्र-
सच बताऊँ तो प्रेमचंद ही ऐसे लेखक हैं जिनको मैंने प्राइमरी से पढना शुरू की और परास्नातक तक उनका साथ नहीं छुटा। हजारों लोग उन पर शोध कर रहे हैं। लेकिन ये हमारे देश का दुर्भाग्य है आज भी हमारे समाज में प्रेमचंद के पात्र मौजूद है। यही कारण है कि किसी भी दौर में प्रेमचंद पुराने नहीं होते। हर लाचार व्यक्ति उनकी कहानियों व उपन्यासों में अपनी पात्रता ढूंढने लगता है। “होरी-धनिया” हों या फिर “हीरा-मोती”। “घीसू-माधव” हों या “हामिद”। “गोबर” हों या “जालपा”, सच तो यह है कि महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों के सैकड़ों पात्र समाज में आज भी जिंदा हैं। उनका चेहरा मार खाया हुआ लगता है। अभावों में किसी का गाल झुर्रियों की झोली बन जाता है तो शोषण की जंगी मशीन किसी के पेट की अंतड़ी को पीठ से चिपका देती है। पांवों में फटी बिवाइयां, गरीबी में झख मारती जिंदगानी और सूदखोरों के चंगुल में छटपटाहट कम नहीं हुई है। समय ने भले करवट ली हो लेकिन जब जहर के चट्टान पर जबान पटक पटक कर कोई किसान आत्महत्या करता तो लगता कि उनकी कहानी का कई पात्र जीवंत हो उठा है। “गोदान” का नायक “होरी” समाज में हाशिये पर अभी भी हाजिर है। उसकी मुश्किलें कम कहां हुईं। व्यवस्था की चक्की में पिसकर अंधेरा अरमानों के खाली कनस्तर में गिर ही तो रहा है। प्रेमचंद ने उस समय अंग्रेजी राज में गरीब, अमीर, युवा, किसान, अनपढ़, उच्च शिक्षित हर किरदार पर अपनी लेखनी चलाई। अंग्रेजी राज में लिखी उनकी कहानियां, कथाएं, उपन्यास आज भी युवाओं और आम जन को झकझोरती हैं। प्रेमचंद ने जिस होरी को कर्ज से तिल-तिल कर मरते हुए दिखाया था, आज वह जिंदा है…।
ओलावृष्टि के बाद बबार्द और कर्ज के बोझ से कराहते हुए कितने किसानों ने मौत को गले लगा लिया। हताश युवा आज भी बेरोजगारी का दंश झेलने को विवश हैं। कथा सम्राट प्रेमचंद ने जिस अभिजात्य वर्ग के शोषण को उस समय दिखाया था, वह वर्ग आज भी गरीबों का खून चूस रहा है। आज प्रेमचंद को पढ़ने के बाद उनकी बातें काल्पनिक नहीं वास्तविक लगती हैं। आज की समस्याओं पर भी चोट करती हैं। यहीं कारण है कि प्रेमचंद की लिखी सभी किताबें आज हर वर्ग के लोग पढ़ रहे है…।
क्‍या कारण है कि आज भी लोग मुंशी प्रेमचंद को पढ़ना चाहते हैं—
दरअसल उनकी कहानियों में, उनके उपन्‍यासों में सामाजिक सरोकार पूरी शिद्दत से आये हैं। फिर चाहे उनकी कहानी….”नमक के दरोग़ा हो”…”कफ़न” हो….”शतरंज के खलाड़ी” हो,”ईदगाह” हो,”पंच परमेश्‍वर” हो,”गुल्‍ली-डंडा” हो,”बड़े घर की बेटी हो”,”बूढ़ी काकी” हो या फिर “पूस की रात”।
एक ही बार में पढी जानेवाली उनकी कहानियों में कुछ तो है कि वे आज भी प्रासंगिक हैं। उनके उपन्‍यास…”गोदान”, “सेवा सदन”, “ग़बन”, “निर्मला”…..ये सब अलग अलग सामाजिक परिवेश और राजनीतिक परिवेश को लेकर लिखे गये उपन्‍यास हैं, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
साथ ही यह भी सच है कि हर लेखक अपना समय लिखता है। जब हर मील पर भाषा और पानी बदलता है तो साहित्‍य लेखन में भी बदलाव तो आयेगा ही, इसमें रंचमात्र संदेह के लिये कोई जगह नहीं है। लेकिन वह साहित्‍य सरोकारों से परे न हो यह ज़रूरी है। आजकल कहानियों का जो दौर चल रहा है, उसमें अनावश्‍यक रूप से शिल्‍प,शब्‍द विन्‍यास व माहौल रचने को प्रमुखता दी जा रही है। कई बार यह विस्‍तार और शैल्‍पिक चमत्‍कार अनावश्‍यक रूप से इतना ज्‍य़ादा हो जाता है कि पाठक बोर हो जाता है और रचना पढ़ना छोड़ देता है। प्रेमचंद की कहानियों में आज के समय व हालात दृष्‍टिगत होते हैं हालांकि ये कहानियां और उपन्‍यास काफी पहले लिखे गये हैं, पर आज भी उतने ही समसामयिक हैं,जितने पहले थे। इसलिए “मुंशी प्रेमचंद” ‘*कलम के सिपाही’ माने जाते हैं…।
मेरे गुरु डॉ अरुण पांडेय सर ने एकबार मजाक में कहा था कि तुम बच्चें तो प्रेमचंद को अपने घर की संपत्ति समझते हो….सर कोटि-कोटि आभार आपका की आपने मजाक में ही बहुत बड़ी बात कह दी,पर सत्य भी यही है कि हम साहित्य प्रेमी प्रेमचंद को अपने घर-परिवार का ही मानते हैं एवं चिरकाल तक मानते रहेंगे…।
मैं आज एक छोटा सा प्रयास की प्रेमचंद जी को लिखने एवं आप प्रिय पाठकों को समझाने का, अंत में प्रेमचंद जी के लिखे एक विचार से आप सभी प्रिय पाठकों को रूबरू करवाना चाहूँगी और उम्मीद करूँगी आप सहमत होंगे….
“लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वो क्या लिखेंगे…?”
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“मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक़ नहीं!”- प्रेमचंद
रीमा मिश्रा”नव्या”