उप्र में सरकार अथवा सरकारी तन्त्र के खिलाफ खबरें चलाने के चलते पिछले दो-तीन वर्षो में अनेक पत्रकारों के खिलाफ मुक़दमे दर्ज कराए गए हैं। शासन-प्रशासन की आलोचना करने के जुर्म में जिन पत्रकारों के खिलाफ़ एफ आई आर दर्ज करवाई गई थीं। उन मुक़दमों के बाद कई पत्रकारों की गिरफ़्तारियाँ भी हुई थीं, जिन्हें कुछ समय हिरासत में रहने के बाद ज़मानत भी मिल गई थी, कुछ मामलों की सुनवाई भी जारी है। बिगत कुछेक वर्षो पर नजर डालें तो अनेक पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज करवाकर पत्रकारों के बीच भय व्याप्त करने का माहौल तैयार किया गया। ऐसा नहीं कि ऐसा माहौल पिछली सरकारों में नहीं रहा, रहा लेकिन तुलनात्मक आकड़ों के अनुसार वर्तमान में कुछ ज्यादा ही है। पत्रकारों के खिलाफ दर्ज करवाये गये मामलों पर अगर नजर डालें तो जो मामले प्रकाश में आ चुके हैं उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूं।
अगस्त 2019 में मिर्ज़ापुर में सरकारी स्कूल में व्याप्त अनियमितता और मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी खिलाए जाने से संबंधित ख़बर चलाने पर पवन जायसवाल के खिलाफ मामला दर्ज कर प्रताड़ित किया गया। पीसीआई द्वारा मामला संज्ञान लेने पर पवन जायसवाल का नाम एफ़आईआर से हटाया गया। मिर्ज़ापुर में मिड डे मील में कथित धांधली की ख़बर दिखाने वाले पत्रकार पर दर्ज हुई एफ़आईआर के बाद सरकार की काफ़ी किरकिरी हुई थी। इस घटना का दिलचस्प पहलू ज़िले के कलेक्टर का वह बयान था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘प्रिंट मीडिया का पत्रकार वीडियो कैसे बना सकता है? इस मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को हस्तक्षेप करना पड़ा था।सितंबर 2019 में आज़मगढ़ के एक स्कूल में छात्रों से झाड़ू लगाने की घटना को रिपोर्ट करने वाले 6 पत्रकारों के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करवाई गई और पत्रकार संतोष जायसवाल पर सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी मांगने संबंधी आरोप लगाया गया था।
सितंबर 2019 में लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार असद रिज़वी को एक नोटिस, एसीएम की कोर्ट में हाज़िरी के लिए कहा गया, उन पर मुहर्रम के दौरान शांति भंग करने का आरोप लगा था।
अक्टूबर 2020 में जनसंदेश टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह व धनंजय सिंह के खिलाफ़ ऑफ़िसियल्स सीक्रेट ऐक्ट के तहत एफ़आईआर दर्ज हुई है। इन दोनों पर आरोप हैं कि उन्होंने गोपनीय दस्तावेज़ अवैध तरीक़े से प्राप्त किए और फिर उसके आधार पर रिपोर्ट प्रकाशित की।
सितंबर 2020 में सीतापुर में क्वारंटीन सेंटर पर बदइंतज़ामी की ख़बर चलाने पर रवींद्र सक्सेना के विरुद्ध मामला दर्ज करवाया गया।
सरकारी काम में बाधा डालने, आपदा प्रबन्धन के अलावा एससी/एसटी ऐक्ट की धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था।
सितंबर 2020 में बिजनौर में दबंगों के डर से वाल्मीकि परिवार के पलायन करने संबंधी ख़बर के मामले में पांच पत्रकारों के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी। पांच पत्रकारों आशीष तोमर, शकील अहमद, लाखन सिंह, आमिर ख़ान तथा मोइन अहमद के खि़लाफ दर्ज एफ़आईआर. मामले में त्रुटिपूर्ण विवेचना की बात कहते हुए संज्ञान लेने से कोर्ट का इनकार रहा। बिजनौर में जिन पत्रकारों के खिलाफ़ मामला दर्ज किया गया था उन लोगों ने एक रिपोर्ट छापी थी कि एक गांव में वाल्मीकि परिवार के लोगों को सार्वजनिक नल से पानी भरने से रोका गया था। इस वजह से वाल्मीकि परिवारों ने पलायन का मन बना लिया है। प्रशासन का आरोप था कि पलायन की बात इन पत्रकारों ने कथित तौर पर गढ़ी थी।
बिजनौर के थाना मंडावर में पिछले साल सात सितंबर 2019 को उप निरीक्षक प्रमोद कुमार के प्रार्थना पत्र के आधार पर पांच पत्रकारों आशीष तोमर, शकील अहमद, लाखन सिंह, आमिर ख़ान तथा मोइन अहमद के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
जून 2020 में लॉकडाउन के दौरान एक न्यूज़ वेबसाइट की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा और वेबसाइट की मुख्य संपादक के ख़िलाफ़ वाराणसी पुलिस ने एक महिला की शिकायत पर एफ़आईआर दर्ज की थी। सुप्रिया शर्मा ने पीएम मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में लॉकडाउन के दौरान लोगों की स्थिति का जायज़ा लेती हुई एक रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित की थी. इस दौरान उन्होंने कई लोगों का इंटरव्यू किया था जिनमें माला देवी नाम की एक महिला भी शामिल थीं। वेबसाइट के मुताबिक, इंटरव्यू के दौरान माला देवी ने रिपोर्टर को बताया था कि वह लोगों के घरों में काम करती हैं और लॉकडाउन के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब हो गई कि उन्हें खाने तक के लाले पड़ गए। रिपोर्ट के अनुसार महिला ने रिपोर्टर को यह भी बताया था कि उनके पास राशन कार्ड नहीं था, जिसकी वजह से उन्हें राशन भी नहीं मिल पा रहा था। रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद में माला देवी ने कहा कि उन्होंने ये बातें रिपोर्टर को नहीं बताई थीं और रिपोर्टर ने उनकी ग़रीबी का मज़ाक उड़ाया है। माला देवी की शिकायत पर वाराणसी में रामनगर थाने की पुलिस ने 13 जून को दिल्ली की पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई गई। इस मामले में पुलिस ने सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम- 1989, किसी की मानहानि करने से जुड़ी आईपीसी की धारा 501 और किसी महामारी को फैलाने में बरती गई लापरवाही से जुड़ी आईपीसी की धारा 269 के तहत मामला दर्ज़ किया।
हालांकि एफ़आईआर के बावजूद सुप्रिया शर्मा अपनी रिपोर्ट पर कायम रहीं और उनका दावा है कि उन्होंने कोई भी बात तथ्यों से परे जाकर नहीं लिखी है। एफ़आईआर में वेबसाइट की संपादक को भी नामज़द किया गया था। सुप्रिया शर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एफ़आईआर रद्द करने की अपील की लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी यह अपील ख़ारिज कर दी। यह ज़रूर है कि कोर्ट ने उनकी गिरफ़्तारी पर भी तब तक के लिए रोक लगा दी जब तक कि मामले की मुक़म्मल जांच न हो जाए।
अप्रैल 2020 में वरिष्ठ पत्रकार और अंग्रेज़ी न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ़ भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दो एफ़आईआर दर्ज की गई थीं। उन पर आरोप थे कि उन्होंने लॉकडाउन के बावजूद अयोध्या में होने वाले एक कार्यक्रम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शामिल होने संबंधी बात छापकर अफ़वाह फ़ैलाई। हालांकि ‘द वायर’ ने जवाब में कहा है कि इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का जाना सार्वजनिक रिकॉर्ड और जानकारी का विषय है, इसलिए अफ़वाह फ़ैलाने जैसी बात यहां लागू ही नहीं होती। इस मामले में सिद्धार्थ वरदराजन को भी हाईकोर्ट से अग्रिम ज़मानत मिल गई थी।
मई 2020 में लॉकडाउन के दौरान ही यूपी के फ़तेहपुर ज़िले के पत्रकार अजय भदौरिया पर स्थानीय प्रशासन ने एफ़आईआर दर्ज कराई थी। अजय भदौरिया ने रिपोर्ट लिखी थी कि एक नेत्रहीन दंपत्ति को लॉकडाउन के दौरान कम्युनिटी किचन से खाना लेने में कितनी दिक्कतें हो रही हैं।
एक साल पहले यूपी के मुख्यमंत्री के खि़लाफ़ सोशल मीडिया पर कथित तौर पर अशोभनीय टिप्पणी के मामले में पत्रकार प्रशांत कनौजिया के खिलाफ़ लखनऊ के हज़रतगंज कोतवाली में एफ़आईआर दर्ज कराई गई थी और बाद में उनको गिरफ़्तार किया गया था.
पुलिस का आरोप था कि प्रशांत ने मुख्यमंत्री पर आपत्तिज़नक टिप्पणी करते हुए उनकी छवि ख़राब करने की कोशिश की थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशांत कनौजिया को रिहा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ़ प्रशांत कनौजिया की गिरफ़्तारी पर सवाल उठाते हुए काफ़ी सख़्त टिप्पणी की थी बल्कि 11 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने संबंधी मजिस्ट्रेट के फ़ैसले की भी आलोचना की थी। प्रशांत कनौजिया पर पिछले 18 अगस्त को एक ट्वीट की वजह से लखनऊ के ही हज़रतगंज कोतवाली में फिर से एफ़आईआर दर्ज हुई और उन्हें दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया था।
जून 2020 में कानपुर नगर के नारी निकेतन में संवासिनियों से सम्बन्धित अज्ञात मीडिया संस्थानों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। पत्रकारों पर दबाव बनाने का पूरा प्रयास किया गया था। तब इस मामले को प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया ने संज्ञान लेकर जब कार्रवाई शुरू की और अधिकारियों को तलब किया तो जिला प्रशासन ने मामले को रफा दफा कर दिया।
मई 2020 में कानपुर नगर बाबूपुरवा थाने में साप्ताहिक समाचारपत्र के सम्पादक आशीष अवस्थी पर मुकदमा दर्ज करवाया गया था क्योंकि आशीष अवस्थी ने कोरोना के दौरान की होमगार्ड के जवानों की व्यथा से जुड़ी खबर चलाई थी। दरअसल हुआ कुछ यूं था कि मीडिया ब्रेक समाचार के संपादक आशीष अवस्थी ने 8 मई 2020 को कोरोना महामारी से जूझ रहे होमगार्डाे की दुर्दशा को अपनी खबर के माध्यम से उजागर किया था किस तरह से अदृष्य कोरोना से बिना किसी बीमा कवच के होमगार्ड जूझते हुये ड्यूटी कर रहे हैं जबकि पुलिस कर्मियों को कोरोना महामारी की दृष्टिगत उत्तर प्रदेश शासन से बीमा सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। होमगार्डों और पुलिस कर्मियों के मध्य भेद-भाव की सच्चाई कानपुर पुलिस को नगवार गुजरी और कानपुर पुलिस के उच्च अधिकारियों के इशारे पर मीडिया ब्रेक के सम्पादक आशीष अवस्थी के खिलाफ कानपुर दक्षिण क्षेत्र के बाबूपुरवा कोतवाली के इंस्पेक्टर राजीव सिंह की तहरीर पर सोशल मीडिया में खबर प्रसारित करने और कानपुर पुलिस की छवि धूमिल करने सहित अन्य गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई।
इस मामले को भी प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया ने संज्ञान लेकर जब कार्रवाई शुरू की तो मामले को रफा दफा कर दिया था।
जनवरी 2021 में कानपुर देहात में जाड़े के प्राथमिक पाठशाला में मौसम में बिना स्वेटर के छात्रछात्राओं के व्यायाम की खबर चलाने पर तीन पत्रकारों मोहित कश्यप, अमित सिंह व यासीन अली के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। जिस कार्यक्रम के सम्बन्ध में खबरें चलाई गई थी। उस समय राज्यमंत्री अजीत पाल, विधायक प्रतिभा शुक्ला और निर्मला संखवार मौजूद थे और कानपुर देहात के डीएम दिनेश चंद्र और बीएसए सुनील दत्त ने अपनी किरकिरी से बचने के पत्रकारों पर दवाब बनाने के लिए मुकदमा दर्ज करवा दिये थे।
मार्च 2022 में आगरा के पत्रकार गौरव बंसल को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, कथित तौर पर प्रताड़ित किया गया था। इस मामले में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अदालत की निगरानी में जांच करने की मांग उठाई। गौरव बंसल (39) को हाल ही में उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कथित तौर पर धांधली की रिपोर्टिंग करने के बाद, 15 मार्च को गिरफ्तार किया गया था। एडिटर्स गिल्ड ने चिन्ता जाहिर की और कहा कि पत्रकारों को संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने से रोकने के लिए दंडात्मक कानूनों का सहारा लिया जा रहा है।
मार्च 2022 में बलिया जिले में बोर्ड परीक्षा के पेपर लीक होने पर जिला प्रशासन ने अपनी किरकिरी से बचने के लिये मामला दर्ज करवाया और पत्रकारों को निसाना बनाकर दवाब बनाने का कार्य किया। इस ममाले में अजीत ओझा, दिग्विजय सिंह को गिरफ्तार जेल भेजा।
ऐसे हालातों में विचारणीय तथ्य यह है कि स्थानीय स्तर पर ख़नन और अपराध जैसे गंभीर मामलों में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को कथित तौर पर माफ़िया के हमलों का शिकार तो अक्सर बनना ही पड़ता है लेकिन जब छोटी-मोटी बातों में प्रशासन की भी नज़रें टेढ़ी होने लगें तो ये मामला बेहद गंभीर हो जाता है और पत्रकारों के सामने सुरक्षा का सवाल भी खड़ा हो जाता है।
ऐसे में अहम सवाल यह भी है कि क्या ख़बर लिखने के आरोप में पत्रकारों के खि़लाफ़ एफ़आईआर और गिरफ़्तारी जैसी कार्रवाई होनी चाहिए, वो भी इसलिए कि इससे सरकार की छवि ख़राब हो रही है? जबकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत अगर पत्रकार ने जो ख़बर लिखी और किसी को उस पर आपत्ति है तो उसके लिए नियम बने हैं। नियत समय के अन्तर्गत आप सब से पहले संस्थान के सम्पादक से शिकायत कर सकते हैं। समुचित जवाब ना मिलने पर प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया में जा सकते हैं, यहां तक कि कोर्ट में भी जा सकते हैं लेकिन सरकारी तन्त्र अपने नकारापन रवैये को छुपाने के लिये पत्रकार के साथ एक अपराधी की तरह पेश आया जाये, उस के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करवाके फिर गिरफ़्तार करवा लिया जाये, ऐसा नहीं होना चाहिए। इससे साफ़ पता चलता है कि सरकार में आलोचना सुनने की सहनशक्ति नहीं है और सरकार अथवा सरकारी तन्त्र प्रतिशोध की भावना से काम कर रहा है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिये शुभ संदेश नहीं है।