आज मौसम बड़ा बेईमान है, बड़ा बेईमान है आने वाला कोई तूफ़ान है, आज मौसम बड़ा बेईमान है!.. यह गीत सुनकर मन हर्ष उल्लास से भर जाता है खासकर जब मौसम गर्मी का हो एक अजीब सी शांति मिलती है। यूं तो गर्मियां मई- जून से प्रारंभ होती है जो जुलाई-अगस्त में उमस के कारण अपनी चरम पर हो जाती है और कम से कम नवंबर तक रहती हैं। परंतु इस वर्ष ना जाने गर्मियां एकदम से दस्तक दे गई है जो कि काफी आश्चर्यजनक है क्योंकि इसी प्रकार बीते वर्ष 2021 में सर्दियों का प्रारंभ भी अचानक हुआ था। बीच का हल्की हल्की सर्दी गर्म हवा जिसमें आधी बाजू वाला स्वेटर जैकेट पहनने वाला मौसम आया ही नहीं। कोविड-19 की वजह से पता ही नहीं चला 2 साल कब कैसे कट गए, जब महामारी का प्रभाव हल्का हुआ तो भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा, बीच का वह आनंदित फागुन का मौसम कही अदृश्य हो गया हो।
तापमान में नियमित बढ़त देखी जा रही है। भारत के कई हिस्सों में तापमान निरंतर 38सी-40सी रिकॉर्ड हो रहा है। भारत के उत्तर के प्रदेश जम्मू कश्मीर के जम्मू में 75 साल का रिकॉर्ड टूटा है यहां 28 मार्च को 38सी डिग्री तापमान मापा गया है। वहीं भारत की राजधानी दिल्ली भी पीछे नहीं है यहां पारा 40सी पार कर गया है। अब आलम यह है कि जहां कोविड-19 की पाबंदियां के कारण घर से बाहर निकलना एक मजबूरी थी वही अब घर से बाहर निकालना एक सज़ा से कम नहीं है।
गीत की पंक्तियां कहती है आने वाला कोई तूफ़ान है, तूफ़ान तो आ रहा है परंतु धूल मिट्टी, सूखे पत्ते वह गंदगी भरा जो जगह-जगह ,घर, अगर आप बाहर हैं तो आपके मुंह पर चिपक जाएगा। सबसे ज़्यादा आंखें फेफड़े व त्वचा खराब हो जाती हैं। इस मौसम के साथ रूखेपन की वजह से आंखों की पलकें भी ज़्यादा उपयुक्त होती हैं उनके बाल गिरने लगते हैं। हमारी त्वचा की ऊपरी परत खत्म हो जाती है वहीं इतनी धूप और गर्मी के चलते पिगमेंटेशन व स्किन अल्सर हो जाते है जो कि स्किन कैंसर का रूप ले लेती है। श्वास लेने मुसीबत हो जाता है, वक्त बेवक्त की सर्दी ज़ुकाम बुखार खांसी हो जाती है क्योंकि बाहर गर्मी होती है और अंदर ऐसी चाहे दफ्तर , हो घर, दुकान कॉलेज, मेट्रो आदि। कोविड-19 ने तो फेफड़ों को पहले ही कमज़ोर कर दिया है बाकी का ठंडा गरम खाने से व धूल मिट्टी प्रदूषण से खत्म हो जाता है।
वातावरण के इस बदलते रूप की आशंका जताई जाती है, कि मनुष्य जिस गति से आधुनिकरण की और निकल पड़ा है उसी गति से बीमारियों का शिकार भी हो रहा है। प्रकृति में हुए खराब तालमेल का असर हम कोविड-19 महामारी के रूप में झेल चुके हैं। वक्त बेवक्त का बदलता व अपने चरम पर बदलता मौसम ना जाने क्या गुल खिलाए जोकि कल्पना से भी परे होगा।
-सुमन नारंग।