आजादी की 75वीं वर्षगाँठ पर अमृत महोत्सव पूरे जोर शोर से मनाने पर जोर दिया जा रहा है। आम हो खास हर व्यक्ति इस महोत्सव का भागीदार बनाया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि हम अमृत महोत्सव के बारे में कितना जानते हैं ? इस महोत्सव को क्यों मना रहे हैं ?
बताते चलें कि ‘‘अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन योजना’’ AMRUT: Atal mission for rejuvenation and transformation scheme (A-Atal, M-mission, R-rejuvenation, U-urban, T-transformation ) की शुरूआत देश के शहरों व कस्बाई इलाकों के विकास के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में की थी। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक घर को पाइप लाइन द्वारा जलापूर्ति एवं सीवर कनेक्शन उपलब्ध कराना था। इसके अतिरिक्त योजनांतर्गत हरियाली विकसित करना तथा पार्कों का सौंदर्यीकरण भी शामिल था ताकि नागरिकों का स्वास्थ्य और शहर का सौंदर्यीकरण बेहतर से बेहतर हो सके।
अमृत योजना में शामिल होने पर शहरों का कायाकल्प करने की बात कही गई थी और कहा गया था कि शहरों की सड़कों का रखरखाव हो सकेगा, सीवर सिस्टम तथा सामुदायिक शौचालय पर काम किया जाएगा।
बताया गया था कि इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार छोटे शहरों व कस्बों को या फिर शहरों के कुछ अनुभागों को चुनेगी और वहां पर बुनियादी सुविधाएं स्थापित करेगी। इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिये करोड़ों रुपए का आवंटन किया गया था।इस ऐलान के बाद ऐसा कयास लगाया जा रहा था कि अमृत मिशन के अंतर्गत आने वाले मोहल्लों, मकानों में अमूलचूल परिवर्तन आ जायेगा। ऐसा भी बताया जा रहा था कि अमृत परियोजना के अंतर्गत जिन कस्बों या क्षेत्रों का चयन किया जायेगा वहां बुनियादी सुविधाएं जैसे- बिजली, पानी की सप्लाई, सीवर, सेप्टेज मैनेजमेंट, कूड़ा प्रबंधन, वर्षा जल संचयन, ट्रांसपोर्ट, बच्चों के लिये पार्क, अच्छी सड़क और चारों तरफ हरियाली, आदि विकसित की जायेंगी। इनके अतिरिक्त ई-गवर्नेन्स के माध्यम से कई ऐसी सुविधाएं दी जायेंगी जो लोगों के जीवन को सुगम बनायेंगी। यह भी बताया गया था कि हर क्षेत्र के अंतर्गत नगर निकाय की कमेटियां होंगी, जो इस परियोजना को सफल बनाने की जिम्मेदारी उठायेंगी। यह भी बताया गया था कि कस्बों का कायाकल्प करने वाली इस परियोजना का हर क्षेत्र में नियमित रूप से ऑडिट किया जायेगा। बिजली का बिल, पानी का बिल, हाउस टैक्स, आदि सभी सुविधाएं ई-गवर्नेन्स के माध्यम से सुनिश्चति की जायेंगी। जो राज्य बेहतर ढंग से इस परियोजना को आगे बढ़ायेंगे उनके लिये बजट में 10 प्रतिशत तक का आवंटन किया जायेगा। यह योजना उस कस्बे में लागू करने की बात कही गई थी जिसकी जनसंख्या एक लाख से ज्यादा होगी। इसके साथ ही उन छोटे शहरों में लागू होगी, जहां से छोटी-छोटी नदियां गुजरती हैं। बताते चलें कि अमृत योजना के अंतर्गत उन परियोजनाओं को शामिल किया जाना था जो जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत अधूरी रह गईं थी। इसका लक्ष्य जेएनएनयूआरएम की अधूरी परियोजनाओं को 2017 तक पूरा करना था।
अब इसे आजादी की 75वीं वर्ष गाँठ से जोड़कर अमृत महोत्सव के रूप में जोड़ दिया गया है। लेकिन अधिकतर लोगों को पता ही नहीं कि अमृत महोत्सव क्या है और क्यों मनाया जा रहा है? यही हाल सरकारी विभागों का है उन्हें भी शायद इसके बारे में सही जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि सरकार का निर्देश है, उसी तहत सबकुछ किया जा रहा है।
वहीं विकास कार्यों की बात करें तो यह किसी से छुपा नहीं है। लगभग सभी योजनायें भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं और हम उन्हीं योजनाओं का गुणगान करते हुए अमृत महोत्सव की खुशियाँ मना रहे हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकारी भ्रष्टाचार को आजादी की 75वीं वर्षगाँठ से जोड़ दिया जाना क्या उचित है? क्या हम उसी ‘‘अमृत महोत्सव’’ को मना रहे हैं जिसके तहत संचालित लगभग हर योजना/परियोजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है ?
देश वासियों को इसका जवाब केन्द्र सरकार से मांगना चाहिये कि आजादी की वर्षगाँठ से इसे क्यों जोड़ दिया गया, जबकि ‘शिक्षा-चिकित्सा सहित रोटी-कपड़ा और मकान’ की समस्या की समस्या आज भी विकराल बनी हुई है ?
-Shyam Singh Panwar