Tuesday, November 26, 2024
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रोजगार बांटने के कसीदे पढ़ने वाले, नहीं खुलवा सके हैं बंद मीलों के ताले

कानपुरः जन सामना ब्यूरो। यूं तो राष्ट्रवाद की नौका पर सवार होकर सन् 2014 से केंद्र सरकार के रूप में एवं सन् 2017 से उतर प्रदेश में राज्य सरकार के रूप में भारतीय जनता पार्टी राजगद्दी पर बैठी हुई है। जिसे यहां की जनता द्वारा इस देश और प्रदेश को चलाने की बागडोर सौंपी गई है। तमाम मसलों पर इस सरकार की कार्यशैली देश के नागरिकों की दृष्टि में खरी उतरी इस लिए देश की अधिकांश आबादी अपनी नजरों में भव्यता बरकरार रखे हुए है जबकि एक ऐसा मुद्दा देश के अंदर आज भी व्याप्त है जिसको लेकर इस देश की युवा पीढ़ी का एक हिस्सा सरकार की नीतियों का विरोध करता भी नजर आता है और वह मुद्दा है बेरोजगारी! वैसे तो सरकार का सक्रियता दिखाने वाला मंत्रिमंडल अक्सर देश के अंदर ‘रोजगार पहले के मुकाबले तीव्र गति से बढ़ाने का दम भर रहा है’ और युवाओं को आत्मनिर्भर का उपदेश देते हुए खुद का व्यापार करने के लिए सरकार प्रेरित और प्रोत्साहित कर रहा है। सरकार के द्वारा मुद्रा लोन जैसी तमाम योजनाओं का संचालन भी किया गया जिसकी वास्तविकता किसी से छुपी नहीं है। क्योंकि मुद्रा लोन योजना के प्रचार प्रसार में सरकार ने करोड़ों रुपए भी खर्च कर दिए पर उसका असर जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है।
ऐसे में कानपुर की पहचान रहीं टेक्सटाइल मिलें, अपनी पहचान बचाने को लेकर संघर्ष करते करते थक सी चुकीं हैं। कभी देश का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर में सूती और ऊनी कपड़ों की मिलों के अब सिर्फ निशान ही बचे हैं उसके अलावा यदि कुछ बचा है तो इन मिलों में काम कर रहे कर्मचारियों के अनशन की तस्वीरें जिन्हें लेकर आज सीपीएम जैसी पार्टी के नेता और पूर्व में मिलो में कार्यरत रहे मजदूर नेता यदाकदा अनशन के तौर पर मीलों के द्वार पर बैठे नजर आते हैं।
कानपुर के वीआईपी रोड के आस-पास लाल इमली की ईंटों की बनी हुई शानदार इमारत, उससे लगी हुई एक ऊंची क्लॉक टॉवर और इमारत के भीतर मशीनें और चिमनियां साफ देखी जा सकती हैं और ये सब न सिर्फ इस इमारत की बल्कि इस शहर की बुलंदियों की भी गवाह बनी हैं।एक समय था जब कानपुर की बड़ी-बड़ी मिलों, खासकर टेक्सटाइल मिलों का न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में डंका बजता था लेकिन वक्त बीतने के साथ ही इन मिलों से बजने वाले सायरन की आवाजें खामोश हो गईं और देखते ही देखते कानपुर की 12 प्रमुख टेक्सटाइल मिलें बंद कर दी गयीं। मजदूर बेरोजगार होते गए, उनके घरों के हालात क्या हुए उसे बयां नहीं किया जा सकता है और आम लोगों के लिए इन मीलों से मिलने वाले सस्ते लेकिन गुणवत्ता में शानदार सूती और ऊनी कपड़े सिर्फ एक ख्वाब बनकर रह गए।
कानपुर की बंद पड़ी मिलों में से एक प्रमुख मिल है एलगिन मिल नंबर वन जहां एक समय करीब चार हजार मजदूर काम करते थे, इसी शहर में एलगिन मिल नंबर दो भी है और वहां भी यही स्थिति थी साल 2003 में 12 सौ से ज्यादा मजदूरों को मिल में नहीं आने का फरमान सुनाया गया, साल 2013 से मिल में उत्पादन बंद हो गया और उसके बाद तो मिल को बंद होना ही था और आखिरकार ऐसा हो भी गया, इस मिल के बाहर अपने हक की लड़ाई लड़ रहे कुछ मजदूर अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद उनकी बात सुनी जाए और उन्हें न्याय मिल सके यह तो इतिहास है कानपुर की मीलों का पर यह मीलें मौजूदा वक्त में उत्तर भारत में व्याप्त बेरोजगारी पर रोजगार रूपी हथौड़े से इतनी गहरी चोट मार सकती हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती यदि सरकार द्वारा इन मिलों को चालू करके इनमें कपड़ों का उत्पादन शुरु करवा दिया जाए।
पूर्व में केंद्र में शासित रही कांग्रेस सरकार के द्वारा कानपुर की चर्चित ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन के द्वारा बनाई गई लाल इमली मील के संचालन को शुरू करने के लिए सन् 2013 में 161.98 करोड़ रुपए की राशि भी आवंटित की गई थी जिसका आवंटन पूर्व केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के अथक प्रयासों से संभव हुआ था। जबकि सन् 2009 में 338 करोड़ रुपए का रिवाइवल पैकेज भी इस मील को चालू करने के लिए पास किया गया था लेकिन एक भी रुपया कानपुर नहीं पहुंचा।
उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर को पूर्व चर्चित नाम उद्योगों का मैनचेस्टर दिलाने का वादा मौजूदा सरकार सैकड़ों बार कर चुकी है पर अब तक उस वादे की एक भी कवायद जमीनी स्तर पर नजर नहीं आई है यदि सरकार के द्वारा इन मीलों के ताले खुलवाने के साथ-साथ इनका आधुनिकीकरण करके संचालन शुरू कराया जाएगा तो युवा पीढ़ी का एक बहुत बड़ा तबका बेरोजगारी के दलदल से बाहर निकल सकेगा और कानपुर के व्यापार को फिर से एक नई दिशा और दशा मिलेगी एवं औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर को उसकी पुरानी पहचान मिल सकेगी।
सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि कानपुर महानगर की बन्द पड़ी मिलों को लेकर किसी सांसद या विधायक ने पहल नहीं की। ऐसे में यह कथन कटु भले ही लगे कि ‘‘रोजगार बांटने के कसीदे पढ़ने वाले, नहीं खुलवा सके हैं बंद मीलों के ताले!’’ पूरी तरह से है यथार्थ।
इसमें कतई दो राय नहीं है कि अगर कानपुर महानगर की बन्द पड़ी मिलों पर ध्यान दिया जाये तो लाखों लोगों की रोजीरोटी चल सकती है। लेकिन इस ओर शायद कोई सोंचना ही नहीं चाहता?

-शिवाँक अग्निहोत्री