मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतगणना के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी के कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया है। कांग्रेस की शिकायत थी कि डाक मतपत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली थी लेकिन ईलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की गिनती के बाद यह काफी कम हो गई।
कांग्रेस के आरोप पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा, ‘जनता मतदान में भाग लेकर सवालों का जवाब देती है। जहां तक ईवीएम का सवाल है वह 100 फीसदी फूलप्रूफ (सुरक्षित) हैं।’ उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले कहा कि पहले भी कई बार साबित हो चुका है कि ईवीएम सही है। इसमें किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं है।
महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों की घोषणा करने के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजीव कुमार ने एक बार फिर गारंटी दी है कि ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित है। पेजर से ईवीएम की तुलना पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा है कि पेजर कनेक्टेड होता है लेकिन ईवीएम किसी भी तरह से कनेक्टेड नहीं होता है इसीलिए इसे हैक नहीं किया जा सकता है।
लेख/विचार
ऋषि परम्परा के उद्योगपति रतन टाटा
रतन टाटा आजाद भारत में उद्योग जगत के ऐसे नायक कहें या महानायक थे जिन्हें हर कोई स्नेह करता था। वे 86 साल के थे, उनका जाना दुखी करता है लेकिन उनका जीवन कभी भी शोक का क्षोभ का कारण नहीं रहा । क्योंकि उनके हिस्से में यश-कीर्ति के अलावा कुछ और था ही नहीं। वे अपयश से कोसों दूर रहे। जो उनसे मिला वो भी और जो उनसे नहीं मिला वो भी रतन टाटा का मुरीद था।
मैं रतन टाटा से कभी नहीं मिला,लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वे हमारे घर के ही बुजुर्ग सदस्य हैं। वे न हमारी जाति के थे और न बिरादरी के ,फिर भी अपने से थे। वे पारसी थे ,ये बहुत कम लोग जानते होंगे,क्योंकि उन्होंने कभी अपने पारसी होने का डंका नहीं पीटा । हिन्दुस्तान के बच्चे -बच्चे की जुबान पर रतन टाटा का नाम था । आखिर क्यों न होता? एक जमाने में टाटा उद्योग समूह ने भारतीयों के लिए छोटे से लेकर बड़े उपभोक्ता सामिन का गुणवत्ता के साथ निर्माण किया और जन-जन तक उसे पहुंचाया। रतन टाटा दरअसल आज के भारत में एक अपवाद थे, जो उद्योगपति होते हुए भी सादगी पसंद थे। उनका जीवन हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है । उनके जीवन के तमाम ऐसे किस्से हैं जो आपको चौंकाएंगे भी और प्रभावित भी करेंगे।
आज के युग में जहाँ कोई भी उद्योगपति विवादों से परे नहीं है । विवाद भी ऐसे जो कि जो आपको हैरान भी करें और दुखी भी। लेकिन रतन टाटा इन सबसे बचे रहे। कैसे बचे रहे ये शोध का विषय हो सकता है। रतन टाटा को हालाँकि भारतरत्न अलंकरण नहीं मिला लेकिन वे थे तो भारतीय उद्योग जगत के रतन ही। उनकी चमक दमक आखरी वक्त तक कायम रही । उनका नाम सड़क से संसद तक सम्मान के साथ ही लिया गया । कभी किसी भी सरकार के साथ उनकी न नजदीकी रही और न दूरी। किसी सरकार को उनकी वजह से और उन्हें किसी सरकार की वजह से न विवादित होना पड़ा और न अपमानित। उन्हें लेकर संसद में कभी कोई उत्तेजक बस नहीं हुई ।
रतन टाटा को ईश्वर ने बेहद खूबसूरत बनाया था। वे यदि उद्योगपति न होते और फ़िल्मी दुनिया में काम कर रहे होते तो शायद वहां भी उनका स्थान शीर्ष पर ही होता । रतन जी खास होकर भी हमेशा आम आदमी कि बारे में सोचते थे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के छोटे बेटे की कल्पना से जैसे सबसे सस्ती पारिवारिक कार मारुति-800 का जन्म हुआ था उसी तरह रतन टाटा ने भी एक लाख की कीमत वाली नैनो कार का निर्माण कराया और आम आदमी के कार वाले सपनों में रंग भरे थे। नैनो को मारुति-800 जैसा प्रतिसाद नहीं मिला लेकिन उनकी सोच को प्रणाम किया गया और उसे एक कीर्तिमान की तरह हमेशा याद किया जाएगा।
रतन टाटा अविवाहित थे, क्यों थे इसकी एक अलग कहानी है।
देवी में निहित श्रृद्धा
शक्ति आराधना पर्व शारदीय नवरात्रि समापन की ओर है। हमने नौ दिवस माता के प्रत्येक रूप की महिमा एवं स्वरूप का गुणगान किया है। नौ दिन माँ ही हमारे लिए सर्वस्व रही है। प्रत्येक कन्या आदिशक्ति दुर्गाजी का प्रतिरूप है, जिसमें सृजन की शक्ति है जो सदैव परिवार के लालन-पालन, भरण-पोषण के लिए समर्पित रही है। जगतमाता जगदंबा ने प्रत्येक प्राणी को अपनी ममता की छाव प्रदान की है। सभी को संतति मानकर स्नेह और प्रेम से सींचा है। कन्या पूजन के समय हम कन्याओं को देवी का प्रत्यक्ष स्वरूप मानकर पूजते है, पर उस शक्ति स्वरूपिणी देवी की उत्कंठा, प्रताड़ना, भय, संत्रास, घुटन एवं पीड़ा हमें वर्ष भर दर्शनीय नहीं होती। भ्रूण हत्या के समय हम उस मातृ शक्ति को स्मरण रखना भूल जाते है। बलात्कार के समय हम उस देवी के आशीर्वाद, उसकी प्रार्थना, ध्यान, अर्चना एवं उसकी सृजन शक्ति सभी को नगण्य मानते है।
नारी की विशालता का वर्णन तो असंभव है। प्रत्येक स्वरूप में नारी ने उत्कृष्टता, समर्पण, श्रृद्धा, निष्ठा, त्याग एवं प्रेम को प्रदर्शित किया है। जब सीता बनी तो अपनी पवित्रता के लिए अग्निपरीक्षा दे दी। सावित्री बनी तो अपने पति के प्राणों के लिए निडर होकर यमराज के समक्ष प्रस्तुत हुई। राधा बनी तो प्रेम की उत्कृष्टता को दर्शाया। सती बनी तो पति सम्मान में देह त्याग दी। मीरा बनी तो सहर्ष विष का प्याला ग्रहण किया। लक्ष्मी बनी तो नारायण के चरण दबाकर सेवा का महत्व समझाया। उर्मिला बनी तब वियोग की पीड़ा को सहन किया। शबरी बनकर प्रभु के प्रति अगाध श्रृद्धा एवं भक्ति भाव को दर्शाया। भगवान शिव माता गंगा को शीश पर धारण करते है। वे नारी के प्रति सम्मान को बताते है। सीता स्वयंवर में नारी की स्वेच्छा को कितना महत्वपूर्ण बताया गया है।
आज पुनः महिषासुर रूपी राक्षस का आतंक, क्रूरता एवं भय दृष्टिगोचर हो रहा है। माता की पूजा शक्ति आराधना पर्व में तो हमने पूर्ण पवित्रता रखी है, परंतु हमारे विचार कलुषित हो गए है। वात्सल्य रूपी माँ भगवती को आज दैत्य शुंभ-निशुंभ एवं रक्तबीज का वध करना होगा। आज का मानव पुनः दानव में परिवर्तित होता नजर आ रहा है, जो स्त्री की गरिमा, निष्ठा एवं सम्मान का हनन कर रहा है, जिसके कारण दुर्गा रूपी कन्या का हृदय दहल गया है, जिससे शक्ति की आराधना करने वाले समाज में नारी स्वयं को असुरक्षित अनुभव करती है।
माँ के स्वरूप में आदि-अनंत, सृजन-विनाश, क्रूर-करुणा एवं काल सब कुछ व्याप्त है, तो माँ के इस स्वरूप के दर्शन हमें सदैव प्रत्येक नारी में करने चाहिए और कन्या के प्रति अपने विचारों को दिव्यता प्रदान करनी चाहिए।
हरियाणा ने जातिवाद को नकारा, क्षेत्रीय पार्टियां पूरी तरह साफ़
हरियाणा के जनादेश ने देश को एक बड़ा संकेत दिया है, उसकी तरफ़ भी लोगों को ध्यान देना चाहिए। हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टियां पूरी तरह साफ़ हो गई हैं। हरियाणा ने फिलहाल क्षेत्रवाद और जातिवाद को नकार दिया है। जनता ने चुप रहकर सबका हित चाहने वालों को दिया वोट। पब्लिक सब जानती है किस में और कहाँ है कितना खोट। कांग्रेस ने दो दिन खूब खुशियाँ मनाई, किसने रोका था, मना भी लेनी चाहिए। लेकिन अतिआत्मविश्वास बहुत घातक होता है, जो कांग्रेस के सर चढ़कर बोला दो दिन। इनको क्या पता था कि बिस्मार्क को पटकनी देगी बीजेपी। शाह की चाल बड़ी शांत है, मगर विजेता जैसी है। कौटिल्य भी हरियाणा के परिणाम देखकर सोच रहे होंगे कि मैं क्या पढ़ना भूल गया। एग्जिट पोल ने जैसी हवा छोड़ी, वह बिलकुल उल्टा हुआ है। इसका मतलब मीडिया और उसकी एजेंसियाँ जनता के हित में काम क्यों नहीं कर रही या इनको केवल अपनी टीआरपी और विज्ञापनों से मतलब है। ये एक तरह से धंधा है, इनको ये सब अफवाह फैलाने का पैसा मिलता होगा। एग्जिट पोल वालों कभी तो सही पोल दिखाओ,कांग्रेस वालों को डर था कि लोकसभा वाले एग्जिट पोल की तरह ये भी झूठ ना हो और झूठा साबित हो गया। खुले आम सट्टा चला, क्या ये कानून सही है? अगर नहीं, तो एजेंसियाँ इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करतीं?
-प्रियंका सौरभ
हरियाणा में मोदी के विकास और गारंटी की राजनीति का सिक्का चला
हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद यह पहला चुनाव था जिसमें विपक्ष खासकर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा और वह आत्मविश्वास से लबरेज थी। इस बार भी कांग्रेस का चुनाव प्रचार आक्रामक था और उसके निशाने पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस के बाकी नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मोदी को घेरने के लिये तरह तरह की धारणाएं बनाने की कोशिश की और ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई जैसे मोदी की लोकप्रियता ढलान पर है।
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की लगातार तीसरी बार स्पष्ट बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीत गई। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिये ये चुनाव वर्चस्व की लड़ाई थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन पहले की अपेक्षा कमजोर रहा था और उसने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बाकी घटक दलों के बल पर केन्द्र में सरकार बनाई है।
पिण्डदान
टॉक्सिक वर्क कल्चर
किसी भी व्यवसाय के लिए एक मजबूत और स्थिर कॉरपोरेट कल्चर जरूरी है ताकि कर्मचारी उस कल्चर में खुद को सहज महसूस कर अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके लेकिन जब यह संस्कृति नकारात्मक हो जाती है तो इसका खामियाजा कंपनी के बजाय कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है। कंपनी का मुनाफा तो बढ़ जाता है लेकिन कर्मचारियों पर काम के अतिरिक्त बोझ के कारण उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बहुत सी कंपनियाँ सकारात्मक कॉरपोरेट संस्कृति के बारे में सोचना नज़रंदाज करती हैं।
पिछले कुछ सालों में कारपोरेट कल्चर में बहुत बदलाव आया है। कंपनियाँ अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए कर्मचारियों के ऊपर काम का दबाव बढ़ा रही है, जिसमें कर्मचारियों की सेहत भी दांव पर लग रही है। लोगों के अनुसार मैनेजमेंट अक्सर कर्मचारियों पर दबाव डालता है। जिससे वह कमर तोड़ काम करने पर मजबूर होते हैं और उनकी जीवन जीने की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि यह कार्यप्रणाली सुधार और विकास के रास्ते खोलती है और बहुत से लोग अपने जुनून और महत्वाकांक्षा के चलते अधिक घंटे तक काम करने के विकल्प पर जोर देते हैं।
अभी हाल में एक अकाउंटिंग फर्म में काम करने वाली 26 साल की महिला एना सेबेस्टियन पेराइल की दुखद मौत ने सनसनी फैला दी है। नौकरी के चार महीने बाद ही उनकी तबीयत में बदलाव आने लगा। काम का अत्यधिक दबाव, अनिवार्यता और अनियमितता ने उनकी जिंदगी छीन ली। एना की मृत्यु ने इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे अन्य लोगों को भी प्रकाश में लाया है और उन्होंने अपने ऊपर बीत रही परेशानियों को साझा किया है।
मेहर सूरी बेंगलुरु से है जिन्हें ऑफिस में 12 घंटे काम करना ही पड़ता है और छुट्टी लेने पर सैलरी काट ली जाती थी। नौकरी छोड़ने पर उनसे दो महीने की सैलरी मांगी गई। जो व्यक्ति नौकरी छोड़कर बेरोजगार हो जायेगा उससे दो महीने की सैलरी मांगी जा रही है।
सुकून मुंबई एड कंपनी में काम करते थे इनसे अकेले तीन व्यक्तियों का काम करवाया जाता था। ये घर पर भी काम लेकर आते थे नतीजा भूख और अनियमित जीवन शैली के कारण नौकरी छोड़ देनी पड़ी।
प्रिया नोएडा की रहने वाली है जर्नलिज्म के प्रोफेशन में पूरा दिन बाहर का काम करना पड़ता था और शाम को डेस्क वर्क भी करना पड़ता था। काम करने के लिए कोई वक्त तय नहीं था।
ताशकंद में हमने खोया लाल बहादुर
भाग्य और कर्म के बीच के संघर्ष में कभी कर्म जीतता है तो कभी भाग्य, किन्तु कभी-कभी दोनों के इतर प्रारब्ध बलवान हो जाता है।आध्यात्म और दर्शन के अध्येता प्रारब्ध को सर्वोपरि मानकर नियति के फ़ैसले को अंतिम निर्णय कहते हैं और प्रारब्ध सबकुछ छीनकर भी कभी-कभी उससे कहीं अधिक लौटा देता है। इसी तरह उत्तरप्रदेश के छोटे से नगर मुग़लसराय में रहने वाले लिपिक मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर 2 अक्टूम्बर 1904 में एक बालक का जन्म हुआ। घर के लोग उस बालक को प्यार से नन्हे कहने लगे, जिसका मूल नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव हुआ।
गाँव की गलियों में खेलने वाला नन्हे, जिसने महज़ 18 माह की आयु में ही पिता को हमेशा के लिए खो दिया। पिता के देहांत के बाद माँ रामदुलारी नन्हे को लेकर नाना हज़ारीलाल के घर मिर्ज़ापुर आ गई पर दुर्भाग्य से कुछ ही समय बाद नाना भी चल बसे।
पितरों को याद करना कितना प्रासंगिक….
पितृ पक्ष यानी यह वक्त ऐसा होता है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं। हिंदू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने और उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है लेकिन बदलते वक्त के साथ-साथ अब लोगों की धारणाएं भी बदल रही है कहीं कहीं लोग पूरी विधि विधान के साथ पितरों को याद करते हैं। तर्पण 11, 21, 51 सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को भोजन, दान वगैरा करते हैं लेकिन अब आर्थिक सामर्थ्य के साथ साथ व्यहारिक परिदृश्य भी बदल गया है। लोग जरूरतमंद को दान करने लगे हैं, अनाथालय में भोजन खिलाने लगे हैं, गाय को चारा, चिड़िया को दाना इस तरह के कार्यों में ज्यादा विश्वास करने लगे हैं हालांकि यह तरीका गलत नहीं लगता क्योंकि जरूरतमंद की मदद करना दान की ही श्रेणी में आता है। पशु पक्षियों की देखभाल आज की जरूरत बन गई है।
Read More »चुनावों में डिजिटल अभियान, झूठे-सच्चे वादों का ऐलान
आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर बड़े बजट वाले दलों के विज्ञापनों को अधिक दृश्यता देकर उनका पक्ष लेते हैं, अभियान को अमीर राजनीतिक संस्थाओं के पक्ष में झुकाते हैं, जिससे चुनावी निष्पक्षता कम हो जाती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विभाजनकारी कंटेंट को बढ़ा सकते हैं, जिससे राजनीतिक विचारों का ध्रुवीकरण हो सकता है एवं अधिक खंडित तथा शत्रुतापूर्ण चुनावी माहौल को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे रचनात्मक बहस कम हो सकती है। चुनावी समानता बनाए रखने के लिए, राजनीतिक दलों द्वारा डिजिटल विज्ञापनों पर खर्च की जाने वाली राशि पर सीमाएँ लगाई जानी चाहिए, जिससे अमीर पार्टियों को डिजिटल क्षेत्र पर हावी होने से रोका जा सके।
-प्रियंका सौरभ
गूगल विज्ञापन पारदर्शिता केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, राजनीतिक दलों एवं उनके सहयोगियों ने 1 जनवरी से 10 अप्रैल के बीच अकेले गूगल विज्ञापनों पर लगभग ₹117 करोड़ खर्च किए।