पवन कुमार गुप्ता; रायबरेली। उक्त विषय उनके लिए अवश्य विचारणीय होगा जो चुनावी मैदान में उतरने की इच्छा रखते हैं और भविष्य में राजनीति में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। उनके लिए इस विचार पर मंथन करना जरूरी होगा कि किस पार्टी को या फिर उम्मीदवार को अपना सहयोग, समर्थन दिया जाए, जिससे कि वह उसके राजनीतिक भविष्य का रोड़ा भी ना बन सके। इसके साथ ही वह जिसे आज जिसे अपना समर्थन दे रहा है भविष्य में उसके लिए मजबूत विपक्ष का चेहरा न हो। क्योंकि अक्सर यही देखने को मिलता है कि जिस उम्मीदवार को एक बार कुर्सी मिली तो उसे छोड़ने की इच्छा नहीं होती और कई उदाहरण ऐसे हैं भी कि दो – तीन बार से लगातार एक ही उम्मीदवार के हांथ में कुर्सी लगी है।
फिलहाल नगर निकाय चुनाव में उतरे उम्मीदवारों का भविष्य तो नतीजे आने के बाद ही तय होंगे लेकिन दिग्गज नेताओं के कहने पर पार्टी के हक में अपना समर्थन देने वाले राजनीति से जुड़े लोग क्या अपना राजनीतिक भविष्य भूल जाएंगे। ये बात उनके लिए अत्यंत विचारणीय होगा और उन्हें यदि समर्थन देना ही होगा तो ऐसे उम्मीदवार को देंगे जो भविष्य में उनके सामने मजबूत विपक्ष बनकर न खड़ा हो सके। क्योंकि यह राजनीति है दोस्त, यहां कोई किसी का सगा नहीं। उल्लेखनीय है कि नगर निकाय चुनाव के आगाज से पहले तो आरक्षण को लेकर देरी हुई, फिर सीटों पर ऐसा फेरबदल हुआ कि बड़े बड़े दिग्गज चुप्पी साध कर बैठने को मजबूर हो गए। कुछ ने तो पूरी तैयारी भी कर ली थी परंतु सीटों का फेरबदल होने के कारण विवश हो गए और पीछे हट गए। अब कुछ ने तो कठपुतली भी तैयार कर रखी है और फिर से ताल ठोंक दी है। इन्हीं कठपुतलियों के सहारे राजनीति में वह अपना भी भविष्य तलाश रहे हैं। खैर! यह चुनाव आम जनमानस का है और जनता किसे अपना मत देगी यह उसी के निजी विचार पर निर्भर करता है और मुद्दा नगर विकास का होना चाहिए फिर उम्मीदवार कोई भी हो किसी पार्टी का हो यह फर्क नहीं पड़ता।