एक नयनजल नभ पर अटका
एक नयन के कोर
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर
फूलों की रतजागी आँखें
टेर सुनाए बेकल
प्रीत तुम्हीं मनमीत तुम्हीं
तुम हीं सावन मैं मोर ।।
छुपा मेघ में चाँद दीवाना
रजनी रोई रोई
ये सब बादल सूखे सूखे
बरसे कोई कोई
जादूगर से उस बादल का
निरा अनूठा तौर।
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर ।।
मेघधनुष के आश्वासन में
अल्हड़ पंछी खोया
रंगों का हर पन्ना उसके
नाम लिखा हो गोया
घुमड़ घुमड़ कर छाए
सुधियों के बादल घनघोर
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर ।।
सुबह थाम अनहद उम्मीदें
ठिठकी द्वार खड़ी
वक्त बुलाए कि आ जाऊँ
सोचे घड़ी घड़ी
निशा ढूँढती शशधर को
ताके मेघों की ओर।
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर ।।
कोई ऐसी रात भी आए
सावन टूटे मन भर
प्राण बंधे आलिंगन में
मन लीन मगन मादन भर
रात रातभर मधुरस बरसे
पावस ओर न छोर ।।
प्रीत तुम्हीं मनमीत तुम्हीं
तुम हीं सावन मैं मोर ।।
– कंचन पाठक.