कानपुर, अर्पण कश्यप। शहर इस समय एक नयी समस्या से जुझ रहा है जी हॉ वो समस्या है सिक्के। धातु के सिक्कों की मार से घर हो या व्यापार कोई नही बचा है। लोगों की गाढ़ी कमाई का एक तिहाई हिस्सा जा रहा है सिक्कों का धन्धा करने वाले जिन्हें लोगों बट्टे वाले कहते है की जेब में।
पूरे शहर में अचानक सिक्कों की बड़त ने जैसे लोगों की दिनचर्या ही बदल दी दुकानों पर ग्राहक हो या दुकानदार हर कोई सिक्के लेने से कतरा रहा है।
क्षेत्र के ही एक दुकानदार ने बताया कि रोज तकरीबन एक हजार से पन्द्रह सौ रूपये तक के सिक्के न चाह कर भी लेना पड़ रहे हैं जिसका महीने का औसत तीस हजार है जिसे हमें बट्टे वाले से बदलवाने पर तीस हजार के तीन हजार केवल बट्टे में देने पड़ते हैं यानि कि तीस हजार में तीन हजार का घाटा हमारी मेहनत की कमाई का पैसा बट्टे वाले की जेब में जाता है। वही बैंक ने भी सिक्के लेने बंद कर दिये हैं। एक दो और पॉच के सिक्को की बढ़त ने ग्राहको को भी परेशान कर रखा है। खरीदार करने आयी ग्रहणी माया देवी ने बताया कि कर्रही की एक दुकान पर समान लेने गयी जहॉ उन्होने उसे सिक्के दिये तो उसने अपना दिया हुआ सामान वापस रख लिया। बोला सिक्के नहीं लूगा सवाल जावाब करने पर उसने बताया कि 18 प्रतिशत के हिसाब से सिक्के बदलवा कर आया हूं। हमसे भी थोक दुकानदार सिक्के नहीं लेता अपनी मजबूरी बता कर उसने भी अपना पल्ला झाड़ लिया। अब सवाल ये है कि आखिर ये सिक्के आये कहॉ से जिन्हें अब बैंको ने भी लेना बंद कर दिया है और कौन हैं वो लोग जो सिक्के बदलकर अपनी जेब भर रहे हैं। वहीं सवाल यह भी उठता है कि जो लोग कमीशन पर सिक्के ले रहे हैं वो अपने सिक्कों को कहां रख रहे हैं या कहां दे रहे हैं?