⇒वर्षों से अधिकारियों की दहलीज पर लगा रहा है चक्कर
⇒कानपुर पुलिस शायद चैनलों व अखबारों की खबरों को नहीं देखती
सूबे के मन्त्री का आदेश भी शायद टोकरी में पड़ा है!
⇒क्योंकि आदेश होने के महीना गुजरने के बाद भी नहीं हुई एफआईआर
⇒पीड़ित सिपाही को मिल रही गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी
कानपुर, जन सामना ब्यूरो। कहा जाता है कि पुलिस रस्सी का सांप बना देती है और अपनी पीठ थपथपाने किए किसी को भी बलि का बकरा भी बना देती है। वहीं पुलिस पर यह आरोप लगता रहा है कि वह कई मामलों को खोलने के लिए ऐसा ड्रामा बना देती है जो अदालत को भी गुमराह कर देता है। ऐसे में कई मामले ऐसे प्रकाश में आ चुके हैं जिनमें खुलासा करने के लिए पुलिस ने निर्दोषों को जेल की हवा खिला दी और अपनी वाहवाही लूटने के लिए खुलासा किया, अधिकारियों के चहेते बन गए। लेकिन कभी कभार ऐसा भी होता है कि फर्जी खुलासा पुलिस के गले की हड्डी बन जाता है। जी हां एक मामला ऐसा ही प्रकाश में आया है जो कानपुर पुलिस के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। खास बात यह है कि पुलिस के ड्रामे की पोल एक पुलिस वाले ने ही खोल दी है क्योंकि उसके सामने मजबूरी थी कि अगर अपने अधिकारियों की नहीं मानता तो उनके कोपभाजन का शिकार बनता और उनके कहे पर चल गया जो इनाम में उसे जेल की सलाखें मिल गई। जेल से बाहर आने के बाद जब सच्चाई को पुलिस वाले ने बयां किया तो सबकुछ सामने आ गया कि जिस लूट का खुलासा कर पुलिस ने मीडिया में सुर्खियां बटोरी थी वो खुलासा पूरी तरह से फर्जी था और जिन लोगों को लूट का आरोपी बनाते हुए जेल भेजा गया था उनको छोड़ने के लिए रकम उगाही करने का मोहरा एक सिपाही को बनाया गया था।
अब पुलिस वाला खुद फर्जी लूट का खुलासा करने वाले दरोगाओं व सिपाहियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा है लेकिन तीन साल गुजरने के बाद आज तक मुकदमा नहीं लिखा गया क्योंकि दरोगाओं को पुलिस के उच्चाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। खास बात यह है कि फर्जी खुलासा करने में शामिल एक दरोगा एसएसपी के दफ्तर में तैनात है और वह सिपाही के प्रार्थना पत्रों को दबाए रखता है। पुलिस के तमाम उच्चाधिकारियों से शिकायत करने के बाद अन्ततः थकहार कर पीड़ित पुलिसकर्मी ने मुख्यमंत्री योगी की दहलीज पर दस्तक दी और अपनी पीड़ा सुनाई तो वहां से मन्त्री ने एसएसपी कानपुर नगर को आदेशित किया कि तत्काल एफआईआर दर्ज की जाये लेकिन एक माह गुजरने के बाद अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई, इससे लगता है मन्त्री जी का आदेश भी कूड़ेदान में फेंक दिया गया है।
बताते चलेंकि वर्ष 2014 में कानपुर के बर्रा थाना क्षेत्र के जरौली फेस-2 में हुई लूट के मामले में लूट का खुलासा कर मोनू ठाकुर, नीतू नाई और मनोज गुप्ता को जेल भेजा गया था। इस मामले में मोनू ठाकुर को छोड़ने के एवज में रुपये की मांग की गई और इस उगाही में थाना प्रभारी संजय मिश्रा ने तत्कालीन सिपाही दयाशंकर वर्मा को मोहरा बनाया और बाद में मोनू ठाकुर के परिजनों द्वारा सिपाही वर्मा का मोबाइल टेप कर अधिकारियों को सुनाया गया जिसमें दया शंकर वर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और उसे जेल की हवा खानी पड़ी। लेकिन जब दया शंकर वर्मा जेल से बाहर आये और लूट के खुलासे से जुड़े अहम सबूत व तथ्य जुटाए तो पता चला कि लूट का खुलासा फर्जी था और लूट के खुलासे में शामिल एसओ संजय मिश्रा, एस आई बीरेन्द्र प्रताप सिंह, एस आई प्रमोद कुमार सिंह, एस आई शीतला प्रसाद मिश्रा, का0 अमर सिंह व का0 विजय यादव मुंशी ने खुलासा करने के लिए सामान इधर उधर से जुटाया था और अधिकारियों की छत्रछाया में फर्जी खुलासा कर वाहवाही बटोरी थी।
फर्जी खुलासा की पोल खोलने वाले सिपाही दया शंकर वर्मा ने इस बात को तब से लेकर अब तमाम अधिकारियों के समक्ष रखा लेकिन अब तक फर्जी खुलासा करने वाले पुलिसवालों के खिलाफ कोई कार्रवाही न होना यह साबित होता है कि पुलिस के उच्चाधिकारियों का संरक्षण दोषी पुलिसवालों को प्राप्त है जैसा कि दयाशंकर वर्मा अपने बयानों में देते हैं। इतना ही नहीं तत्कालीन आई जी आशुतोष पर भी दयाशंकर ने गंभीर आरोप लगाए और बताया कि उन्होंने दोषी पुलिस वालों को बचाये रखा है। यह सच साबित हो रहा है एक एसआई वीरेन्द्र प्रताप सिंह वर्तमान में एसएसपी / डीआईजी के कार्यालय में वाचक / रीडर के पद पर तैनात है और वह दयाशंकर वर्मा के प्रार्थनापत्रों को प्रभावित कर रहा है।
अन्त में सूबे के मुखिया योगी जी की चैखट पर दयाशंकर वर्मा में दस्तक दी और सारा मामला बयां किया, मामला सुनने के बाद मन्त्री बलदेव औलख ने कानपुर एसएसपी को दिनांक 8 जुलाई 2017 को आदेश दिया कि तत्कालीन एफ आई आर दर्ज की जाये लेकिन इतना समय गुजरने के बाद अभी तक एफ आई आर दर्ज न होना यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निसान लगा रहा है।
हालांकि अभी एक मामला और प्रकाश में आया है जिससे कानपुर पुलिस का दोहरा चेहरा उजागर कर रहा है। क्योंकि एक मामले में शिकायत आते ही मामला दर्ज कर लिया गया जबकि दूसरे मामले को वर्षों से टरकाया जा रहा है और पीडित सिपाही के प्रार्थना पत्रों को रद्दी की टोकरी में डाला जा रहा है। एक मामला सजेती थाने का है। जहां एक व्यक्ति से उगाही करने व फर्जी फंसाने के आरोप में एस आई अनन्त कुमार सिंह व का0 उदय चन्द के खिलाफ मुकदमा संख्या 0294/17 दर्ज किया गया, जो कि उपरोक्त प्रकरण के जैसा ही है। लेकिन दया शंकर वर्मा के मामले को कानपुर पुलिस गंभीरता से क्यों नहीं ले रही यह गले से नहीं उतर रहा लेकिन यह तो सच है कि कानपुर पुलिस के उच्चाधिकारियों के लिए दया शंकर वर्मा का मामला गले की हड्डी बना हुआ है। अब देखना यह है कि सूवे के मन्त्री जी का आदेश कब तक कूड़ेदान में पड़ा रहेगा?
खास बात यह है कि पुलिस के उच्चाधिकारी अधिकतर मामलों को मीडिया में आते ही संज्ञान में लेकर कार्रवाही का दम भरते हैं लेकिन दया शंकर वर्मा का मामला कई बार मीडिया की सुर्खियां बना फिर भी यूपी पुलिस के कान में जूं नहीं रेंगा। यहां तक कि वर्मा की पत्नी अपने जीते जी अपने पति को निर्दोष नहीं देख सकी और इस जहां से उसने अलविदा कर दिया।
वहीं वर्मा ने बताया कि मुझे धमकी मिल रही है कि आप लगातार शिकायत कर रहे हो इसका गंभीर खामियाजा आपको भुगतना पड़ेगा।