बारिश की एक बूंद ने, तपती जमीन से पूछा।
क्यों बन गई हो आतिश, क्यों बन गई हो आतिश।
आवाज़ सुनकर उसकी, ये तपती ज़मीं है बोली।
बेटी- बहू को लेकर सब, कर रहे हैं साज़िश ।
तो होगी क्यों ना आतिश, तो होगी क्यों ना आतिश।
है हर घरों में माचिस तो, होगी क्यों ना आतिश।
अंग्रेजियत के फैशन अब, हो रहे हैं देखो काबिज़।
कम हर घरों में माजिद, तो होगी क्यों ना आतिश।
दिल के चिरागों की यहां, कम हो रही है ताबिश।
गुल हर घरों की वाजिद, तो होगी क्यों ना आतिश।
अगर हम वतन के बच्चे, हो जाएं ‘नाज़’ क़ाबिल।
है ख्वाब जो हम सबका, हो हर एक घरों में कादिर।
तो होगी ना यह आतिश, तो होगी ना यह आतिश।
बारिश की एक बूंद ने, तपती ज़मीं से पूछा।
क्यों बन गई हो आतिश, क्यों बन गई हो आतिश।।
साधना शर्मा
(राज्य अध्यापक पुरस्कृत)
प्रधानाध्यापिका
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्या सलोन,
रायबरेली
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