हवा भी रुख बदलेगी
मेरे हौसलों के सामने ,
हवा भी रुख बदलेगी।
दुश्वारियां कितनी भी आए,
यह जज़्बा मगर न बदलेगा।
आज भी न्याय में है शक्ति,
अन्यायी खुद पानी भरेगा ।
ऐ कमज़ोर समझने वालों,
मेरी शक्ति का है अंदाज़ा।
मैं मुई ख़ाल की धौंकनी,
तुझको जला राख कर दूंगी।
मुझे कुम्हार की चाक समझ
हर रूप में ढ़ालना है पता ।
तू चालाकी में माहिर है ,
मैं चाणक्य कठिन साधना।
माना तेरे हाथ है लंबे ,
मैं भी प्रण में दृढ़ता रखती।
तू डाल सरीखे जीते हो,
मैं हर पत्ते पर लिखती लेख।
बुरे कर्म का जीवन छोटा,
गति नेकी की अविरल होती।
तुम धरती पर शिशुपाल बने,
मैं सुदर्शन चक्र घुमाऊंगी।
जीवन को तू बदल ले पगले,
नहीं अंत में जा पछताएगा।
रावण में थी महाशक्तियां,
न्याय के आगे टिक न सका।
हाथ खोलकर तू आया है,
और हाथ को मलते जाएगा ।
इतिहास हमें यह बता गया,
नहीं सत्य को आंच कभी आता।
जग बैरी होकर भले रहे ,
सत्य अपना रूप दिखाता है।
हमें ‘नाज़’ है अपने ताकत पर,
तुम्हें मिट्टी धूल चखाऊंगी ।
✍️ डॉ० साधना शर्मा (राज्य अध्यापक पुरस्कृत)
इ० प्र० अ० पूर्व मा० वि० कन्या सलोन, रायबरेली।
उपाधि – ‘नाज़’