मथुराः श्याम बिहारी भार्गव। जयगुरुदेव नाम योग साधना मंदिर पर आयोजित पांच दिवसीय वार्षिक भंडारा सत्संग मेला के दूसरे दिन राष्ट्रीय उपदेशक सतीश चन्द्र और बाबूराम ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित किया। सतीश चन्द्र ने भगवान श्री कृष्ण के अवतरण पर प्रकाश डालते हुये कहा कि मैं विशेष परिस्थितियों में आता हूं। हे अर्जुन! जब यहां चांद, सूरज कुछ भी नहीं बना था तब भी मैं था। जीव कर्मों के वशीभूत होकर जन्म जन्मान्तरों तक भटकता रहता है। छुटकारा तो तब होता है, जब संत मिलते हैं। जब मातृशक्ति का अपमान होता है तब तब भगवान का अवतार होता है। महापुरुषों के सत्संग से ही विवेक जागृत होगा और बुद्धि सत्य असत्य का निरूपण कर सकेगी। इसलिये आत्म कल्याण के लिये प्रभु की प्राप्ति कराने वाले संत महात्मा की जरूरत है। राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम जी ने बताया कि पहले जिनके माथे पर धुरधाम जाने का निशान होता था उन्हीं को महात्मा नामदान देते थे जैसे रज्जब मिया, सहजो बाई, मीराबाई आदि। लेकिन बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सभी जीवों पर दया करके धुरधाम जाने के लिये नामदान यानि प्रभु प्राप्ति का रास्ता बताया। बिना गुरु के परमात्मा कभी नहीं मिल सकता है चाहे वह शंकर भगवान के समान क्यों न हो। यह संसार मुर्दों का गोव है यहो सभी लोग मरते हैं। संसार की आशा न रख कर, जीते जी मर करके मौत पर विजय प्राप्त कर लें। प्रभु को पाने के लिये सभी महात्माओं ने बहुत रोया, उनकी तड़प में आंसू बहाया। बाबा जयगुरुदेव जी महाराज को जब दादा गुरु जी मिले तो एक वर्ष के अन्दर अपनी कठोर साधना, तड़प से मालिक को प्राप्त कर लिया। हम लोगों को अपने गुरु महाराज से प्रेरणा लेनी चााहिये। मालिक जवानी में मिलता है। जिसने मालिक को पाया सभी ने जवानी में पाया। अब उपदेश देने का समय नहीं है, अपने को बदलने का वक्त है। जिससे रूढ़वादिता में फंसे लोग मजबूर होकर सच्चे रास्ते पर चल पड़े और प्रभु को प्राप्ति कर अपना मानव जीवन सफल बना सकें।