Sunday, November 24, 2024
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तुम सागर से हो मीत मेरे!

तुम सागर से हो! मीत मेरे,
मैं मोती तेरे दामन की।।
तुम पुरुषोत्तम निज हिय के हो,
मैं लक्ष्मी तेरे आंगन की।।
मेरे मन मन्दिर के नाथ तुम्हीं,
इस जीवन पथ में साथ तुम्हीं।
मेरी स्नेह स्वरूपी गाथा का,
तुम आदि हो, चरितार्थ तुम्हीं।।
इन सजल नेत्र में स्वप्न से तुम,
मैं आशा तेरी अंखियन की ।
तुम सागर से हो मीत मेरे!
मैं मोती तेरे दामन की।।
मेरे प्रेम की तुम हो परिभाषा,
मेरे जीवन का वरदान हो।
तुम ही विश्वास के हो द्योतक,
तुम ही मेरा अभिमान हो।।
तुम निज बगिया के हो स्वामी!
मैं कली हूं तेरे उपवन की।।
तुम सागर से हो मीत मेरे!
मैं मोती तेरे दामन की।
तुम पुरुषोत्तम निज हीय के हो,
मैं लक्ष्मी तेरे आंगन की।।
-सलोनी उपाध्याय
शेरपुर कलां
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश