जब से 500 व 1000 के पुराने नोट बन्द कर नए नोट चलाने की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की गई है, तब से हर ओर इसी प्रकरण की चर्चा आम है। कोई प्रधान मंत्री के इस फैसले की आलोचना कर रहा है तो कोई उनके फैसले की सराहना करते नहीं थकता। हालांकि आम जन की बात करें तो परेशानी का सामना करते हुए भी प्रधानमंत्री जी के फैसले का स्वागत करने वालों की संख्या ज्यादा है। आम जन का कहना है है कि मोदी का कदम तो अच्छा है लेकिन व्यवस्थाओं में पूरी तैयारी न होने से परेशान होना पड़ रहा है। हालांकि जिन लोगों ने अकूत धन इकट्ठा कर लिया है वो उसे खपाने की जुगत में लगे हैं और जिनके पास कुछ ही धन है वो बैंकों में जमा करने व बदलवाने में प्रयासरत है। वहीं विपक्ष की बात करें तो वह केन्द्र सरकार को घेरने की जुगाड़ में लगा है लेकिन आम जन का सहयोग नहीं मिल रहा है इस लिए उसे मुंह की खानी पड़ रही है। पुराने नोट बन्दी के बाद से मचे हो हल्ले की सत्यता परखने के लिए मोदी जी ने नोटबंदी देश की राय जानने के लिए मोबाइल एप लांच करवाया और उसपर जो सर्वेक्षण कराया उस पर मात्र 24 घंटे के भीतर ही पाँच लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी राय प्रकट कर दी। परिणामतः 93 प्रतिशत से अधिक लोगों ने विमुद्रीकरण का समर्थन किया है। जिसके चलते केंद्र सरकार को उत्साह मिला है और प्रधानमंत्री ने स्वयं इस परिणाम पर खुशी जताते हुए कहा कि इससे लोगों का मूड पता चलता है।
लेकिन इस सर्वे के परिणामों को प्रायोजित बताते हुए विपक्ष खारिज कर रहा है। उसका कहना है कि सर्वे प्रायोजित है, ठीक बात भी है कि क्या उस व्यक्ति को अपनी राय देने का समुचित मौका मिला जो नोट बन्दी के बाद से बैंकों अथवा डाकघरों के चक्कर लगा रहा है?
वहीं केन्द्र सरकार को इस बात पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि सर्वेक्षण पर जो सवाल उठाये जा रहे हैं उसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि इसमें कोई पारदर्शिता नहीं दिख रही है। मोदी मोबाइल एप डाउनलोड कर जिन लोगों ने सरकार की ओर से पूछे गये सवालों के जवाब दिये वह डाटा सरकारी सर्वर पर ही मौजूद है। साथ ही 93 प्रतिशत भारतीयों ने विमुद्रीकरण का समर्थन किया है और मोदी जी के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। इस सर्वे के आकड़ों को विपक्ष को दर्शाने के लिए कोई व्यवस्था होनी चाहिए थी। साथ ही अगर सरकार को इस प्रकार का कोई जनमत संग्रह कराना था तो वह कोई और रास्ता भी निकाल सकती थी। आॅनलाइन प्लेटफाॅर्म का उपयोग करना संदेह के घेरे से गुजर रहा है क्योंकि देश में अधिकतर लोगों के पास मोबाइल फोन भले ही हो लेकिन स्मार्टफोन कितने प्रतिशत भारतीयों के पास हैं यह एक खास तथ्य है? क्या सभी भारतीयों के फोन में इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है? वहीं क्या किसी जगह के दस-बीस लोगों की राय को पूरे शहर की राय मान लेना चाहिए? वहीं यह भी विचारणीय है कि मोबाइल एप डाउनलोड करने वाले और सवालों के उत्तर देने वाले कितने प्रतिशत लोग भारत से हैं और कितने प्रतिशत लोग विदेशों से हैं? इसके अलावा बात की क्या गारंटी है कि 93 प्रतिशत समर्थन व्यक्त करने वाले लोग भाजपा समर्थक नहीं थे? क्योंकि दस करोड़ भारतीयों की सदस्यता का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टी के लिए मात्र पांच लाख लोगों से राय व्यक्त करवाना क्या बहुत मुश्किल काम है?
इस लिए मोबाइल एप के नतीजों को वास्तविक नहीं कहा जा सकता। आम जन की राय भी नहीं कही जा सकती है क्योंकि आजकल संपन्न लोगों के पास ही नहीं बल्कि मध्यम वर्ग के परिवारों के हर व्यक्ति के पास भी दो-तीन मोबाइल फोन देखे जा सकते हैं। इसपर अगर गौर किया जाये तो ऐसे में सर्वे के नतीजों को आसानी से किसी भी पक्ष में मोड़ा जा सकता है। अतः 93 प्रतिशत का आंकड़ा ही अपने आप में यह दर्शाने के लिए काफी है कि भाजपा समर्थकों ने ही मतदान किया है।
हालांकि इस समय कोई दो राय नहीं है कि अधिकतर भारतीय विमुद्रीकरण के फैसले से खुश हैं लेकिन जिस तरह से मोबाइल एप के सर्वेक्षण परिणाम सामने आये हैं और उसमें कहा गया है कि ज्यादातर लोग परेशानी महसूस नहीं कर रहे उसको देखते हुए कुछ सवाल उठना लाजिमी हैं। उदाहरण के तौर पर अगर लें तो गांवों और छोटे शहरों में वह 90 प्रतिशत लोग कौन हैं जो कई कई दिनों से बैंकों की लाइनों में लग रहे हैं और नकदी नहीं मिलने से परेशान हैं? यह सही है कि सरकार ने जनता के लिए राहत के तमाम उपायों की घोषणाएं की हैं और इस संबंध में कदम भी उठाये गये हैं लेकिन कुल मिलाकर जो स्थिति है उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि बिना पर्याप्त तैयारी के सरकार ने बहुत बड़ा कदम उठा लिया है। इससे परेशानियां पैदा होना संभव है लेकिन दूरगामी परिणाम अच्छे होने के आसार दिख रहे हैं।
बहरहाल, नोटबंदी का प्रधानमंत्री का फैसला साहसिक है और यह कालाधन पर करारी चोट के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए भविष्य में लाभकारी भी सिद्ध होगा।