पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद जरूरी है वन्य जीवों का संरक्षण
वन्य जीव हमारी धरती के अभिन्न अंग हैं लेकिन अपने निहित स्वार्थों तथा विकास के नाम पर मनुष्य ने उनके प्राकृतिक आवासों को बेदर्दी से उजाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है और वनस्पतियों का भी सफाया किया है। धरती पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त उन सभी चीजों का आपसी संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है, जो उसे प्राकृतिक रूप से मिलती हैं। इसी को पारिस्थितिकी तंत्र या इकोसिस्टम भी कहा जाता है। धरती पर अब वन्य जीवों और दुर्लभ वनस्पतियों की कई प्रजातियों का जीवनचक्र संकट में है। वन्य जीवों की असंख्य प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। पर्यावरणीय संकट के चलते जहां दुनियाभर में जीवों की अनेक प्रजातियों के लुप्त होने से वन्य जीवों की विविधता का बड़े स्तर पर सफाया हुआ है, वहीं हजारों प्रजातियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वन्य जीव-जंतु और उनकी विविधता धरती पर अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का आधार रहे हैं। वन्य जीवों में ऐसी वनस्पति और जीव-जंतु सम्मिलित होते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता। इन्हीं वन्य जीवों, वनस्पतियों और उनके आवासों को सुरक्षा प्रदान करने को वन्य जीव संरक्षण कहा गया है तथा इनके संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 3 मार्च को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ मनाया जाता है। प्रतिवर्ष यह दिवस एक खास विषय के साथ मनाया जाता है और इस वर्ष ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ ‘लोगों और ग्रह को जोड़ना’ वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज’ थीम के साथ मनाया जा रहा है।
जीव-जंतुओं की तमाम प्रजातियां और वनस्पतियां मिलकर अत्यावश्यक पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करते हैं और सही मायनों में वन्य जीव हमारे मित्र है, इसीलिए उनका संरक्षण किया जाना बेहद जरूरी है। हमें भली-भांति यह समझ लेना चाहिए कि इस धरती पर जितना अधिकार हमारा है, उतना ही इस पर जन्म लेने वाले अन्य जीव-जंतुओं का भी है। लेकिन आज प्रदूषित वातावरण और प्रकृति के बदलते मिजाज के कारण भी दुनियाभर में जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर दुनियाभर में संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वन्यजीव दिवस मनाए जाने के उद्देश्यों में विभिन्न किस्म की वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं पर ध्यान केन्द्रित करना, उनके संरक्षण के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाना, पूरी दुनिया को वन्यजीव अपराधों के बारे में स्मरण करवाना और मनुष्यों के कारण इनकी प्रजातियों की संख्या कम होने के विरूद्ध कारवाई करना शामिल हैं।
समस्त स्थलीय और जलीय जीवों के लिए वन्य जीवों का बने रहना अत्यावश्यक है। हिन्दी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित अपनी चर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में मैंने विस्तार से यह उल्लेख किया है कि विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण किस प्रकार असंतुलित होता है। पर्यावरण के इसी असंतुलन का परिणाम पूरी दुनिया पिछले कुछ दशकों से गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देख और भुगत भी रही है। लगभग हर देश में कुछ ऐसे वन्य जीव पाए जाते हैं, जो उस देश की जलवायु की विशेष पहचान होते हैं लेकिन जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते वन्य जीवों के आशियाने भी लगातार बड़े पैमाने पर उजड़ रहे हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दुनिया के जंगली जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ के आयोजन का निर्णय लिया गया। महासभा ने यह सुनिश्चित करने में साइट्स की महत्वपूर्ण भूमिका को भी मान्यता दी ताकि वह सुनिश्चित कर सके कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा नहीं है।
ब्रिटिश काल से ही भारत में वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने और बचाने के लिए कानूनी प्रावधान किए जाते रहे हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि उसके बावजूद वन्यजीवों की अनेक प्रजातियां पिछली एक सदी में लुप्त हो गई हैं। विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की ‘लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट 2022’ में कुछ ही महीने पहले चौंका देने वाला यह चिंताजनक खुलासा भी हुआ था कि पूरी दुनिया में विगत पचास वर्षों में वन्यजीवों की आबादी करीब सत्तर फीसदी कम हुई है, जिनमें स्तनधारी, पक्षी, उभयचर, सरीसृप, मछली इत्यादि जीव शामिल हैं। हर दो साल में प्रकाशित होने वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वन्यजीवों की आबादी दुनियाभर में कैसे प्रभावित हो रही है। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के अनुसार वन्य जीवों को विलुप्त होने से बचाने के लिए देश में सबसे पहले वर्ष 1872 में ब्रिटिश शासनकाल में ‘वाइल्ड एलीकेंट प्रोटेक्शन एक्ट’ बनाया गया था। उसके बाद वर्ष 1927 में वन्य जीवों के शिकार और वनों की अवैध कटाई को अपराध मानते हुए ‘भारतीय वन अधिनियम’ अस्तित्व में आया, जिसके तहत सजा का प्रावधान किया गया। देश की आजादी के बाद वर्ष 1956 में ‘भारतीय वन अधिनियम’ पारित किया गया और 1972 में देश में वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने तथा अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972’ लागू किया गया। वर्ष 1983 में वन्य जीव संरक्षण के लिए ‘राष्ट्रीय वन्य जीव योजना’ शुरू की गई, जिसके तहत वन्य जीवों को इंसानी अतिक्रमण से दूर रखने और उनकी सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय पार्क और वन्य प्राणी अभयारण्य बनाए गए। जनवरी 2003 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया गया और अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माना तथा सजा को अधिक कठोर बना दिया गया। बहरहाल, प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह समझना बेहद जरूरी है कि वन्य जीवों का संरक्षण हम सभी की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि वन्य प्राणियों की विविधता से ही धरती का प्राकृतिक सौन्दर्य है, इसलिए लुप्तप्रायः पौधों और जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों की उनके प्राकृतिक निवास स्थान के साथ रक्षा करना पर्यावरण संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है।
-योगेश कुमार गोयल, नई दिल्ली