Sunday, November 24, 2024
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बकरी नस्ल सुधार के सम्बन्ध में किया विचार-विमर्श

मथुराः जन सामना संवाददाता। अखिल भारतीय बकरी सुधार शोध समन्वय परियोजना 2021-22 एवं 2022-23 की समीक्षा बैठक केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, फरह में 18 एवं 19 मार्च, 2024 को आयोजित की गयी। भारत में बकरियों की कुल 39 नस्ल पंजीकृत है जिसमें 50 प्रतिशत बकरियों की नस्ल अखिल भारतीय शोध परियोजना में सम्मिलित है। इस बैठक में देश की 16 प्रमुख बकरियों की नस्लें जो देश के 21 विभिन्न स्थानों एवं राज्यों में संचालित हो रही है के बारे में विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श किया गया। इस बैठक में अन्वेषण के आधार पर विभिन्न नस्लों में स्थायी आनुवांशिक सुधार उनका संवर्धन, प्रबंधन के तरीके, तकनीकी एवं प्रशिक्षण विकास द्वारा बकरियों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता, विकास बढ़ाने एवं इस प्रयास में किसानों की की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। इस बैठक की अध्यक्षता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महोनिदेशक (पशु विज्ञान) डॉ0 राघवेन्द्र भट्टा, सह अध्यक्षता सहायक महा निदेशक डॉ0 जी. के. गौर एवं संस्थान निदेशक डॉ0 मनीष कुमार चेटली ने की। विशिष्ट अतिथि द्वारा नव स्थापित अजा संपदा स्थल एवं जल शक्ति गृह का उद्घाटन भी किया गया। इसके साथ संस्थान स्थित AICRP की इकाई बरबरी, जमुनापारी, अन्य नस्लें एवं संस्थान द्वारा चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं एवं अनुसंधान प्रयोगों की मौके पर जानकारी ली। बैठक में मुख्य रूप से बकरियों की बरबरी, जमुनापारी, बीटल, सिरोही, गद्दी, चागथागी, ओस्मनावादी, संगमनेरी, मालावारी, गजांम, ब्लैक बंगाल, आसामहिल, बुन्देलखण्डी, पन्तजा, अंडमानी प्रमुख है। साथ कुछ नयी नस्लों को इस परियोजना में शामिल करने के बारे में भी विचार विमर्श किया गया। उपमहानिदेशक (पशु विज्ञान) डॉ0 राघवेन्द्र भट्टा द्वारा वैज्ञानिकों से आवाहन किया कि वे ऐसी तकनीकियों का विकास करें जिन्हें बकरी पालक आसानी से अपना सकें, इसके साथ ही उन्होंने प्रत्येक बकरी की नस्लों की प्रमुख समस्याओं तथा अनुसंधान द्वारा उनका समाधान करने के लिए रोड़ मैप बनाने पर जोर दिया ।
इस समीक्षा बैठक के द्वारा भारतवर्ष में पायी जाने वाली 15 करोड़ बकरियों तथा उनके पालने वाले लगभग 3.5 करोड़ बकरी पालकों की आजिविका, रोजगार एवं आमदनी बढ़ाने के लिए मील का पत्थर साबित होगा । यह योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त पोषित एवं भारत के विभिन्न कृषि एवं पशु विश्वविद्यालयों के सहयोग से एवं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान परिषद द्वारा चलायी जा रही है।