विशाल ने अपनी बेटे कार्तिक के जन्मदिन पर अपने सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया हुआ था। सभी उसके शानो शौकत देखकर हैरान थी कि कैसे इतना सब कुछ उसने हासिल किया । कुछ लोगों ने उसकी पत्नी को ही उसकी तरक्की का श्रेय देते हुए कहां की यह सब उसे उसकी पत्नी के प्रेम, परिश्रम और विश्वास की बदौलत ही मिला है। कुछ ने कहा कि विशाल तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतनी अच्छी पत्नी मिली जिसने तुम्हारी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने हेतु इतना प्रेरित किया और हर कदम तुम्हारा इतना साथ दिया जिसके बदौलत तुम आज बैंक के मैनेजर बन गए हो। पर विशाल ने इसके जवाब में कहा कि इसका पूरा श्रेय हमारी माता जी को जाता है और ये उन्हीं के दुआओं का असर है कि मुझे प्रियंका जैसी नेक दिल पत्नी मिली जिसने मुझ जैसे पढ़ाई में इतने कमजोर इंसान को इतनी सफलता हासिल करने को प्रेरित किया।
व्हील चेयर पर बैठी शारदा देवी अपने बेटे की ये बातें सुनकर वहां उपस्थित मेहमानों के समक्ष अत्यंत हर्ष महसूस कर रही थीं।
शारदा देवी का विवाह खेलने खाने की उम्र में ही हो गया था। उन्हें तीन बेटे थे और बेटी एक भी नहीं थी कम उम्र मी मां बनने से तथा संयुक्त परिवार के जिम्मेदारियों को निभाते निभाते वह अक्सर बीमार रहने लगी थीं । वह अपने बहुत बड़े परिवार में इकलौती बहुत थीं। उन्हें घर का सारा काम करना पड़ता पर उनकी खराब तबीयत की तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं था। जिम्मेदारियां निभाते निभाते तीस से पैंतीस की उम्र में ही वह अत्यंत रोगी अवस्था में पड़ गयीं।
उन्हें गठिया की शिकायत हो गई।
विशाल उनका सबसे छोटा बेटा था वह हमेशा मां के ही आसपास रहता और उनके कामों में हाथ बटाता वह ना ढंग से पढ़ाई करता ना खेलता कूदता। उसको उसके दोनों बड़े भाइयों को मां के तकलीफों का उतना कोई फिक्र नहीं रहता। पर विशाल हमेशा मां के के ही फिक्र में रहता और उनकी बहुत सेवा करता। उसे कोई कितना भी समझाता कि वह अपने पढ़ाई लिखाई पर भी थोड़ा ध्यान दे पर वह किसी की नहीं सुनता। घर के सभी सदस्य शारदा देवी को भी विशाल के पढ़ाई में कमजोर होने के लिए कोसते रहते पर वह बिचारी तो अपने नासाद तबियत से खुद ही बहुत परेशान रहते थीं।
विशाल के दोनों भाई पढ़ लिख कर सरकारी विभाग में क्लर्क की नौकरी प्राप्त कर लिए तथा विवाह होने पर अपने अपने पत्नी व बच्चों के साथ दूसरे शहर में जीवन व्यतीत करने लगे। इधर विशाल दसवीं में फेल हो गया और अगले वर्ष किसी तरह कम नंबर से पास भी हुआ तो घर के बड़े बुजुर्गों के कहने पर उसके माता-पिता ने गांव में रहने वाली बहुत कम पढ़ी-लिखी तथा एक गरीब की लड़की प्रियंका से उसका विवाह कर दिया। प्रियंका थी तो बहुत कम पढ़ी लिखी पर स्वभाव से तेज तर्रार, मेहनती, दयालु, निश्छल तथा आत्मविश्वासी थी। जब वह ब्याह कर ससुराल में आई तो उसने अपनी जेठानीयों को अपने पति विशाल का अनपढ़ कहकर मजाक उड़ाते सुना। अब उसने मन में ठान लिया की अपने पति को पढ़ा लिखा कर कुछ बनाकर ही रहेगी। उसने विशाल को फिर से फॉर्म भरवाया और अपनी सास की खूब सेवा भी करती थी । उसने अपने पति विशाल का एक बच्चे की तरह देखभाल किया। उसने अच्छे ट्यूशन कोचिंग का पता किया और घर खर्चे से पैसों की बचत कर अपने पति की पढ़ाई पर खर्च करती रही। शारदा देवी भी अपनी बहू का पूरा पूरा साथ देती रही और उसका मनोबल बढ़ाती रहीं। देखते ही देखते विशाल अब बहुत अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होने लगा और अपनी मेहनत,आत्मविश्वास और पत्नी के प्रेम मां के आशीर्वाद के बदौलत वह एक दिन बैंक का मैनेजर बन गया।
किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विशाल का जीवन इस तरह परिवर्तित होगा। पर वह तो अपनी मां की दुआओं में हमेशा से ही बहुत दृढ़ विश्वास रखता था और उसका मानना था कि यह सब उसकी मां के ही दुआओं का ही असर था।
कहानी से यह सीख मिलती है कि यदि हम किसी श्रेष्ठ कार्य अथवा बड़ों के सेवा करने हेतु अपना कुछ नुकसान भी करते हैं तो उस सेवा और परोपकार में हुए हमारे उस नुकसान के बदले हमें उससे कहीं बढ़कर कुछ मिलता है।
यहां विशाल के साथ भी यही हुआ । अपने आप में ही रहने वाले और बहुत पढ़ने वाले उनके दोनों भाई सिर्फ क्लर्क बनकर रह गए और सदैव मां के सेवा में लगे रहने वाला अपनी पढ़ाई बर्बाद कर चुका विशाल किस तरह अपने भाभियों के सोच के विपरीत इतने बड़े पद को हासिल कर लिया।
– बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश