» शिक्षकों की कमी से कक्षा के संचालन पर फर्क नहीं पड़ेगाः प्रधानाचार्य (डीएवी पब्लिक स्कूल)
पवन कुमार गुप्ताः रायबरेली। बीते गुरुवार को ऊंचाहार क्षेत्र के डीएवी पब्लिक स्कूल में शिक्षकों की कमी का आरोप लगाते हुए कुछ अभिभावकों ने नाम न छापने की शर्त पर आवाज उठाई थी। उनका कहना है कि इस समय नए सत्र को लेकर स्कूल में तेजी के साथ एडमिशन लिया जा रहा है, परंतु वार्षिक परीक्षा से पहले भी कुछ अध्यापक विद्यालय छोड़कर जा चुके थे। जिससे बच्चों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हुई।
वहीं अभिभावकों के लगाए आरोप की पुष्टि के लिए जब विद्यालय के फिजिकल एजुकेशन के अध्यापक मनीष श्रीवास्तव से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभिभावकों को मीडिया से बात करने की क्या जरूरत थी और आपको भी खबर छापने के लिए हमसे पूछना चाहिए था। इसके साथ ही उन्होंने अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया के सवाल पर कुतर्क करते हुए व्हाट्सएप पर संदेश भेजकर पत्रकारिता पर सवाल तक खड़े किए।
विद्यालय में शिक्षकों की कमी और अभिभावकों के आरोपों के संदर्भ में डीएवी पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य डी.के. मिश्रा ने विद्यालय में शिक्षक की कमी होने की बात को स्वीकार किया है। उनका कहना है कि संस्कृत विषय के अध्यापक की नियुक्ति हो चुकी है। प्रधानाचार्य के अनुसार विद्यालय में 95% अध्यापक मौजूद हैं। बाकी 5% में अन्य एक दो विषय (जैसे आर्ट ,म्यूजिक विषय और अन्य) के अध्यापक अभी नहीं हैं, जिनके होने न होने का कोई फर्क कक्षा के संचालन पर नहीं पड़ेगा। फिलहाल अध्यापकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है, थोड़ा समय लग सकता है। वहीं प्रधानाचार्य डी.के. मिश्रा का भी यही कहना था कि अभिभावकों को अपनी समस्या हमें बतानी चाहिए थी ना कि मीडिया को।
आखिरकार वार्षिक परीक्षा के कुछ माह पूर्व से अध्यापक की कमी की समस्या विद्यालय में बनी हुई थी, तो क्या प्रबंधन इससे अनजान था? शिक्षक की कमी की पूर्ति क्यों नहीं की गई? महंगी फीस चुकाने के बाद क्या अभिभावकों को विद्यालय में शिक्षक की कमी को भी झेलना पड़ेगा। विद्यालय की फीस समय से न जमा करने पर बच्चों को लेट फीस तक देनी पड़ती है, तो अध्यापक की अनुपस्थित पर विद्यालय की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए? बच्चे यदि विषयों में कमजोर होंगे तो यह जिम्मेदारी किसकी होगी?
ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले विद्यार्थियों के अभिभावक ने तो यहां तक कहा कि विद्यालय प्रबंधन अनुशासन के खिलाफ शिकायत करने पर परिसर के अंदर कार्रवाई करने में भी सुस्त रवैया अपनाता है।
साथ ही विद्यालय के पैरेंट्स ग्रुप में विद्यालय के प्रधानाचार्य का जो नंबर दिया गया है, वह अक्सर नॉट रीचेबल बताता है, जिसकी वजह से संपर्क करने में असुविधा होती है और हमारे द्वारा भी जब संपर्क साधने की कोशिश की गई थी तो नॉट रीचेबल की समस्या ही फोन पर सुनाई दी।
गौरतलब है कि सरकार और प्रशासन शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए लगातार नए-नए प्रयास कर रहा है। शहरी क्षेत्र व ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को भी शिक्षा से जोड़ने के लिए सरकारी विद्यालयों में मिड डे मील योजना, विद्यालयों के कायाकल्प की योजना चला कर बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षण के कार्य को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
बावजूद इसके प्राइवेट स्कूलों की व्यवस्थाओं और इमारत की चमक दमक देखकर अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से अभी भी प्राइवेट स्कूलों में ही दाखिला दिला रहे हैं। परंतु प्राइवेट स्कूलों की महंगी फीस देने के बावजूद भी अभिभावकों के हांथ में निराशा ही लग रही है।
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