कोरोना वैक्सीन बनाने वाली ब्रिटिश कम्पनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश हाईकोर्ट में लिखित रूप से यह स्वीकार किया है कि उसकी वैक्सीन के गम्भीर साइड इफेक्ट्स हैं। इसके बाद भारतीय कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनायी जाने वाली वैक्सीन कोवीशील्ड पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ने जिस फार्मूले पर कोवीशील्ड नामक वैक्सीन बनायी है, उसे एस्ट्राजेनेका तथा ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी द्वारा तैयार किया गया था। लोकसभा चुनाव के बीच लन्दन से अचानक आई इस खबर ने भारत की जनता के होश उड़ा दिये हैं। विपक्षी दल जहाँ इसे सरकार के खिलाफ चुनावी मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश में हैं वही भाजपा और उसके सहयोगी दल इस विषय से पूरी तरह बचने का प्रयास कर रहे हैं। राजनीतिक निहितार्थ कुछ भी निकाले जा रहे हों लेकिन इस मामले को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। वह भी तब जब वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स अत्यन्त गम्भीर हैं तथा इससे लोगों की मृत्यु भी हुई है। जानकारों के मुताबिक इस साइड इफेक्ट्स को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ थ्रोम्बोसिस (टीटीएस) नाम से जाना जाता है। इससे शरीर के विभिन्न हिस्सों में खून के थक्के बन जाते हैं तथा प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है। प्लेटलेट्स वह छोटी कोशिकाएं होती हैं जो रक्त को जमने नहीं देती। इनका कम हो जाना काफी खतरनाक होता है। अमेरिका की सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार टीटीएस दो तरह के टियर में होते हैं। पहले टियर में रक्त के थक्के मस्तिष्क या आंत में तथा कभी-कभी फेफड़ों या पैरों में जम जाते हैं। साथ ही प्लेटलेट्स भी कम हो जाते हैं। टियर-1 के मामले ज्यादा गम्भीर एवं जोखिम भरे होते हैं तथा युवाओं में अधिक देखने को मिलते हैं। वहीँ दूसरे टियर में पैरों या फेफड़ों में सामान्य रक्त के थक्के जमते हैं तथा प्लेटलेट्स की मात्रा लगातार कम होने लगती है। टीटीएस के वाह्य लक्षणों की यदि बात करें तो इससे गम्भीर सर दर्द, पेट दर्द, पैरों में सूजन, साँस लेने में परेशानी तथा सोचने की समस्या या दौरे पड़ना शामिल हो सकता है। यदि किसी महत्वपूर्ण रक्त वाहिका में थक्का जम जाये तो दिल का दौरा या ब्रेन स्ट्रोक जैसी गम्भीर स्थिति हो सकती है। जानकारों के मुताबिक वैक्सीन लगने के बाद टीटीएस होने की मुख्य वजह यह है कि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी बनाकर टीके के प्रति प्रतिक्रिया करती है, जो रक्त के थक्के जमने से रोकने वाली प्रोटीन पर हमला करती है। एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन पर अप्रैल-2021 में सवाल तब उठा था जब जेमी स्कॉट नाम के व्यक्ति ने यह वैक्सीन लगवाई थी। रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन लगवाने के बाद उसकी हालत बिगड़ गयी थी। उसके शरीर में रक्त के थक्के बनने का सीधा असर उसके दिमाग पर पड़ा था। साथ ही उसके दिमाग में ब्लीडिंग भी हुई थी। तब चिकित्सकों ने उसकी पत्नी से कहा था कि वह स्कॉट को नहीं बचा पायेंगे। उसके बाद जेम स्कॉट की पत्नी ने ब्रिटिश कोर्ट में एस्ट्राजेनेका के खिलाफ पहला केस दर्ज करवाया था।
यहाँ चौकाने वाली बात यह भी है कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का प्रयोग ब्रिटेन में पूर्णतः बन्द है। जबकि उसी फार्मूले पर बनी कोवीशील्ड का प्रयोग भारत में बदस्तूर जारी है। अब तक कोवीशील्ड के ही सबसे ज्यादा 175 करोड़ डोज लगाये जा चुके हैं। जबकि अन्य वैक्सीन कोर्बेवैक्स के 7.38 करोड़ तथा कोवैक्सीन के 36 करोड़ डोज ही लगाये गये हैं। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार बाजार में आने के कुछ महीनों बाद ही ब्रिटेन वैज्ञानिकों ने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था और सुझाव दिया था कि 40 वर्ष से कम आयु के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का डोज दिया जाये, क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा हैं। मेडीसिन हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी के मुताबिक ब्रिटेन में वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स से जूझने वाले हर 5 में से एक व्यक्ति की मौत हुई है। फरवरी माह में 163 लोगों को सरकार ने मुआवजा दिया था। इनमें 158 लोग ऐसे थे जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाई थी। उपरोक्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि कोवीशील्ड की 175 करोड़ डोज देकर भारतीय स्वास्थ्य तन्त्र ने नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ जमकर खिलवाड़ किया है। वैसे भी यह महकमा इस काम में सदैव से आगे रहता है। अस्पताल की लापरवाही से मरीज की मौत के बाद प्रायः स्वास्थ्य अधिकारी दोषी जनों को क्लीन चिट देकर शिकायतकर्ता की शिकायत को ही निराधार सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। उसमें भी कानपुर के चिकित्साधिकारी डॉ.सुबोध प्रकाश, डॉ.निलेश, डॉ.एस.पी.यादव, डॉ.अजय कुमार मौर्य तथा पूर्व सीएमओ डॉ.नेपाल सिंह जैसे अधिकारी अग्रगण्य हैं। उत्तर प्रदेश का चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण महानिदेशालय ऐसे अधिकारियों को अभय दान प्रदान करने में संकोच नहीं करता।
2 दिसम्बर 2020 को देश के नामचीन हिन्दी समाचार पत्र के इंटरनेट संस्करण में प्रकाशित खबर का संज्ञान लें तो कोवीशील्ड वैक्सीन के परीक्षण कार्यक्रम में शामिल चेन्नई के एक 40 वर्षीय स्वयंसेवक ने सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख सहित कई पक्षों को कानूनी नोटिस भेजकर 5 करोड़ रुपये का मुआवजा माँगा था। उसका आरोप था कि कोवीशील्ड की खुराक दिये जाने के बाद उसे न्यूरोलॉजिकल ब्रेकडाउन तथा संज्ञानात्मक कार्यों की हानि का सामना करना पड़ा है। तब सीरम इंस्टीट्यूट ने अपने बचाव में उक्त स्वयंसेवक को कानूनी नोटिस भेजकर 100 करोड़ रुपये की मानहानि की मांग करते हुए कहा था कि वैक्सीन और स्वयंसेवक की स्थिति के बीच किसी तरह का कोई सम्बन्ध नहीं है। बाद में यह मामला कैसे मैनेज हुआ इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। जनवरी 2021 में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया (डीसीजीआई) द्वारा कोवीशील्ड के उपयोग को मंजूरी दे दी गयी थी। जबकि इसके पूर्व सितम्बर-2020 में एस्ट्राजेनेका ने अपने परीक्षण कार्यक्रम में भाग लेने वालों में एक में गम्भीर प्रतिकूल प्रतिक्रिया देखकर वैक्सीन का परीक्षण रोक दिया था। लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद के पूर्व वैज्ञानिक डॉ.आर गंगा केटकर का कहना है कि खून के थक्के जमने जैसी परेशानी पैदा करने वाला थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) सिर्फ वैक्सीन लेने के 5 से 30 दिनों के अन्दर ही हो सकता है। अब इससे साइड इफेक्ट नहीं होंगे। भारत में कोविड-19 के टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी 2021 को हुई थी। पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों को, दूसरे चरण में 2 फरवरी 2021 से फ्रंटलाइन वर्कर्स को, तीसरे चरण में एक मार्च 2021 से 45-59 आयु वर्ग के गम्भीर रोगियों एवं 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का टीकाकरण किया गया था। एक अप्रैल 2021 से 45 वर्ष के ऊपर के सामान्य जनों को भी वैक्सीन देने का निर्देश दिया गया था। इसी बीच अर्थात अप्रैल-2021 से मई-2021 के बीच भारत में मौत ने जमकर ताण्डव मचाया। अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक लाशें ही लाशें दिखाई दे रही थीं। इस समय तक देश की एक बड़ी आबादी को कोरोना वैक्सीन का पहला डोज लग चुका था। वैक्सीन का डोज लेने वाले भी बड़ी संख्या में मृत्यु के शिकार हुए थे। सबकी असमय मृत्यु के लिए कोरोना वायरस को ही जिम्मेदार ठहराया गया था। जिसके कारण परिजन तक अपनों से दूरी बनाये रहे। मृत्यु के कारणों की जांच कराये बिना ही आनन-फानन में सबके अन्तिम संस्कार हुए। अनेक तो लावारिस की तरह ही चिता के हवाले कर दिये गये। आज जब एस्ट्राजेनेका द्वारा ब्रिटिश हाईकोर्ट में वैक्सीन के गम्भीर साइड इफेक्ट्स को स्वीकार किया गया तब अपनों को खोने वालों की बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक है। अतः जिम्मेदारों को इस बात का जवाब देना ही चाहिए। साथ ही यह भी बताना चाहिए कि जब ब्रिटेन ने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को पहले से ही प्रतिबन्धित कर रखा है। तब फिर भारत में कोवीशील्ड का प्रयोग बदस्तूर जारी क्यों है? भारतीय सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट विशाल तिवारी ने याचिका दाखिल करते हुए मांग की है कि न केवल विशेषज्ञों का पैनल बनाकर कोवीशील्ड के साइड इफेक्ट्स की जाँच करवाई जाये बल्कि इससे जिनकी जान गयी है या जिन्हें गम्भीर नुकसान पहुंचा है, उन्हें हर्जाना देने हेतु वैक्सीन डैमेज पेमेंट सिस्टम बनाने का भी निर्देश केन्द्र सरकार को दिया जाये। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के रुख और निर्णय पर देश के हर उस आम आदमी की निगाह लगनी स्वाभाविक है, जिनके परिजन वैक्सीन की डोज लेने के बाद गम्भीर हालात से जूझ रहे हैं या फिर असमय काल के गाल में समा चुके हैं।
-डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)