किसी भी देश के ‘लोकतंत्र’ जिसका अर्थ है, वह शासन-प्रणाली जिसमें वहाँ की जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों के हाथ में ‘सत्ता’ होती है, इसी लिये उसे ‘जनतंत्र’ की भी संज्ञा दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि लोकतंत्र में जनता ही सबकुछ है, लेकिन होता ठीक उलट है, क्योंकि जैसे ही ‘मतदाता’ अपने ‘मत’ का प्रयोग कर लेते हैं, वह (मतदाता) जनता में शुमार हो जाता है और हाँथ-पैर छू कर, मिमयाकर, गिड़गिड़ाकर आदि हथकंडे अपना कर मतदाताओं का मत अपने पक्ष में लाकर अपने सिर विजयश्री का ‘तमगा’ हासिल कर लेने वाला ‘व्यक्ति’ देखते ही देखते अपने आपको ‘खास’ बना लेता है। इस के बाद इन ‘खास’ व्यक्तियों की एक राय शुमारी के बाद चाहे राज्य हो या देश, उसकी बागडोर संभालने वाला ‘खास व्यक्ति’ दिखावे के लिये अपने आपको कथित सेवक तो कहता है लेकिन कटु सच्चाई यही है कि उस ‘खास व्यक्ति’ के अन्दर ‘बादशाहत’ ही छुपी होती है।
आज हम बात कर रहे हैं, देश की बादशाहत की। लोकताँत्रिक व्यवस्था के तहत लोकसभा सामान्य निवार्चन-2024 के सामने आये नतीजों ने देश के मतदाताओं ने देश की बादशाहत को बैसाखियों के सहारे चलाने का संदेश दिया है अर्थात अबकी बार किसी राजनैतिक दल के हाँथ में स्पष्ट रूप से ना देकर, ‘समूह’ के माध्यम से (एनडीए अथवा इण्डिया गठबन्धन के माध्यम) चलाने का आधार बनाया है। लेकिन अब यह तो भविष्य के गर्त में छुपा है कि किन-किन बैसाखियों के सहारे चलेगी ‘देश की बादशाहत’ और कब तक चलेगी ???
-श्याम सिंह पंवार