राजनीति की ‘स्टार’ प्रियंका गांधी कुछ ही वर्षों से कांग्रेस महासचिव है। पहले यूपी की प्रभारी भी रहीं। पार्टी में इस पद के पहले उनकी शुद्ध भूमिका प्रचारक की रही। पापा (पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी) के साथ अमेठी में राजनीति का ककहरा सीखा। मां सोनिया गांधी और पापा के बालसखा कैप्टन सतीश शर्मा के प्रचार की कमान संभाल कर व्यवहारिक पाठ पढ़ा। लगातार जीत का इतिहास गढ़ा। भाई राहुल गांधी के साथ विपक्ष में जीवन को कढ़ा। ढाई दशक तक केवल और केवल परिवार और पार्टी के लिए पसीना बहाते हुए प्रियंका गांधी अब राजनीति के उस मुकाम पर पहुंच रही हैं जो हर राजनीतिक का सपना होता है। वह चाहती तो कभी का इस मुकाम पर पहुंच चुकी होतीं लेकिन परिवार की मर्यादा तोड़ी न छोड़ी। सिर्फ मां, भाई और विरासत में मिली पार्टी की सेवा ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा।
हाँ! इन 25 वर्षों के प्रचार अभियान कभी मनमुताबिक मां और भाई को वोट न मिलने पर प्रियंका कार्यकर्ताओं नेताओं से नाराज भी हुई और अच्छा रिजल्ट आने पर सबकी तारीफ में भी कोई कमी नहीं की। यह उनका अपना स्टाइल है। पब्लिक से भावनात्मक और मुद्दे के रूप में ‘कनेक्ट’ करना जितना वह जानती हैं, उतना शायद ही कोई और नेता जानता हो। सोनिया गांधी के 20 वर्षों के कार्यकाल में हमने उनकी यह खूबी बहुत नजदीक से देखी है। एक अवसर तो ऐसा भी आया जब प्रियंका गांधी ने हम जैसे सामान्य पत्रकार को भी व्यक्तिगत रूप से जीत दिलाने में श्रेय देते हुए हाथ जोड़ दिए। ऐसा केवल हमारे साथ ही हो ऐसा भी नहीं। उन्होंने मां और भाई के चुनाव क्षेत्र में हर छोटे बड़े आम और खास सबका ख्याल रखा।
इस सबसे मौका मिला तो बेटे रेहान और बेटी मिराया को राजनीति का थ्योरिकल और प्रैक्टिकल की परंपरा भी निभाई। आज भले प्रियंका गांधी के दोनों बच्चे बड़े हो गए हो आज नॉमिनेशंस के वक्त रेहान उनके बगल में बैठे भी दिखाई पड़े। ऐसे मौके पर उस वक्त को भी याद करना जरूरी है जब रेहान और मिराया छोटे ही थे। वह 2006 का उपचुनाव था। हम तब रायबरेली में ‘हिंदुस्तान’ हिंदी को सेवाएं दे रहे थे। दोहरे लाभ के पद के इल्जाम से आहत सोनिया गांधी संसद से इस्तीफा देकर रायबरेली से उपचुनाव लड़ रही थीं। प्रियंका गांधी पहले की तरह ही प्रचार कमान संभाले हुए थी। प्रचार के अंतिम दिनों में पति रॉबर्ट वाड्रा, रेहान और मिराया शहर के ही एक प्रतिष्ठित परिवार के बंगलानुमा घर में रुकी थीं।
वोटिंग खत्म होने के समय देश और दुनिया का मीडिया रायबरेली के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में प्रियंका गांधी के लिए प्रतीक्षारत था लेकिन प्रियंका को दोनों बच्चों की जिम्मेदारी याद आई और बजाए मीडिया को बयान देने के वह रिक्शे पर दोनों को घुमाने निकल पड़ी।
ढाई दशक तक परिवार के सदस्यों के लिए प्रचार के बाद आज 52 वर्ष की उम्र में उनके जीवन में उम्मीदवार बनने का पहला अवसर वाया वायनाड आया। वायनाड में भी उन्होंने अपने शब्दों का वही जादू चलाया जो रायबरेली अमेठी में अक्सर चलाती रही हैं। यह पहली दफा होगा कि अब तक माँ, भाई और पापा के बाल सखा के लिए वोट मांगती रहीं प्रियंका गांधी अब अपने लिए वायनाड में वोट मांगती हुई नजर आएंगी..। वायनाड वालों का यह भाग्य है कि उनको प्रियंका गांधी जैसी जनप्रतिनिधि मिलने जा रहीं हैं, जो केवल क्षेत्र की नहीं पूरे देश और विश्व के मुद्दों पर अपनी राय और सुझाव सर्वाेच्च सदन में अधिकार पूर्वक रख सकती हैं।
-गौरव अवस्थी, वरिष्ठ पत्रकार रायबरेली