सलोन, रायबरेली। बज़्मे हयात ए अदब के तत्वाधान में काशाना ए हयात किठावां में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन निर्मल नदीम जौनपुरी के सम्मान में किया गया। इस मौक़े पर उनकी शालपोशी की गई। अध्यक्षता नफ़ीस अख़्तर सलोनी ने की और संचालन ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी ने किया। ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी ने पढ़ा- तुझे भूलना होगा तेरे लिए ही, ये ग़म भी ख़ुशी से उठाना पड़ेगा। निर्मल नदीम जौनपुरी ने पढ़ा – उड़ा आया हूं चर्ख़ पर ख़ाक अपनी, सितारों को अब जगमगाना पड़ेगा। क़ासिम हुनर सलोनी- वहां हम हैं तीरों की बारिश जहां है, मुसलसल हमें ज़ख़्म खाना पड़ेगा। डॉक्टर अनुज नागेंद्र- ये सूरज अंधेरा उगलने लगा है, नया एक सूरज उगाना पड़ेगा, नफ़ीस अख़्तर सलोनी- मसीहा तुम्हें मान लेगा ज़माना, मगर काम लोगों के आना पड़ेगा। शब्बीर हैदर- तुम्हें क्या नज़र कुछ नहीं आ रहा है ? हम अहले वफ़ा हैं बताना पड़ेगा? आमिर क़मर- बहुत खा रहा है वो क़समें वफ़ा की, किसी दिन उसे आज़माना पड़ेगा। मुख़्तार आशिक़ नसीराबादी- कहां दिल ये कहता है छोड़ें वतन को, हैं मजबूर परदेस जाना पड़ेगा। यासिर नज़र- भला कैसे तुम रहनुमाई करोगे, जो तुमको ही रस्ता दिखाना पड़ेगा। शान सलोनी- वो मुझसे सनद मांगता है वफ़ा की, उसे चीर कर दिल दिखाना पड़ेगा। अम्मार सहर- तेरी राह के ख़ार प्यारे हैं इतने, कि पलकों से उनको उठाना पड़ेगा। तय्यार ज़फ़र- मेरा ही न दिल सिर्फ़ तड़पेगा ग़म में, तुम्हें भी तो आंसू बहाना पड़ेगा।
इसके अलावा अनीस देहाती, डॉक्टर बच्चा बाबू वर्मा और श्याम मनमौजी ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। आखिर में इरशाद राईनी महाराजा अचार वाले, और नौशाद अंसारी ने तमाम शायरों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर नदीम, तस्लीम, शाहबाज़ सेबू, वक़ार, बिलाल, अख़लाक़, फ़ैयाज़, शानू, नजम असग़र, हाशिम उमर, तुफ़ैल अहमद, अल्तमश राईनी सरफ़राज़ के अलावा दीगर लोग मौजूद रहे।