कुंभकार ने अपने जीवन को, मिट्टी से जोड़ रखा है यहां।
यह सब रोशनी की बात तो, करते रहते हैं सदा यहां।
पर महंगे महंगे झालर से, घर द्वार सजाते हैं सदा।
पर इन ग़रीबों के दिये को, तुम खरीदते ही हो कहां।
खोखले अपनत्व व प्रेम को, तुम अक्सर दिखाते हो यहां।
सोचो दूर कैसे होगी ग़रीबी, क्या कभी ये सोचा यहां।
मुश्किलों से लड़ते अगर तो, ख़ुद रास्ता बन जाते यहां।
गर तेल संग बत्ती जली तो, वातावरण शुद्ध होगा यहां।
साथ कीड़े पतंगे सब ख़ाक होंगे,वातावरण स्वच्छ होगा यहां।
मिट्टी के दिये से इनके घरों में, खुशियों का आगमन होगा सदा।
जिसने रख चाक पर मिट्टी को, आकर्षक दिये बनायें हैं यहां।
खिल खिलाते उनके चेहरे होंगे, दिल में ‘नाज’ रौनक होगी सदा वहां।
-साधना शर्मा, सलोन, रायबरेली