जीते जी प्यार दो थोड़ा सम्मान दो
वक्त की करवटों पर पिघल जाएँगे
कल चमकते सितारे भी ढल जाएँगे
ये जो अट्टालिकाएँ हैं तनकर खड़ी
खण्डहर में इमारत बदल जाएँगे
आज कोई गया कल कोई जाएगा
काल का चक्र है सबको आजमायेगा
और ये पूजन, ये तर्पण, पितरपक्ष से
ताप मरुथल का क्या सिक्त हो पाएगा
बुझ गया जो अतृप्ति में जलकर दीया
वह अँधेरा क्या फिर दीप्त हो पाएगा ?
जल चढ़ाकर हो भक्ति किसे दे रहे
पिंड तर्पण की मुक्ति किसे दे रहे
चैन जीतेजी सिरहाने पर न रखा
कर्म-कांडों की युक्ति किसे दे रहे
पार चैकट धुले आसमां को गया
तिल के दानों से क्या शान्ति मिल जाएगी
आस की लाश जीवन में ढ़ोता रहा
उस मलिन मुख को क्या कान्ति मिल जाएगी
जीते जी प्यार दो थोड़ा सम्मान दो
न कि वृद्धाश्रम का घुप बियावान दो
चैन मिल जाएगा शान्ति मिल जाएगी
जल चढ़ाकर मरी शाख पर होगा क्या
प्यास प्राणों का क्या तृप्त हो पाएगा ?