विश्व बंधु शास्त्रीः बागपत। पुरेश्वर महादेव भगवान शिव मंदिर का अपना अलग ही महत्व व पौराणिक मान्यता है। वैसे तो भारत में कई प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव मंदिर हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश में बागपत के पुरा गांव में परशुरामेशवर महादेव मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
पुरा महादेव मंदिर के विषय में मान्यता है कि भगवान परशुराम ने ही कजरी वन में इस मंदिर की स्थापना की थी। पुरा महादेव मंदिर जनपद बागपत मुख्यालय से करीब 30 किमी दूरी पर बालैनी कस्बे के पास मेरठ जनपद की सीमा पर हिंडन नदी के तट पर स्थित है।भगवान शिव को समर्पित यह एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है, यहां वर्ष में दो बार महाशिरात्रि पर शिव भक्त हरिद्वार में पवित्र नदी गंगा से जल लेकर यहां आकर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करते हैं।
इसे एक प्राचीन सिध्दपीठ भी माना गया है। केवल इस क्षेत्र के लिये ही नहीं बल्कि समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में इसकी मान्यता है। लाखों शिवभक्त श्रावण और फाल्गुन के माह में पैदल ही हरिद्वार से कांवड़ में गंगा का पवित्र जल लाकर परशुरामेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव भी प्रसन्न हो कर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं।
किंवदंती है कि यह वह स्थान है जहाँ भगवान परशुराम ने तपस्या की थी और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था। बताते है कि पुरा महादेव शिवलिंग की स्थापना सबसे पहले भगवान परशुराम ने ही की थी। उन्होंने उस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था जो बाद में खंडहर में तब्दील हो गया था, वर्तमान में इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया है। उत्तर प्रदेश का पर्यटन विभाग इस मंदिर के विस्तारीकरण के साथ भव्य रूप देने में जुटा है।
भगवान परशुराम ने इसी मंदिर में कांवड़ से गंगाजल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
कुछ लोगों का मानना है कि विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए लंका के राजा रावण ने भी इसी मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इसके अलावा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और अन्य राज्यों में भी नीलकंठ महादेव के मंदिर पाए जाते हैं।
हिंदू धर्म में नीलकंठ महादेव की मान्यता
हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए नीलकंठ महादेव असीम शक्ति, त्याग और करुणा के प्रतीक हैं। शिव का यह रूप यह दर्शाता है कि वे संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याण के लिए स्वयं कष्ट सहन करने को तत्पर रहते हैं। भक्तगण नीलकंठ महादेव की पूजा कर अपने जीवन की नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं को दूर करने की कामना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त श्रद्धा से शिवरात्रि के दिन नीलकंठ महादेव के दर्शन करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाशिवरात्रि पर नीलकंठ महादेव के दर्शन का महत्व
महाशिवरात्रि भगवान शिव का सबसे प्रमुख पर्व है। यह फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन रात्रि जागरण, रुद्राभिषेक और शिव के 108 नामों का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है।
नीलकंठ महादेव के मंदिरों में शिवरात्रि के दिन विशेष भीड़ उमड़ती है। बागपत के पुरा गांव स्थित पुरेश्वर महादेव मंदिर में हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान कर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। शिव भक्त श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा, भांग और दूध अर्पित कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
नीलकंठ महादेव और शिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रभाव
नीलकंठ महादेव की पूजा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व भारतीय लोक संस्कृति में श्रद्धा, भक्ति और सामूहिकता की भावना को सशक्त करता है। पुरा महादेव समेत देश भर में शिवरात्रि के अवसर पर मेलों का आयोजन होता है, जिसमें धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ लोकगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।
नीलकंठ महादेव की पूजा से यह संदेश मिलता है कि विषमताओं को सहन कर भी हमें धैर्य और करुणा बनाए रखनी चाहिए। यह शिव का वह रूप है, जो केवल संहारक नहीं, बल्कि सृष्टि के संरक्षक भी हैं।
नीलकंठ महादेव का स्वरूप हिंदू धर्म में त्याग और समर्पण का प्रतीक है। महाशिवरात्रि के अवसर पर नीलकंठ महादेव के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है, जिससे शिव भक्तों को आध्यात्मिक शांति और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं के अनुसार, जो श्रद्धालु इस दिन भगवान शिव की पूजा करता है, उसे जीवन में सफलता, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।