Saturday, June 7, 2025
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सच्चे साधक को माला, मंत्र, गुरू एवं इष्ट का कभी त्याग नहीं करना चाहिएः विश्वेश्वरी देवी

फिरोजाबाद। हनुमान जयंती महोत्सव समिति के तत्वाधान में रामलीला मैदान चल रही रामकथा में दूसरे दिन हरिद्वार से पधारी कथा व्यास डॉ विश्वेश्वरी देवी ने शिव सती कथा का अद्भूत वर्णन किया। शिव सती की कथा सुनकर श्रद्वालुगण भावविभोर हो गये। कथा व्यास साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने रामकथा का अद्भूत वर्णन करते हुए कहा कि सती ने जब राम की परीक्षा ली, तो भगवान शंकर को बहुत कष्ट हुआ। उन्होंने भगवान पर पूर्ण विश्वास रखा। जो लोग अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भगवान को ही स्मरण करते है और उन्हीं पर भरोसा रखते है। वे मुश्किल रसमय को भी आसानी से पार कर लेते है। जब किसी समस्या का समाधान कहीं से भी न मिले तब सच्ची श्रद्वा से अपने इष्ठ का ध्यान करो, सभी समस्याओं को हल प्राप्त हो जाएगा। उन्होने कहा सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ किया। लेकिन शिव-सती को आमंत्रण नहीं भेजा। लेकिन सती बिना शिव के यज्ञ में अकेली पहुंच गई। जहॉ उनका और भगवान शिव का अनादर हुआ। जिसे सती सहन नहीं कर सकी और अग्नि में भस्म हो गई। शिव विश्वास है और सती श्रद्वा है। श्रद्वा की सुंदरता सदैव विश्वास के साथ ही होती है। बिना विश्वास के श्रद्वा मार्ग से भटक जाती है और ऐसी श्रद्वा का अंत सती के समान होता है। जब उपयुक्त समय आता है, तब सात्विक श्रद्वा पुन नया जीवन प्राप्त कर लेती है और पार्वती की तरह साधना में लग जाती है। पार्वती ने शिव की आराधना करते हुए एक सच्चे साधक का दर्शन कराया है। सच्चे साधक को माला, मंत्र, गुरू एवं इष्ट का कभी त्याग नहीं करना चाहिए। कथा के अंत में मुख्य यजमान पूजा सिंघल एवं पवन सिंघल ने रामचरित्र मानस की आरती उतारी।