Tuesday, April 29, 2025
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ख़ैर मख़दूम

ये वक्त ख़ैर मख़दूम का, है कितना खुश नसीब।
रिश्तो को जोड़ रखने का, बन जाता है रक़ीब।
हम उनकी मेजबानी का, कितना करें तारीफ़।
लब्ज़ ही मेरे पास ना, हम कैसे करें तारीफ़ ।
ख़ुदा ने जो यह की अता, दुनिया को बेदाग समीर।
वही फर्श से अर्थ तक का, सफर कराएगी तेरी तक़दीर।
फिर तेरे खूलुश ए मोहब्बत का, करेंगे लोग जिक्र।
बनेगा तेरे इरादों का, एक मज़बूत तामीर।
तुझ पर तेरे बुजुर्गों का, होगा “नाज़” मुदस्सर।
झलकेगा तेरा सलीका, सबके दिलों में बन तेरी तस्वीर।
-डॉ० साधना शर्मा (राज्य अध्यापक पुरस्कृत) इ० प्र० अ० पूर्व मा०वि० कन्या सलोन, रायबरेली